गीत – ये तेरी सादगी, ये तेरा बांकपन
जानेबहार जानेचमन, हाय तौबाशिकन
फ़िल्म – शबनम (1964)
संगीत निर्देशिका – उषा खन्ना
गीतकार – जावेद अनवर
गायक – मोहम्मद रफ़ी

चालीस के दशक में नर्गिस की माँ जद्दनबाई ने अपनी प्रोडक्शन कम्पनी  ‘नर्गिस आर्ट्स कन्सर्न्स‘ के झंडे तले बनने वाली फ़िल्मों जैसे ‘रोमियो जूलियट (1949), ‘प्यार की बातें (1951), दरोगाजी ( 1949 ) आदि के लिये नये गीतकार मनोहर खन्ना से गीत लिखवाये। बाद में इन मनोहर खन्ना ने नाम बदल बदल कर कई फ़िल्मों में गीत लिखे। इन्होंने जावेद अनवर, के मनोहर, एम के जावेद आदि नामों से भी फ़िल्मों के गीत लिखे। ये एक सरकारी कर्मचारी थे तो संभवतः अपनी पहचान छिपाने के लिये इन्हें ऐसा करना पड़ा। इनकी एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह है कि ये संगीत निर्देशिका उषा खन्ना के पिता हैे।

मनोहर खन्ना और इंदीवर घनिष्ठ मित्र थे। इन्दीवर उषा खन्ना को फ़िल्मालय के एस मुखर्जी के पास ले कर गये। शुरू में उषा खन्ना गायिका बनना चाह रहीं थीं। लेकिन एस मुखर्जी के सुझाव पर उन्होंने गीतों की धुन बनाने पर अपना ध्यान और ऊर्जा केन्द्रित कर ली। उनकी धुनों से प्रभावित हो कर एस मुखर्जी ने उन्हें ‘दिल देके देखो‘ और ‘हम हिन्दुस्तानी‘ के संगीत निर्देशन की कमान थमा दी।

हम हिन्दुस्तानी‘ में उनके पिता ने के मनोहर के नाम से गीत लिखे। बाद में भी उषा खन्ना के संगीत निर्देशन वाली फ़िल्मों में वे विभिन्न नामों से गीत लिखते रहे। कुछ लोकप्रिय गीत जो इन पिता पुत्री की जोड़ी के हैं – ‘मैंने रक्खा है मोहब्बत अपने अफ़साने का नाम’ (शबनम), ‘ हाय तबस्सुम तेरा’ (निशान), ‘अपने लिये जिये तो क्या जिये’ (बादल)। उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में जावेद अनवर/मनोहर खन्ना ने जिन फ़िल्मों के लिये गीत लिखे वे हैं – मैं हूँ अलादीन, बादल, दिलरुबा, ट्रिप टू मून, फ़रेब, रात अंधेरी थी, आ जा सनम, निशान, शबनम इत्यादि।

मनोहर खन्ना फ़िल्म – ‘पम्पोश‘ (1953) के गीतकार होने के साथ साथ संगीतकार भी थे। उषा खन्ना ने अमीन सायानी को एक इंटरव्यू में बतलाया था कि उनके पिता का तख़ल्लुस ‘जावेद’ था तथा ‘अनवर’ उनके एक गहरे दोस्त थे। दोनों की जोड़ी गीत लिखती थी। ‘अनवर’ शायद राहिल गोरखपुरी थे जिन्होंने टीपू सुल्तान (1959), दीप जलते रहे (1959), महलों के ख़्वाब (1960), मैंने जीना सीख लिया (1959),  ख़ूबसूरत धोखा (1959) आदि फ़िल्मों के भी गीत लिखे थे।

फ़िल्म – ‘शबनम’ में महमूद और विजयलक्ष्मी ने अभिनय किया था। इनकी जोड़ी पर पिता पुत्री की जोड़ी का लिखा और संगीतबद्ध किया मीठा सा गीत फ़िल्माया गया था । स्वरों से अदाकारी महान मोहम्मद रफ़ी ने की थी – ये तेरी सादगी, ये तेरा बांकपन, जाने बहार जानेचमन, तौबा शिकन

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी

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