गीत – काश्मीर की कली हूँ मैं मुझसे न रूठो बाबूजी
फ़िल्म – जंगली (1961)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायिका – लता मंगेशकर
फ़िल्म ‘जंगली’ (1961) नायिका सायरा बानो की पहली फ़िल्म थी। उन्हें इस फ़िल्म में ‘ब्यूटी क्वीन’ के विशेषण के साथ पेश किया गया था। उनकी माँ नसीम बानो भी अपने समय में ‘परी चेहरा‘ के विशेषण से मशहूर थीं। सायरा बानो इससे पहले विदेश में पढ़ाई कर रहीं थीं। फ़िल्मी दुनिया की कठिनाइयों को जानते हुये माँ नसीम बानो नहीं चाहती थीं कि सायरा सोलह बरस की छोटी आयु में फ़िल्मों में आयें। लेकिन बेटी की रुचि देखते हुये उन्हें हामी भरनी पड़ी।
‘जंगली’ की शूटिंग श्रीनगर के शालीमार बाग़ में चल रही थी। दर्शकों की बड़ी भीड़ जुट गयी थी। सायरा बानो और शम्मी कपूर के ऊपर ‘काश्मीर की कली हूँ मैं, मुझसे न रूठो बाबूजी’ गीत फ़िल्माया जा रहा था। लोगों की भीड़ के सामने सायरा असहज महसूस कर रही थीं। ‘तुम प्यार पे ग़ुस्सा करते हो, तेरा ग़ुस्सा हमको प्यारा है’ पंक्तियों पर निर्देशक सुबोध मुखर्जी सायरा के स्टेप्स और चेहरे पर आ रहे भावों से संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे। कई रीटेक से सायरा और नर्वस हो गईं थीं। बार बार शाट ओके ना हो पाने से शम्मी कपूर झुंझला गये। सबके सामने सायरा बानो को डाँटते हुये कहने लगे, ”जब एक्टिंग नहीं आती तो क्यों फ़िल्मों में आ गयीं? भीड़ से घबरा रही हो तो क्या बुर्क़ा पहन कर एक्टिंग करोगी?” सबके सामने अपमानित हो सायरा रोने लगीं। माँ नसीम जी ने कहा कि बेटी यह तुमसे नहीं हो पायेगा। चलो छोड़ो वापस चलते हैं। सायरा बानो ने माँ की बात को चैलेंज की तरह लिया और अगले शाट में सही कर दिखाया।
शम्मी कपूर की बात उनके दिल में काँटे की तरह चुभ रही थी। उनके साथ वे ‘ब्लफ मास्टर‘ साइन कर चुकी थीं। वह फ़िल्म तो करनी थी। पर उन्होंने शम्मी कपूर से कहा कि अब आपके साथ जब एक्टिंग आ जायेगी तब ही नई फ़िल्म में काम करूँगी। ‘जंगली’ सुपरहिट रही। शम्मी कपूर और सायरा बानो की जोड़ी को बहुत पसंद किया गया। लेकिन ‘ब्लफ मास्टर’ के बाद सायरा बानो ने शम्मी कपूर के साथ बतौर नायिका कोई फ़िल्म नहीं की। बरसों बाद 1974 में ‘ज़मीर‘ में फिर सायरा ने शम्मी कपूर के साथ काम किया। इस फ़िल्म में शम्मी कपूर सायरा बानो के पिता बने थे। नायक अमिताभ बच्चन थे। ‘ज़मीर’ के सेट पर जब शम्मी कपूर मिले तो सायरा बानो ने कहा,”अब मुझे एक्टिंग आ गयी है इस कारण आपके साथ काम कर रही हूँ।”
सायरा जी की सालगिरह पर उन्हें मुबारकबाद देने के साथ ‘आज का गीत’ में ‘जंगली’ का यह गीत याद करते हैं –
काश्मीर की कली हूँ मैं मुझसे न रूठो बाबूजी
मुर्झा गयी तो फिर न खिलूँगी,
कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।