गीत – गोविन्दा आल्हा रे आल्हा
ज़रा मटकी संभाल बृजबाला
फ़िल्म – ब्लफ मास्टर(1963)
संगीतकार – कल्याणजी आनन्दजी
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण
गायक – मोहम्मद रफी
‘जंगली’ के बाद सुबोध मुखर्जी, शम्मी कपूर के साथ ‘ब्लफ मास्टर’ नामक फ़िल्म बनाने वाले थे। यह शीर्षक उन्हें शम्मी कपूर ने सुझाया था। पर पारश्रमिक (फ़ीस) की राशि पर एकमत न हो पाने के कारण शम्मी कपूर ने वह फ़िल्म छोड़ दी। चूँकि फ़िल्म का टाइटिल शम्मी कपूर के दिमाग़ से निकला था उसे वे अपने साथ ले आये। शम्मी कपूर ने फिर वह टाइटिल मनमोहन देसाई को दिया और उन्होंने ब्लफ मास्टर(1963) का निर्देशन किया। जंगली, ब्लफ मास्टर, बदतमीज़, जानवर, पगला कहीं का जैसे टाइटिल्स शम्मी कपूर के ‘रेबेल स्टार’ वाली इमेज पर ख़ूब जंच रहे थे और फ़िल्में भी हिट हो रहीं थीं।
मनमोहन देसाई और शम्मी कपूर के व्यवसायिक सम्बन्ध आगे चल कर पारिवारिक सम्बन्धों में बदल गये। मनमोहन देसाई के इकलौते पुत्र केतन देसाई का विवाह शम्मी कपूर – गीता बाली की पुत्री कंचन कपूर के साथ हुआ है।
‘ब्लफ मास्टर’ में शम्मी कपूर के लिये प्लेबैक चार गायकों ने दिया था – हेमन्त कुमार (अय दिल अब कहीं न जा, ना किसी का मैं रहूँ ना कोई मेरा), मुकेश (सोचा था प्यार हम ना करेंगे), मोहम्मद रफी (हुस्न चला कुछ ऐसी चाल और गोविन्दा आल्हा रे) तथा शमशाद बेग़म (चली चली कैसी हवा ये चली, शम्मी कपूर नारी वेश में)।
इन सब गीतों में सर्वाधिक लोकप्रिय ‘गोविन्दा आल्हा रे’ हुआ जो आज पचास से भी अधिक वर्ष बाद भी जन्माष्टमी पर हर गली मोहल्ले में गूँजता है। मनमोहन देसाई ने ‘गोविन्दा आल्हा रे’ को मुम्बई की सड़कों पर फ़िल्माया था। इसके लिये उन्होंने खेतवाड़ी को चुना था जहाँ उनका अपना घर था। बचपन में इन्हीं सड़कों के दही हाण्डी महोत्सव में वे स्वयं शामिल होते रहे थे। गीत में मौजूद भीड़ में अधिकांश लोग उनके परिचित व दोस्त थे। मोहल्ले की छतों से लोग शम्मी कपूर, मोहन चोटी और अन्य नर्तकों पर पानी फेंक रहे थे। हर फ़िल्म की तरह शम्मी कपूर के डाँस स्टेप्स स्वतःस्फूर्त थे। उन स्टेप्स को डाँस डायरेक्टर पी एल राज ने थोड़ा सँवारने में मदद की थी।
‘दही हाण्डी’ उत्सव पर इससे पहले कोई गीत न बना था। इतने सालों बाद भी इसके टक्कर का इस त्योहार का कोई गीत नहीं आ पाया जो सुनने वालों को तन मन से थिरकने पर विवश कर दे।
जन्माष्टमी की शुभकामनायें ।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।