गीत – अय ग़मेदिल क्या करूँ
अय वहशतेदिल क्या करूँ
क्या करूँ , क्या करूँ ?
फ़िल्म – ठोकर (1953)
संगीतकार – सरदार मलिक
गीतकार – मजाज़ लखनवी
गायक – तलत महमूद

संगीतकार सरदार मलिक एक कुशल नर्तक थे। उन्होंने बाक़ायदा कथकली और मणिपुरी नृत्य की शिक्षा ली थी लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें संगीतकार बना दिया। इस क्षेत्र में भी अच्छा संगीत देने के बावज़ूद ज़्यादा सफलता न पा सके। उन्होंने लगभग तीस फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें अधिकांश ‘बी ग्रेड’ फ़िल्में थीं। ‘सारंगा‘ फ़िल्म का संगीत इतना हिट हुआ था कि उसकी लाखों की रायल्टी प्रोड्यूसर को मिली जब कि संगीतकार सरदार मलिक घोर आर्थिक तंगी झेलते रहे।

सारंगा तेरी याद में नैन हुये बेचैन- सारंगा (1961)

साहिर लुधियानवी से फ़िल्मी दुनिया में पहला गीत सरदार मलिक ने फ़िल्म ‘खेत’ में लिखवाया था। उस फ़िल्म में प्लेबैक मीना कपूर दे रहीं थीं। पर वह फ़िल्म रिलीज़ न हो सकी। गाने के बोल थे -‘तंग आ चुके हैं कश्मकशे ज़िन्दगी से हम।’ फ़िल्म प्रदर्शित न होने पर साहिर ने वह गीत वापस ले कर गुरुदत्त की फ़िल्म ‘प्यासा‘ (मोहम्मद रफी) में दे दिया। बाद में यह गीत आशा भोंसले की आवाज़ में फ़िल्म ‘लाइट हाउस‘ (1958) में भी शामिल किया गया। मशहूर शायर मजाज़ लखनवी (असग़र उल हक़) रिश्ते में जां निसार अख़्तर के साले (जावेद अख़्तर के मामा) लगते थे। वे भी कुछ अरसे के लिये बम्बई की फ़िल्मी दुनिया में क़िस्मत आज़माने आये थे। इस महानगर में मिली बेरुख़ी और उपेक्षा से वे हताश हो गये। रातों को देर तक बेवजह मैरीन ड्राइव पर घूमते रहते थे। वहाँ की रोशनी और चमक धमक के बीच वे अपने आपको बेहद अकेला पाते थे । उस कुंठा और हताशा में उन्होंने एक कविता लिखी थी- ‘आवारा।’

शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
ग़ैर की बस्ती है कब तक दरबदर मारा फिरूँ
अय ग़मे दिल क्या करूँ , अय वहशतेदिल क्या करूँ

उन दिनों वे दो महीने तक सरदार मलिक के साथ उनके घर में रहे थे। उन्हें शराब की गहरी लत थी। रात में शराब के नशे में वे थोड़ी थोड़ी देर में गहरी साँस ले कर बोल जाते थे -‘क्या करूँ?, क्या करूँ ?’ इस ‘क्या करूँ’ को सरदार मलिक ने फ़िल्म ‘ठोकर’ (1953, शम्मी कपूर , श्यामा) में इस्तेमाल कर लिया। मजाज़ की वह ‘आवारा’ कविता तलत महमूद की आवाज़ में एक ख़ूबसूरत गीत की शक्ल में ढल गयी – “अय ग़मे दिल क्या करूँ, अय वहशतेदिल क्या करूँ, क्या करूँ, क्या करूँ”  यह बारबार ‘क्या करूँ’ की बेचारगी सुनने वाले के सीने में गहरे उतर जाती है।

इस टैण्डम सांग का फ़ीमेल वर्शन आशा भोंसले की आवाज़ में है। पर उस गीत का सिर्फ मुखड़ा -‘अय ग़मेदिल क्या करूं’ मजाज़ का है बाक़ी पूरा गीत अलग हर्ष टण्डन ने लिखा है।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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