Rating 3/5
Directed by Late Rajesh Pillai
Produced by Deepak Dhar, Sameer Gogate, Sameer Rajendran
Screenplay by Suresh Nair
Story by Bobby Sanjay
Starring Manoj Bajpayee, Jimmy Shergill, Prosenjit Chatterjee, Parambrata Chatterjee,
Sachin Khedekar, Amol Parashar, Vishal Singh, Divya Dutta, Nikita Thukral,
Richa Panai, Kaveri
Music by Mithoon
Cinematography Santhosh Thundiyil, Anil Lal
Edited by Nishant Radhakrishnan, Mahesh Narayanan
Production Company Endemol India
Distributed by Fox Star Studios
Release dates 6 May 2016
दिवंगत राजेश पिल्लै की मलयालम सुपरहिट थ्रिलर ‘ट्रैफिक’ का हिंदी रीमेक आपको थिएटर की कुर्सी से बांधे रखने के लिए गिने-चुने विकल्प ही सामने रखता है, जिनमें से एक तो है फिल्म की हद इमोशनल स्टोरीलाइन, और मनोज बाजपेयी का बेहद सटीक, संजीदा और समर्पित अभिनय. तकनीकी दृष्टि से फिल्म के कमज़ोर पल हों या कथानक को रोमांचक बनाये रखने के लिए नाटकीयता भरे उतार-चढ़ाव, मनोज बड़ी मुस्तैदी, ख़ामोशी और शिद्दत से ड्राइविंग सीट पर बैठे-बैठे पूरी फिल्म को अकेले खींच ले जाते हैं. हालाँकि अच्छे और नामचीन अभिनेताओं की एक पूरी जमात आपको इस फिल्म का हिस्सा बनते दिखाई देती है, पर एक मनोज ही हैं जिनसे, जिनके अभिनय से और जिनकी कोशिशों से आप लगातार जुड़े रहते हैं…हमेशा!
सच्ची घटनाओं को आधार बना कर, ‘ट्रैफिक’ मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत एक ऐसी दिलचस्प और रोमांचक कहानी आप तक पहुंचाती है, जहां जिंदगी तमाम मुश्किलों और मायूसियों के बावज़ूद आखिर में जीत ही जाती है. कभी न हार मानने वाले इसी इंसानी जज़्बे को सलाम करती है ‘ट्रैफिक’! फिल्मस्टार देव कपूर (प्रोसेनजीत चटर्जी] की बेटी को पुणे में जल्द से जल्द हार्ट ट्रांसप्लांट की दरकार है. पता चला है कि मुंबई के एक अस्पताल में एक ऐसा ‘पॉसिबल डोनर’ है जिसके जिंदा रहने की उम्मीद अब लगभग दम तोड़ चुकी है. माँ-बाप (किटू गिडवानी और सचिन खेड़ेकर) अपने बेटे को ‘दी बेस्ट गुडबाई गिफ्ट’ देने का मन बना चुके हैं पर मुंबई से पुणे तक १६० किलोमीटर की दूरी को ढाई घंटे में पूरा करने का बीड़ा कौन उठाये? ट्रैफिक हवलदार रामदास गोडबोले (मनोज बाजपेयी) के लिए ये सिर्फ ड्यूटी बजाने का मौका नहीं है. मिशन पर जाने से पहले वो अपनी बीवी से कहता है, “पता नहीं कर पायेगा या नहीं, पर घूसखोर का लांछन लेके नहीं जीना”.
फिल्म पहले हिस्से में कई बार अपनी ढीली पकड़ और सुस्त निर्देशन से आपको निराश करती है, खास कर जब किरदार एक-एक कर आपके सामने बड़ी जल्दी-जल्दी में परोस दिए जाते हैं. फिल्म को तेज़ रफ़्तार देने के लिए, घटनाओं को घड़ी की टिक-टिक के बीच बाँट कर दिखाने का चलन भी बहुत घिसा पिटा लगता है. हालाँकि इंटरवल आपको हल्का सा असहज महसूस कराने में कामयाब होता है. दूसरे हिस्से में फिल्म जैसे एकाएक सोते हुए जग जाती है और बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ने लगती है, पर फिर ड्रामा के नाम पर जिस तरह के उतार-चढ़ाव शामिल होने लगते हैं, उनमें गढ़े होने की बू दूर से ही नज़र आने लगती है. ऐसा लगता है मानो जिंदगी की ये दौड़ अब कोई सस्ती सी विडियो गेम बन कर रह गई है, जहाँ मुश्किलें जानबूझ के हर मोड़ पे और बड़ी होती जा रही हैं. मलयालम फिल्मों में वैसे भी ये कोई नया चलन नहीं.
पियूष मिश्रा जैसे वजनी नामों के बाद भी ‘ट्रैफिक’ के संवाद उतने ही फीके और उबाऊ हैं, जितने उसके नामचीन कलाकारों के बंधे-बंधे बासी अभिनय. प्रोसेनजीत दा का किरदार जाने-अनजाने अनिल कपूर के इतना इर्द-गिर्द बुना गया है कि उससे बाहर उन्हें देख पाना मुश्किल हो जाता है. दिव्या दत्ता, किटू गिडवानी, जिम्मी शेरगिल, सचिन खेड़ेकर, परमब्रता चटर्जी सभी को हम पहले भी इस खूंटे से बंधे देख चुके हैं. सब अपने घेरे अच्छी तरह पहचानते हैं और उसे तोड़ने की पहल से बचते नज़र आते हैं.
इतने सब के बाद भी, ‘ट्रैफिक’ अपने जिंदा जज़्बे, सच्ची कहानी के तमगे, कुछेक गिनती के ही सही सचमुच के रोमांचक पलों और मनोज बाजपेयी के मजबूत कन्धों के सहारे एक अच्छी फिल्म कहलाने की खुशकिस्मती हासिल कर लेती है. मनोज मिसाल हैं, संवाद अभिनय का एक अभिन्न अंग है, मात्र एक अभिन्न अंग…पूरे का पूरा अभिनय नहीं. देखिये, अगर उनके जरिये अभिनय के बाकी रंग भी देखने हों! देखिये, अगर एक थ्रिलर देखनी हो जिसमें दिल हो, एकदम जिंदा ‘धक-धक’ धड़कता हुआ!
Written By- Gaurav Rai
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