गीत – क़समें हम अपनी जान की खाये चले गये
फिर भी वो एतबार ना लाये चले गये
फ़िल्म – मेरे ग़रीबनवाज़ (1973)
संगीतकार – कमल राजस्थानी
गीतकार – महबूब सरवर
गायक – अनवर

नये गायकों द्वारा स्थापित गायकों की नक़ल एक सामान्य बात है। कुन्दन लाल सहगल के ज़माने में हर नया गायक उनकी शैली में गाने की कोशिश करता था। मुकेश (दिल जलता है तो जलने दे, फ़िल्म – पहली नज़र) और किशोर कुमार (मरने की दुआयें क्यों माँगू, फ़िल्म – ज़िद्दी) के आरंभिक गीतों पर यह प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। बाद में इन दोनों ने अपनी स्वतंत्र मौलिक शैली विकसित की। आने वाले समय में उनकी नक़ल करने वाले गायक भी सामने आये। मुकेश की गायन परम्परा मनहर, नितिन मुकेश, कमलेश अवस्थी आदि ने आगे बढ़ाई तो किशोर कुमार की नक़ल कर सफल होने वालों में कुमार शानू, अभिजीत के नाम सामने आते हैं। हेमन्त कुमार से मिलती जुलती आवाज़ वाले गायकों के गीत भी खासे लोकप्रिय हुये जैसे – सुबीर सेन (आस का पंछी , कठपुतली , अपने हुये पराये), द्विजेन मुखर्जी (माया, हनीमून, सपन सुहान, मधुमती) और शिवाजी चट्टोपाध्याय (1942 ए लवस्टोरी)।

मोहम्मद रफ़ी के गायन पर शुरू में जी एम दुर्रानी का असर था तो उनकी तरह गाने वाले बाद की पीढ़ी के कई गायक हैं – सोनू निगम , शब्बीर कुमार , मोहम्मद अज़ीज़ आदि। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ से बहुत मिलती जुलती एक आवाज़ है गायक अनवर की। उनके गाये गीतों को सुन कर लोगों को भ्रम हो जाता था कि मोहम्मद रफ़ी गा रहे हैं।
अनवर ने सबसे पहले फ़िल्म ‘मेरे ग़रीबनवाज़’ (1973) में एक गीत गाया था -‘ क़समें हम अपनी जान की खाये चले गये’। जब इस गीत की मिक्सिंग चल रही थी तब मोहम्मद रफ़ी वहाँ मौजूद थे। गीत सुन कर वे अपने सेक्रेटरी से पूछने लगे कि यह गीत हमने कब रिकार्ड कराया था ? इसी तरह की कहानी मुकेश के ‘दिल जलता है’ गीत की भी प्रसिद्ध है कि सहगल साहब पूछने लगे थे कि यह गाना मैंने कब गाया?

अनवर के गाये अन्य हिट गीत हैं – तेरी आँखों की चाहत में मैं सब कुछ लुटा दूँगा, हमसे का भूल हुई (दोनों गीत – जनता हवलदार) , क़ुरबानी कुरबानी अल्ला को प्यारी है क़ुरबानी (क़ुरबानी), सोणी मेरी सोणी रब से ज़्यादा तेरा नाम लेता हूँ (सोहनी महिवाल) , मोहब्बत अब तिजारत बन गई है (अर्पण), हाथों की चंद लकीरों का (विधाता) आदि।  अनवर का कैरियर ऊँची उड़ान भरने वाला था पर उनसे कुछ ग़लतियाँ हो गईं जिसके कारण वे आगे न बढ़ सके। अनवर ने सुमन कल्याणपुर और कमलेश अवस्थी के साथ मनमोहन देसाई की फ़िल्म ‘नसीब‘ के लिये एक गीत रिकार्ड कराया था -‘ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है’।

यह गीत वे अमिताभ बच्चन के लिये गा रहे थे। उन दिनों वे एक गीत का पारश्रमिक पाँच हज़ार रुपये लेते थे। पर उन्होंने इस गीत के लिये छः हज़ार रुपयों की माँग रख दी। यह बात जब मनमोहन देसाई को पता चली तो उन्हें बहुत बुरा लगा कि अनवर सबसे पाँच हज़ार लेता है और हमसे छः हज़ार माँग रहा है। इसके बाद उन्होंने अनवर के बजाय शब्बीर कुमार से अमिताभ बच्चन के लिये प्लेबैक लेना शुरू कर दिया।

अपनी इस ग़लती से अनवर ने कोई सीख न ली और आर के फ़िल्म्स की फ़िल्म ‘प्रेम रोग‘ में ‘ये प्यार था या कुछ और था’ गीत गाने के लिये ज़्यादा पारश्रमिक माँग बैठे। इस बार ऋषि कपूर नाराज़ हो गये। उनका कहना था कि राज कपूर की फ़िल्म में मौक़ा मिलने को लोग सौभाग्य समझते हैं और अनवर नखरे दिखा रहा है । ‘ प्रेमरोग ‘ के सारे गीत अनवर गाने वाले थे]। रिहर्सल भी हो चुकी थी। पर वे गाने उनसे वापस ले कर सुरेश वाडकर को दे दिये गये।

इन सब ग़लतियों के कारण अनवर का कैरियर ज़मीन पर आ गया। आज उन्हें अपनी बेवक़ूफ़ियों (उन्हीं के शब्द हैं) का एहसास होता है। पर अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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