क़व्वाली – ना तो कारवाँ की तलाश है
ना तो हमसफ़र की तलाश है
फ़िल्म – बरसात की रात (1960)
संगीतकार – रोशन
गीतकार – साहिर लुधियानवी
गायक – मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, एस डी बातिश, आशा भोंसले, सुधा मल्होत्रा
फ़िल्म ‘बरसात की रात‘ (1960) अपने ख़ूबसूरत गानों के लिये आज भी याद की जाती है। भारत भूषण और मधुबाला की जोड़ी वाली इस फ़िल्म के निर्माता भारत भूषण के बड़े भाई आर चन्द्रा थे और निर्देशन राजकुमार सन्तोषी के पिता पी एल सन्तोषी जी का था। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले पी एल सन्तोषी और भारत भूषण ने मिल कर लिखा था। साहिर लुधियानवी और रोशन ने गीत – संगीत पक्ष संभाला था ये दोनों जब भी साथ आये नतीजा हमेशा लाजवाब रहा।
Sahir Ludhianvi- A Biopic Documentary
याद कीजिये इस जोड़ी की फ़िल्में – बहू बेगम, चित्रलेखा, दूज का चाँद, दिल ही तो है, ताजमहल, बाबर वग़ैरह वग़ैरह। ‘बरसात की रात’ की क़व्वालियाँ बेहद मशहूर हुयी थीं – ‘निगाहे नाज़ के मारों का हाल क्या होगा’, ‘जी चाहता है चूम लूँ’ और क़व्वालियों में नम्बर वन ‘ना तो कारवाँ की तलाश है’। साहिर और रोशन की दीगर फ़िल्मों की क़व्वालियाँ भी कम नहीं थीं -‘निगाहें मिलाने को जी करता है’ (दिल ही तो है), ‘चाँदी का बदन सोने की नज़र’ (ताजमहल), ‘हसीनों के जल्वे परेशान रहते अगर हम ना होते’ (बाबर), वाक़िफ़ हूँ ख़ूब इश्क़ के तर्ज़े बयां से मैं, ऐसे में तुझको ढूँढ के लाऊँ कहाँ से मैं’ (बहू बेग़म)।
पहले इस फ़िल्म का नाम ‘साथी’ रखा गया था। ‘ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’ टैण्डम सांग जब रिकार्ड हुआ तो वह गीत सबको इतना पसंद आया कि फ़िल्म का नाम बदल कर ‘बरसात की रात ‘ रख दिया गया । फ़िल्म की नामावली के साथ ‘ गरजत बरसत सावन आयो री ‘ (सुमन कल्याणपुर, कमल बारोट) गीत चलता रहता है। पर्दे पर श्यामा और रत्ना रियाज़ करती हुयी नज़र आती थीं। अभिनेत्री रत्ना की यह पहली फ़िल्म थी। अपनी पहली पत्नी के देहान्त के कुछ वर्षों बाद भारत भूषण ने रत्ना से विवाह कर लिया था। ‘गरजत बरसत’ गीत की धुन रोशन पहले भी फ़िल्म ‘मल्हार‘ (1951) में इस्तेमाल कर चुके थे। निर्माता मुकेश की फ़िल्म ‘मल्हार (शम्मी, अर्जुन) में भी लता मंगेशकर का गाया यह गीत नामावली के दौरान चलता रहता है -‘गरजत बरसत भीगत आइलो तुम्हरे मिलन को, अपने प्रेम पीहरवा लो गरवा लगाये’।
‘ना तो कारवाँ की तलाश है, ना तो हमसफ़र की तलाश है’ फ़ेमस एनाउन्सर अमीन सयानी के अनुसार यह क़व्वाली पाकिस्तानी क़व्वाल मुबारक अली और फ़तह अली की क़व्वाली से प्रभावित थी। सुधा मल्होत्रा ने अमीन सयानी को एक रेडियो इंटरव्यू में बताया था कि इस क़व्वाली को रिकार्ड होने में क़रीब 24 घण्टे लग गये थे। एक सुबह इसकी रिकार्डिंग शुरू हुयी, सारे दिन व सारी रात यह सिलसिला चला और अगली सुबह जा कर रिकार्डिंग पूरी हुयी। एक तो यह क़व्वाली लम्बी (दस मिनट से ज़्यादा) थी, दूसरे पाँच मुख्य गायक मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, एस डी बातिश, आशा भोंसले, सुधा मल्होत्रा और ढेरों साजिन्दों के साथ उस ज़माने में इतनी लम्बी क़व्वाली रिकार्ड करना एक चुनौतीपूर्ण काम था। एक भी गायक या म्यूज़ीशियन कोई छोटी सी ग़लती भी करता तो नये सिरे से रिकार्डिंग शुरू करनी पड़ती थी। जो भी हो इतनी मेहनत का नतीजा शानदार निकला।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।