गीत – याहू , चाहे कोई मुझे जंगली कहे
फ़िल्म – जंगली (1961)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – शैलेन्द्र
गायक – मोहम्मद रफी
प्रयागराज एक लेखक, निर्देशक, अभिनेता, गायक, गीतकार सब कुछ एक साथ हैं। युवावस्था में वे पृथ्वी थियेटर से जुड़े हुये थे। शशि कपूर के हमउम्र होने से उनसे घनिष्ठता हो गयी। पृथ्वी थियेटर के नाटकों में राम गांगोली (‘आग’ के संगीत निर्देशक) के संगीत में उन्होंने कई गीत गाये थे। आग, आवारा, प्रोफ़ेसर, सच्चा झूठा आदि फ़िल्मों में उन्होंने छोटे छोटे रोल भी किये। फिर स्क्रिप्ट राइटर के रूप में उनकी पहली फ़िल्म ‘जुआरी‘ (1968, नन्दा, शशि कपूर) थी। अंग्रेज़ी फ़िल्म ‘हाउसहोल्डर‘ और ‘शेक्सपियरवाला‘ के हिन्दी संवाद उन्होंने लिखे। फिर उनके काम का सिलसिला मनमोहन देसाई के साथ फ़िल्म ‘सच्चा झूठा‘ (1970, राजेश खन्ना, मुमताज़) से शुरू हुआ तो आगे लगभग पन्द्रह फ़िल्मों तक सफलता से चलता रहा। अमर अकबर एंथोनी, नसीब, धर्मवीर, सुहाग आदि वह प्रसिद्ध फ़िल्में हैं जिनके साथ लेखक के रूप में प्रयागराज का नाम जुड़ा रहा। बतौर फ़िल्म निर्देशक पोंगा पंडित (1975, रणधीर कपूर, नीता मेहता), चोर सिपाही (1977, शशि कपूर, विनोद खन्ना, शबाना आज़मी, परवीन बाबी), गिरफ़्तार (1985), क़ुली(1983) आदि उल्लेखनीय फ़िल्में हैं।
मनमोहन देसाई की फ़िल्म ‘क़ुली‘ पहले केवल प्रयागराज डायरेक्ट कर रहे थे। लेकिन निर्देशक के रूप में मनमोहन देसाई का नाम न होने से डिस्ट्रीब्यूटर्स फ़िल्म की क़ीमत कम लगा रहे थे। अन्ततः मनमोहन देसाई ने निर्देशक के रूप में अपना भी नाम जोड़ा। पर ऊपर नाम प्रयागराज का ही रहा, दूसरा उनका नाम नीचे आता था। अमिताभ बच्चन की दुर्घटना के कारण ‘क़ुली’ फ़िल्म इतिहास में ना भूलने वाली फ़िल्मों में शामिल हो चुकी है।
सुबोध मुखर्जी की फ़िल्म ‘जंगली‘ (1961) का शुरू में नाम ‘हिटलर‘ रखा गया था। फिर ‘जंगली’ नाम अधिक उपयुक्त समझा गया। ‘जंगली’ के टाइटिल सांग ‘चाहे मुझे कोई जंगली कहे’ के पहले ज़ोरों से ‘याहू’ का नारा लगाना था। मोहम्मद रफ़ी के ज़ोरों से चिल्लाने के साथ गाना गाने में कुछ कठिनाई आ सकती थी। इस कारण सोचा गया कि ‘याहू’ की ‘वार क्राई (war cry)’ जयकिशन लगायेंगे। रिहर्सल के दौरान जयकिशन के चिल्लाने पर लगा कि वांछित असर नहीं पैदा हो रहा है। तब शम्मी कपूर को प्रयागराज याद आये जिन्हें वे पृथ्वी थियेटर के ज़माने से जानते थे और उन्हें छोटे भाई जैसा स्नेह देते थे। प्रयागराज बुलाये गये।
उनकी आवाज़ में साउण्ड रिकार्डिस्ट मीनू कट्रक ने लगभग दस बार ‘याहू’ की पुकार रिकार्ड की। उसमें से दो ओके की गयीं। कई कई बार ज़ोरों से ‘याहू’ चिल्लाने से प्रयागराज के गले में गहरी ख़राश आ गयी जिसे ठीक होने में लगभग दो माह लग गये। पर इसका उन्हें अफ़सोस नहीं। उन्हें उसका यथेष्ट पारश्रमिक मिला और वह अमर गीत और ‘याहू’ का नारा दर्शकों/श्रोताओं के चेहरे पर आज पचपन साल बाद भी मुस्कान ले आने में समर्थ है।
‘याहू! चाहे कोई मुझे जंगली कहे,
कहने दो जी कहता रहे,
हम प्यार के तूफ़ानों में घिरे हैं,
हम क्या करें?’
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।