एक मुसाफ़िर एक हसीना
मैं प्यार का राही हूँ तेरी ज़ुल्फ़ के साये में
संगीतकार – ओ पी नय्यर
गीतकार – राजा मेंहदी अली खान
गायक – मोहम्मद रफी, आशा भोंसले
फिल्मालय के शशाधर मुखर्जी ने अपने बेटे जाॅय मुखर्जी और फ़िल्मालय एक्टिंग स्कूल से ट्रेनिंग प्राप्त साधना को ले कर ‘एक मुसाफ़िर एक हसीना‘ फ़िल्म का निर्माण किया था। इन दोनों की ‘लव इन शिमला’ पहले ही सफल हो चुकी थी। ‘एक मुसाफ़िर एक हसीना’ के निर्देशक राज खोसला थे, जिन्होंने इस फ़िल्म के बाद साधना को ले कर तीन सस्पेंस फ़िल्में ‘वह कौन थी’, ‘मेरा साया’ और ‘अनिता’ बनाईं।
संगीतकार ओ पी नय्यर ने फ़िल्म में शानदार संगीत दिया और इसके अधिकांश गीत अत्यन्त लोकप्रिय हुये। ‘मैं प्यार का राही हूँ’ युगलगीत भी फ़िल्म के साथ साथ हिट रहा।एक तरह से इसे फ़िल्म का टाइटिल सांग भी माना जा सकता है। लेकिन यह गीत फ़िल्म में मौजूद नहीं था। इस गीत का वीडियो उपलब्ध नहीं है। मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले की पंक्तियों को स्पष्ट करते हुये गीत इस प्रकार है – (इससे बात समझने में आसानी रहेगी )-
मुखड़ा –
रफी- मैं प्यार का राही हूँ , तेरी ज़ुल्फ़ के साये में , कुछ देर ठहर जाऊँ
आशा – तुम एक मुसाफ़िर हो , कब छोड़ के चल दोगे , ये सोच के घबराऊँ
अंतरा -1
रफी – तेरे बिन जी लगे ना अकेले
आशा – हो सके तो मुझे साथ ले ले
रफी – नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी , छोड़ कर ज़िन्दगी के झमेले
आशा – जब छाये घटा याद करना ज़रा , सात रंगों की हूँ मैं कहानी
अंतरा -2
रफी – प्यार की बिजलियाँ मुस्कुरायें
आशा – देखिये आप पर गिर ना जायें
रफी – दिल कहे देखता ही रहूँ मैं , सामने बैठ कर ये अदायें
आशा – न मैं हूँ नाज़नीं न मैं हूँ महजबीं , आप ही की नज़र है दीवानी
गीत के दो अंतरे हैं । इस गीत की रिकार्डिंग के समय न जाने किस गड़बड़ी या ग़लतफ़हमी की वजह से आशाजी की गाई हुई दोनों अंतरों की अंतिम पंक्तियाँ आपस में बदल गयीं । अर्थात् दूसरे अंतरे में आशाजी को जो पंक्ति गानी थी वह उन्होंने पहले अंतरे में गा दी तथा पहले अंतरे में जो गानी थी वह दूसरे अंतरे में रिकार्ड हो गई।
याने देखिये – जब रफ़ी गाते हैं-
‘नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी, छोड़ कर ज़िन्दगी के झमेले’
तो आशा को गाना था –
‘न मैं हूँ नाज़नीं न मैं हूँ महज़बीं , आप ही की नज़र है दीवानी’
लेकिन रिकार्ड हो गया –
‘जब छाये घटा , याद करना ज़रा , सात रंगों की हूँ मैं कहानी’
गाने की रिकार्डिंग के समय यह उलटफेर किसी के पकड़ में नहीं आई। जब बाद में सबकी नज़रों में यह ग़लती आई तो गाने को फ़िल्म में नहीं रखा गया। लेकिन उसका रिकार्ड बाज़ार में रिलीज़ कर दिया गया और वह भरपूर हिट रहा। गाना अपने मौजूदा स्वरूप में भी हम सबको बेहद प्रिय है।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी