गीत – तुम बिन जाऊँ कहाँ, कि दुनिया में आ के, कुछ न फिर चाहा कभी तुमको चाह के
फ़िल्म – प्यार का मौसम (1969)
संगीतकार – राहुलदेव बर्मन
गीतकार – मजरूह सुल्तानपुरी
गायक – मोहम्मद रफी/किशोर कुमार

बिनाका गीतमाला‘ के सुप्रसिद्ध उद्घोषक अमीन सायानी ने रेडियो पर विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी आवाज़ देने के अलावा कुछ फ़िल्मों में छिटपुट भूमिकायें भी की थीं जैसे – भूत बंगला, तीन देवियाँ, ये दिल किसको दूँ इत्यादि। निर्देशक गोविंद सरैया जब ‘सरस्वती चन्द्र‘ फ़िल्म का निर्माण शुरू करने जा रहे थे तब अमीन सायानी की आवाज़ से प्रभावित हो कर वे उन्हें अपनी फ़िल्म में नायक बनाना चाह रहे थे। इस सिलसिले में वे अमीन सायानी से मिलने गये पर फिर बात आगे बढ़ी नहीं। अमीन सायानी मज़ाक़ में कहते हैं कि भाई वो एक गंभीर विषय पर फ़िल्म बनाने जा रहे थे, कोई कामेडी फ़िल्म थोड़े ही कि मुझे हीरो ले लेते। ‘सरस्वती चन्द्र’ में फिर नूतन के साथ नये अभिनेता मनीष ने काम किया था।

एक बार अमीन सायानी को सूझा कि उन्हें फ़िल्म बनाना चाहिये। उन्होंने अभिनेत्री तनूजा से बात कर उन्हें अपनी फ़िल्म में नायिका बनने के लिये राज़ी कर लिया। फ़िल्म का टाइटिल भी उन्होंने रजिस्टर करवा लिया – ‘प्यार का मौसम‘। लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि फ़िल्म बनाना उनके बूते की बात नहीं है और वह योजना आगे बढ़ाने के बजाय रद्द कर दी गई।

निर्माता , निर्देशक एवं लेखक नासिर हुसैन सफल फ़ार्मूला फ़िल्मों के एक जाने माने नाम हैं । कहा जाता है कि वे एक कहानी ले कर बम्बई आये थे और हमेशा उसी कहानी को धो-पोंछ कर फिर से नई फ़िल्म बना देते थे और वह फ़िल्म भी हिट रहती थी। फ़िल्म ‘दिल देके देखो‘ में उन्होंने आशा पारेख को पहली बार नायिका बनाया फिर बरसों बरस जब तक आशा पारेख की नायिका बनने की उमर रही उन्हें अपनी फ़िल्मों की नायिका बनाते रहे। इस सिलसिले की अंतिम फ़िल्म ‘कारवाँ‘ थी।

नासिर हुसैन फ़िल्म ‘बहारों के सपने‘ की असफलता के बाद नई फ़िल्म की योजना बना रहे थे। नायिका आशा पारेख और कहानी वही सदाबहार होना थी। नायक शशि कपूर को साइन कर फ़िल्म के लिये किसी आकर्षक नाम की तलाश में थे। उन्हीं दिनों अमीन सायानी से भी उन्होंने कुछ टाइटिल सुझाने की बात की। अमीन साहब ने जो टाइटिल अपनी फ़िल्म के लिये रजिस्टर करा रखा था वह नासिर हुसैन को पेश कर दिया – ‘प्यार का मौसम’।

‘प्यार का मौसम’ के संगीतकार राहुल देव बर्मन ने इस फ़िल्म में एक छोटी हास्य भूमिका भी निभाई थी। फ़िल्म के क्रेडिट्स में अभिनेताओं की नामावली में उनका नाम ‘पंचम’ आता है।
फ़िल्म का एक मुख्य गीत था जो पिता भारत भूषण और पुत्र शशि कपूर के ऊपर अलग अलग फ़िल्माया जाना था – ‘तुम बिन जाऊँ कहाँ कि दुनिया में आ के’। यह दो पहलू वाला ‘टैण्डम सांग’ मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार की आवाज़ों में रिकार्ड कराया गया। पर्दे पर शशि कपूर के लिये मोहम्मद रफ़ी और भारत भूषण के लिये किशोर कुमार की आवाज़ों का उपयोग किया गया। उन दिनों लोगों के लिये यह बहस का मुद्दा था कि किशोर कुमार का वर्शन बेहतर है या मोहम्मद रफ़ी का? इसका तो यही जवाब है – पसंद अपनी अपनी, ख़याल अपना अपना।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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