गीत – तेरा जलवा जिसने देखा
वो दीवाना हो गया
फ़िल्म – लैला मजनू (1945)
संगीतकार – गोविन्द राम
गीतकार – तनवीर नक़वी
गायक – मोहम्मद रफी, खान मस्ताना, एस डी बातिश

पहले हमारी फ़िल्मों में सब कलाकारों को अपने गाने ख़ुद ही गाने पड़ते थे। जब प्लेबैक टेकनीक सामने आई तो अभिनेता और गायक अलग अलग होने लगे। इसके बावज़ूद हमारे सामने ऐसे कलाकार आते रहे जो दोनों कलाओं में माहिर थे। किशोर कुमार उसमें सर्वोपरि हैं। तलत महमूद ने भी अपने कैरियर की शुरुआत सिंगिंग हीरो के रूप में की थी । नायक के रूप में उनकी कुछ फ़िल्में हैं – वारिस, दिले नादान, लालारुख़, एक गाँव की कहानी, सोने की चिड़िया वग़ैरह। पर उन्हें नायक के तौर पर ज़्यादा सफलता नहीं मिली। गायक वे अपनी क़िस्म के एक अनूठे थे। ग़ज़लों और दर्द भरे नग़मों के लिये उनका कोई सानी नहीं है। उनकी मखमली और रेशमी आवाज़ का जादू आज भी सर चढ़ कर बोलता है।
एक अन्य प्रसिद्ध गायक जिन्होंने हीरो बनने की कोशिश की उनका नाम है – मुकेश। उनकी बतौर हीरो आई फ़िल्में हैं – निर्दोष, दुखसुख, आदाब अर्ज़, माशूक़ा, अनुराग आदि। इसमें से किसी भी फ़िल्म को सफलता नहीं मिली। उन्हें सिनेमा के पर्दे पर अगर याद किया जाता है तो फ़िल्म -‘आह‘ के लिये। ‘आह’ में मेहमान भूमिका में उन्होंने गाड़ीवान का रूप धार कर एक बड़ा ख़ूबसूरत गीत गाया था – ‘छोटी सी ये ज़िन्दगानी रे’। गायक के रूप में अलबत्ता मुकेश ने नये शिखर छुये और अपार सफलता पाई।

पचास और साठ के दशक में सफलता का दूसरा नाम मोहम्मद रफ़ी था। पर्दे पर उनकी छोटी छोटी झलकें दो फ़िल्मों में दिखलाई दीं। फ़िल्म – ‘जुगनू ‘(1947) में दिलीप कुमार और नूरजहाँ की जोड़ी थी। इसके निर्माता और निर्देशक शौक़त हुसैन रिज़वी, नूरजहाँ के शौहर थे । फ़िल्म में संगीत फ़िरोज़ निज़ामी का था और गीतकार कई थे – तनवीर नग़मी, असग़र सरहदी, नक़्शब, एम जी अदीब (अदीब सहारनपुरी), कतील शिफाई। इस फ़िल्म के एक गीत के छोटे हिस्से में मोहम्मद रफ़ी पर्दे पर गाते नज़र आते हैं। गीत रफ़ी साहब और एक अनाम गायक के स्वर में है – वो अपनी याद दिलाने को एक इश्क़ की दुनिया छोड़ गये, जल्दी में लिपिस्टिक भूल गये , रूमाल पुराना छोड़ गये

गीत में मोहम्मद रफी अपनी गाई लाइनों के अलावा उस अनाम गायक की एक लाइन पर होंठ हिलाते हैं। एक अंतरा है-

मुफ़लिस थे जनाबे मजनू भी
सुनते हैं जब उनकी मौत आई
पाकिट से ना निकली इक पाई
लैला का वो कुत्ता छोड़ गये

इस अंतरे में रफ़ी साहब की गाई लाइनें दिलीप कुमार गाते हैं और अनाम गायक की गाई अंतिम पंक्ति ‘लैला का वो कुत्ता छोड़ गये’ पर्दे पर मोहम्मद रफ़ी गाते हुये दिखलाई पड़ते हैं। फ़िल्म – ‘जुगनू’ से पहले मोहम्मद रफी ‘लैला मजनू (1945) में पर्दे पर झलक दिखला चुके थे। फ़िल्म के मुख्य कलाकार नज़ीर, स्वर्णलता, गोप, के एन सिंह, एम इस्माइल आदि थे । मोहम्मद रफी, खान मस्ताना, एस डी बातिश की गाई इस क़व्वाली में दाढ़ी में मोहम्मद रफ़ी गाते हुये देखे जा सकते हैं –

तेरा जलवा जिसने देखा
किस मस्त नज़र ने देखा
मैं मस्ताना हो गया
मैं बेगाना हो गया
तेरा जलवा जिसने देखा
वो दीवाना हो गया।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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