गीत – दिल देके देखो , दिल देके देखो जी
फ़िल्म – दिल देके देखो (1959)
संगीतकार – उषा खन्ना
गीतकार – मजरूह सुल्तानपुरी
गायक – मोहम्मद रफ़ी

आशा पारेख ने बतौर बाल कलाकार निर्देशक बिमल रॉय की फ़िल्म ‘ बाप बेटी ‘ ( 1954 ) तथा विजय भट्ट की फ़िल्म ‘ श्री चैतन्य महाप्रभु ‘ ( 1954 ) में अभिनय किया था । विजय भट्ट ने ‘ गूँज उठी शहनाई ‘ ( 1959 ) में उन्हें नायिका बना कर भी पेश करना चाहा लेकिन दो दिन की शूटिंग के बाद संतुष्ट न होने पर उन्हें हटा कर अमिता को अपनी फ़िल्म में ले लिया।

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उन दिनों ही ‘ अनारकली ‘ के निर्देशक नन्दलाल जसवन्त लाल ने आशा पारेख का स्क्रीन टेस्ट लिया था । नासिर हुसैन ने वह स्क्रीन टेस्ट देखा और उन्हें उस नई कलाकार में प्रतिभा नज़र आयी । वे तब ‘ तुमसा नहीं देखा ‘ की सफलता के बाद फ़िल्मिस्तान से अलग हो चुके थे । शशधर मुखर्जी ने भी फ़िल्मिस्तान को अलविदा कह कर अपनी प्रोडक्शन कम्पनी फ़िल्मालय बना ली थी । दोनों शम्मी कपूर के साथ मिल कर ‘ दिल देके देखो ‘ का निर्माण करने जा रहे थे । शम्मी कपूर ने नूतन को नायिका लेने का सुझाव दिया । नूतन उन दिनों शादी करने वाली थीं और नासिर हुसैन के हिसाब से फ़िल्म की नायिका कमसिन , खिलंदड़ी व नटखट स्वभाव की थी अत: नूतन उस चरित्र के लिये उपयुक्त नहीं थीं । फिर शम्मी कपूर ने वहीदा रहमान का नाम आगे किया। पर वहीदा जी उस समय ‘ काग़ज़ के फूल ‘ में व्यस्त थीं । शशधर मुखर्जी फ़िल्मालय में एक्टिंग स्कूल भी चला रहे थे जहाँ साधना ट्रेनिंग ले रहीं थीं।

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जॉय मुखर्जी भी उस एक्टिंग स्कूल के छात्र थे । दोनों को साथ ले कर ‘ लव इन शिमला ‘ बनाने की तैयारी चल रही थी । मुखर्जी साहब ने साधना का नाम ‘ दिल देके देखो ‘ के लिये सुझाया । तय हुआ कि आशा पारेख और साधना दोनों को शम्मी कपूर के साथ स्क्रीन टेस्ट के लिये बुलाया जाये । दोनों पारी पारी से शम्मी कपूर के साथ एक ही सीन करें।

दोनों में जो अधिक उपयुक्त हो उसे नायिका बना दिया जाये । जब यह ख़बर ‘ लव इन शिमला ‘ के निर्देशक आर के नय्यर को मिली तो वे घबरा गये । वे नहीं चाह रहे थे कि उस समय साधना के अन्य फ़िल्म में काम करने से उनकी फ़िल्म का शेड्यूल बिगड़े । वे नासिर हुसैन से मिले और अनुरोध किया कि साधना को ‘ दिल देके देखो ‘ में ना लिया जाये । इस तरह आशा पारेख का ‘ दिल देके देखो ‘ में हीरोइन बनना पक्का हुआ । नासिर हुसैन और आशा पारेख का साथ फिर लम्बा चला । जब तक आशा पारेख की नायिका बनने की उमर रही वे नासिर हुसैन की हर फ़िल्म की हीरोइन बनीं । चरित्र भूमिका में भी वे उनकी फ़िल्म ‘ मंज़िल मंज़िल ‘ ( 1984 ) में आख़री बार दिखलाई दीं ।
शशधर मुखर्जी ने उषा खन्ना को पहली बार ‘ दिल देके देखो ‘ में संगीत देने का अवसर दिया।

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उषा खन्ना ने एक से बढ़ कर एक फड़कते हुये गाने बनाये । उनकी छोटी उम्र देख कर लोगों को विश्वास नहीं आता था के ये धुनें उन्होंने बनाईं हैं । कुछ लोग तो इस ग़लतफ़हमी में थे कि ये धुनें ओ पी नय्यर की हैं । भविष्य में उषा खन्ना ने ‘ हम हिन्दुस्तानी ‘ व अन्य फ़िल्मों में शानदार संगीत दे कर लोगों का मुँह बन्द कर दिया।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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