गीत – छलके तेरी आँखों से शराब और ज़्यादा
खिलते रहें होंठों के गुलाब और ज़्यादा
फ़िल्म – आरज़ू (1965)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायक – मोहम्मद रफ़ी

गीतकार विट्ठलभाई पटेल ने फ़िल्मों में गीत लिखने की शुरुआत राज कपूर की ‘बाबी’ से की थी। ‘झूठ बोले कौआ काटे’ और ‘घे घे घे घेरे साहिबा, प्यार में सौदा नहीं’ गीत उन्होंने लिखे थे। ‘झूठ बोले कौआ काटे, काले कौये से डरियो, मैं मैके चली जाऊँगी तुम देखते रहियो’ गीत पूरी तरह बुन्देलखण्ड का एक लोक गीत था जिसमें विट्ठलभाई पटेल की केवल दो पंक्तियाँ थीं। ‘प्यार में सौदा नहीं’ गीत गोआ की लोकधुन पर आधारित था। उनका ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्‘ का गीत ‘रंगमहल के दस दरवाज़े, न जाने कौन सी खिड़की खुली थी, सैं़या निकस गये मैं ना लड़ी थी’ गीत पारम्परिक ठुमरी पर आधारित था।

विट्ठलभाई पटेल ने अपना एक गीत राज कपूर को दिया था जिसे उन्होंने भविष्य में कभी इस्तेमाल करने के लिये रिज़र्व कर लिया था -‘वो कहते हैं हमसे ये उमर नहीं है प्यार की, नादां हैं वो क्या जानें कब कली खिली बहार की।’ विट्ठलभाई सागर, मध्य प्रदेश से कांग्रेस के एक जानेमाने नेता थे और विधायक भी रह चुके थे। उन्होंने एक सुबह विविध भारती से नई फ़िल्मों के संगीत में फ़िल्म ‘दरियादिल‘ ( 1988, गोविन्दा, किमी काटकर) का नितिन मुकेश का गाया गीत सुना ‘वो कहते हैं हमसे ये उमर नहीं है प्यार की’ तो चौंक गये। फ़ौरन वह गीत उन्होंने टेप कर लिया। ‘दरियादिल’ के गीतकार इंदीवर और संगीतकार राजेश रोशन बताये जा रहे थे। विट्ठलभाई पटेल ने राज कपूर को फ़ोन पर टेप सुना कर पूरी बात बतायी। राज कपूर ने ‘दरियादिल’ के निर्माता विमल कुमार से सम्पर्क कर सफ़ाई माँगी। ‘दरियादिल’ की रिलीज़ डेट (08 जनवरी 1988) घोषित हो चुकी थी। विमल कुमार बहुत घबराये। विट्ठलभाई पटेल का राजनैतिक क़द और राज कपूर जैसी हस्ती का उनके साथ होना देख कर उन्हें लगा कि कहीं मुकदमेबाज़ी में उनकी फ़िल्म ना लटक जाये। फ़ौरन वे विट्ठलभाई पटेल के पास भागे। उनके बीच जो भी समझौता हुआ हो फ़िल्म और रिकार्ड्स / कैसेट्स में उस गीत के गीतकार के रूप में इंदीवर के बदले विट्ठलभाई पटेल का नाम दिया गया और फ़िल्म रिलीज़ हुयी।

दूसरों के गीतों की नक़ल करने या प्रेरणा लेने या प्रभावित होने के फ़िल्मी गीतों में कई उदाहरण हैं । हसरत जयपुरी के तीन गीत और उनकी प्रेरणा के मूल स्त्रोत इस प्रकार हैं –

दिल के आइने में है तस्वीरे यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली
– मुंशी मौजीराम ‘ मौजी ‘

शीशा-ए-दिल में छिपा है ओ सितमगर तेरा प्यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली तस्वीरे यार
(फ़िल्म- छोटी सी मुलाक़ात)

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
– मोमिन खां ‘ मोमिन ‘

ओ मेरे शाहे खुबा, ओ मेरी जाने ज़नाना
तुम मेरे पास होते हो , कोई दूसरा नहीं होता
(फ़िल्म – लव इन टोक्यो)

शायर मजाज़ लखनवी की एक कविता है -‘ उनका जश्ने सालगिरह ‘ –
छलके तेरी आँखों से शराब और ज़्यादा
महकें तेरे आरिज़ के गुलाब और ज़्यादा
अल्ला करे ज़ोरे शबाब और ज़्यादा

फ़िल्म ‘ आरज़ू ‘ (1965) में राजेन्द्र कुमार नायिका साधना की सालगिरह के जश्न में गाते हैं –
छलके तेरी आँखों से शराब और ज़्यादा
खिलते रहें होंठों के गुलाब और ज़्यादा 

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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