गीत – चाँद से फूल तलक तुमसा हसीं और नहीं
जैसी तुम हो मेरे सरकार कहीं और नहीं
फ़िल्म – जान-ए-वफ़ा (1990)
संगीतकार – ख़य्याम
गीतकार – निदा फ़ाज़ली
गायक – अनवर

कमाल अमरोही की फ़िल्म ‘रज़िया सुल्तान‘ 1983 में प्रदर्शित हुयी थी। लेकिन उसके कुछ गीत कई बरस पहले रिकार्ड हो गये थे। ‘अय दिले नादान, आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है’ लता मंगेशकर की आवाज़ में जब रिकार्ड हुआ उस समय उसकी मिठास और अनोखेपन की चर्चा इण्डस्ट्री में फैल गयी थी। रिकार्डिंग के कुछ दिनों बाद ही एक रात 2 बजे संगीतकार ख़य्याम के घर जया बच्चन और फ़िल्मकार सुल्तान अहमद पहुँचे। इतने अटपटे समय में डिस्टर्ब करने के लिये माफ़ी माँग कर उन्होंने बताया कि आपके गाने का टेप अमिताभ बच्चन ने मँगाया है। उस समय टेप कमाल अमरोही के पास था। अगले दिन प्रदीप ख़य्याम कमाल अमरोही से टेप ले कर अमिताभ तक पहुँचा आये।

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अमिताभ ने वह टेप यश चोपड़ा को सुनाया। यश चोपड़ा साहिर लुधियानवी को साथ ले कर ख़य्याम के घर पहुँचे और उनके सामने ‘कभी कभी‘ में संगीत देने का प्रस्ताव रखा। इस तरह उस एक गीत ‘अय दिले नादां’ के कारण ख़य्याम को फ़िल्म ‘कभी कभी’ मिली। उसके बाद उन्होंने यश चोपड़ा की ‘त्रिशूल‘ और ‘नूरी‘ फ़िल्मों में भी संगीत दिया। लेकिन जब उन्हें ‘सिलसिला‘ की कहानी सुनायी गयी तो उन्होंने वह फ़िल्म लेने से इंकार कर दिया। उन्हें उस फ़िल्म का विषय सही नहीं लगा था।

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अपने 90 वें जन्मदिन पर ख़य्याम साहब ने घोषणा की कि वे तथा उनकी पत्नी जगजीत कौर एक ट्रस्ट बना रहे हैं जिसके द्वारा फ़िल्म इंडस्ट्री के ज़रूरतमंद म्यूज़ीशियन्स , टेक्नीशियन्स और कलाकारों को मदद दी जायेगी। अपनी सारी जमापूंजी, जिसमें उनका घर व जगजीत कौर जी के गहने शामिल हैं, सब मिला कर लगभग 10 करोड़ रुपये, उन्होंने इस ट्रस्ट में दे दिये। ट्रस्ट के एक ट्रस्टी गायक तलत अज़ीज़ हैं । ट्रस्ट का नाम के पी जे (अर्थात् ख़य्याम, प्रदीप, जगजीत कौर) चैरीटेबल ट्रस्ट रखा गया है। प्रदीप, ख़य्याम साहब और जगजीत कौर जी के इकलौते बेटे थे, जिनका मार्च 2012 में घातक दिल का दौरा पड़ने से देहान्त हो गया।

प्रदीप ख़य्याम ने ‘जान-ए-वफ़ा’ ( 1990 ) फ़िल्म में अभिनय किया था। फ़िल्म का संगीत ख़य्याम साहब का था। प्रदीप ख़य्याम और रति अग्निहोत्री पर फ़िल्माया गया एक गाना ‘आज के गीत’ के रूप में पेश है – चाँद से फूल तलक तुमसा हसीं और नहीं, जैसी तुम हो मेरे सरकार कहीं और नहीं।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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