गीत – जब इश्क़ कहीं हो जाता है तब ऐसी हालत होती है (क़व्वाली)
फ़िल्म – आरज़ू (1965)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायिकायें – आशा भोंसले, मुबारक बेग़म

रामानन्द सागर ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत कहानी/ स्क्रीनप्ले/संवाद लेखक के रूप में की थी। राज कपूर की फ़िल्म ‘बरसात‘ की कहानी उनकी लिखी हुई थी। दक्षिण की ‘जेमिनी फ़िल्म्स‘ के साथ वे लम्बे समय तक जुड़े रहे थे। जेमिनी प्रोडक्शन्स की राजतिलक, पैग़ाम, घूँघट, ज़िन्दगी आदि फ़िल्मों के लेखक या निर्देशक के रूप में रामानन्द सागर को जाना जाता है। फिर बतौर निर्माता, निर्देशक उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘सागर आर्ट’ के लिये आरज़ू, आँखें, गीत, ललकार, चरस, जलते बदन आदि हिट फ़िल्में बनाईं। बाद में प्रसिद्ध टीवी सीरियल ‘रामायण‘ के लिये उन्हें हमेशा याद रखा जायेगा। निर्माता, निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा (पीके, थ्री इडियट्स, मुन्ना भाई सिरीज़, परिणीता) रामानन्द सागर के छोटे सौतेले भाई हैं।

आरज़ू (1965) रामानन्द सागर की एक सुपरहिट म्यूज़िकल फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के लिये जब वे अभिनेत्री साधना को साइन करने गये थे तो, साधना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, वे कहानी सुनाते समय कई बार रो पड़े थे। ‘आरज़ू’ एक प्रेमकथा थी जिसमें राजेन्द्र कुमार, साधना, फ़ीरोज़ ख़ान, नाज़िमा, महमूद, मलिका आदि कलाकार थे। कश्मीर के मनोरम दृश्यों के साथ साथ इस फ़िल्म का मुख्य आकर्षण शंकर जयकिशन का संगीत था।

‘आरज़ू ‘ के संगीतकार के रूप में शंकर जयकिशन का नाम आता है लेकिन इस फ़िल्म के सभी गीत (एक क़व्वाली छोड़ कर) जयकिशन ने तैयार किये थे। गीतकार केवल हसरत जयपुरी थे, शैलेन्द्र का इसमें कोई गीत नहीं था। जयकिशन ने इसमें सारे गीत मोहम्मद रफ़ी या लता मंगेशकर की आवाज़ में ‘सोलो’ रखे थे। सभी एक से बढ़ कर एक कर्णप्रिय – छलके तेरी आँखों से शराब और ज़्यादा, अय नरगिसे मस्ताना, फूलों की रानी बहारों की मलिका, अजी हमसे बच कर कहाँ जाइयेगा, अजी रूठ कर अब कहाँ जाइयेगा, बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है।

संगीतकार शंकर ने फ़िल्म ‘आरज़ू’ में सिर्फ़ एक क़व्वाली (आशा भोंसले, मुबारक बेग़म) की धुन तैयार की थी। यह क़व्वाली फ़िल्म में नाज़िमा और डेज़ी ईरानी के ऊपर फ़िल्माई गई थी । डेज़ी ईरानी इससे पहले बाल कलाकार के रूप में प्रसिद्ध थीं, इस फ़िल्म में वे पहली बार वयस्क भूमिका में दिखलाई दी थीं। नाज़िमा उन दिनों बहन के किरदार में फ़िल्मों में नज़र आती थीं जैसे – बेईमान, अनजाना, मेरे भैया, ग़ज़ल, ज़िद्दी आदि। इस क़व्वाली में वेस्टर्न तथा भारतीय संगीत का आकर्षक मिश्रण संगीतकार शंकर ने पेश किया था –

जब इश्क़ कहीं हो जाता है तब ऐसी हालत होती है,
महफ़िल में जी घबराता है तन्हाई की आदत होती है।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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