गूँज उठी शहनाई एक संगीतमय दुःखद प्रेम कथा है। ये 1959 की पांचवी सबसे बड़ी हिट फिल्म है जिसने बॉक्स ऑफिस पर 1,80,00,000 करोड़ रूपये कमाए। निर्माता विजय शंकर भट्ट द्वारा निर्देशित गूँज उठी शहनाई अभिनेता राजेंदर कुमार की आरंभिक फिल्मों में से सबसे बड़ी हिट फिल्म थी। यही से उनकी जुबली कुमार बनने की यात्रा आरम्भ हुई, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान सितार वादक, अब्दुल हलीम जाफर खान के बीच जुगलबंदी के लिए ये फिल्म आज भी याद की जाती है। भारत के गंगा जमुनी तहज़ीब के स्तम्भ रहे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है।
गूँज उठी शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की एकमात्र हिंदी फिल्म है कहा तो ये भी जाता है की संगीतकार के अनावशयक हस्तक्षेप से परेशान हो कर उन्होंने फिर कभी भी हिंदी फिल्मों की तरफ रुख नहीं किया हालांकि उन्होंने कुछ क्षेत्रीय भाषायों की फिल्मों के लिए उन्होंने शहनाई जरूर बजाई जिसमे 1970 के दशक की कन्नड़ भाषा की फिल्म, Sanadi Appanna प्रमुख है। इस फिल्म में पहले अभिनेत्री आशा पारीख जी को लिया गया था और कुछ सीन शूट भी हो गए थे।
निर्माता विजय भट्ट ने गूंज उठी शहनाई से आशा पारीख को इसलिए बाहर कर दिया था, क्योंकि फिल्म निर्माता विजय भट्ट का मानना था की उनमे स्टार वैल्यू नहीं है वह अभिनेत्री अमिता को लेने के पक्ष में थे। लेकिन उनका ये फैसला गलत साबित हुआ और आशा पारीख जी आगे जा कर हिंदी सिनेमा की एक प्रख्यात अभिनेत्री बनी।
प्रकाश पिक्चर की यह फिल्म एक अनाथ शहनाई वादक किशन (राजेंदर कुमार ) की कहानी हैं जिसे रघुनाथ महाराज (उल्हास ) पाल पास पोस कर बड़ा करते है। गांव राधापुर में रहने वाले गंगाराम (मनमोहन कृष्ण) की बेटी गोपी (अमिता ) और किशन दोनों आपस में प्यार करते है और शादी करना चाहते है किशन की शहनाई की जादुई धुनों की गोपी दीवानी है लेकिन गोपी की मां जमुना,(लीला मिश्रा ) गोपी की शादी शेखर (प्रताप कुमार) से बचपन में तय कर चुकी है।
जो लखनऊ के रेडियो स्टेशन में काम करता। जबकि किशन एक बेरोज़गार और गरीब है। रघुनाथ महाराज की बेटी रामकली (अनीता गृहा ) भी किशन को मन ही मन चाहती है। दूसरी और गांव का डाकिया कन्हैयां (आई एस जौहर ) जो गोपी पर बुरी नजर रखता है गाँव वालो को भड़का कर गोपी और किशन में अलगाव पैदा कर देता है किशन को गाँव छोड़ना पड़ता है। वह फैसला करता है वो कुछ बन कर वापिस लौटेगा।
किशन और गोपी की प्रेम कहानी से अंजान शेखर उसे आल इंडिया रेडिओ में नौकरी दिलवा देता है। किशन एक मशहूर शहनाई वादक के रूप में मशहूर हो जाता है जल्द ही किशन का संगीत भारत के हर कोने तक पहुँच जाता है। डाकिया कन्हैयां किशन के गोपी को लिखे पत्रों को रास्ते में ही गायब कर देता है।गोपी की शादी शेखर से होती है। किशन गोपी को बेवफा समझता है और शहनाई बजाना छोड़ देता है। गोपी किशन के वियोग में बीमार हो जाती हैऔर अंत में गोपी और किशन का दुःखद अंत होता है। दोनों मर कर एक हो जाते है।
राजेंदर कुमार, अमिता, अनीता गृहा, उल्हास, मनमोहन कृष्ण, लीला मिश्रा, आई एस जौहर, प्रताप कुमार, प्रेम धवन, राम मूरती के अभिनय से सजी गूँज उठी शहनाई एक सफल फिल्म मानी जाती है। अनीता गृहा का रोल उलझा हुआ था। लेकिन उन्हें फिल्म फेयर बेस्ट सहायक अभिनेत्री अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था। ये फिल्म वसंत देसाई के संगीत और भरत व्यास के लिखे अमर गीतों के लिए मशहूर है।
तेरी शहनाई बोले, तेरे सुर और मेरे गीत, दिल का खिलौना हाय टूट गया, कह दो कोई ना करे यहाँ प्यार, मैंने पीना सीख लिया, जीवन में पिया तेरा साथ रहे, होले होल घुंघट के पट खोल, अँखियाँ भूल गई सोना, जैसे सुरीले गीतों को लता जी, रफ़ी , गीता दत्त, ने अपनी आवाज़ में अमर कर दिया। गूँज उठी शहनाई से पहले अमीता ने बहुत कम फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन यह शायद उसके कैरियर की सबसे अच्छी फिल्म है। बिस्मिल्लाह खान साहब की शहनाई इस फिल्म खास बनाती है। गूँज उठी शहनाई उन लोगो के लिए भी खास है जो सच्चे प्रेम को आत्मा का मिलन मानते है। फिल्म भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है।
साभार:- पवन मेहरा