गीत – कहीं दूर जब दिन ढल जाये, सांझ की दुल्हन बदन चुराये,
चुपके से आये
फ़िल्म – आनन्द (1971)
संगीतकार – सलिल चौधरी
गीतकार – योगेश
गायक – मुकेश
गीतकार योगेश जिनका पूरा नाम योगेश गौड़ है का पहला गीत फ़िल्म –‘सखी राबिन’ (1962, रंजन, शालिनी, नीलोफर) से था – ‘तुम जो आओ तो प्यार आ जाये, ज़िन्दगी में बहार आ जाये’ (संगीतकार- राबिन बैनर्जी, गायक – मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर)। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि इस फ़िल्म के छः गाने लिखने के लिये उन्हें 25 रुपये प्रति गीत के हिसाब से कुल 150 रुपये मिले थे। जो उस समय उनके लिये एक बड़ी राशि थी । शुरू के कुछ वर्ष उन्हें सी ग्रेड की मारधाड़ वाली फ़िल्मों में ही अवसर मिले। पर उसमें भी वे अपना कौशल दिखा ही जाते थे। फ़िल्म – ‘दी एडवेंचर्स आॅफ राबिनहुड‘ (1965) में संगीतकार जी एस कोहली के संगीत में मोहम्मद रफ़ी का एक गीत याद किया जा सकता है – ‘माना मेरे हसीं सनम तू रश्के माहताब है, पर तू है लाजवाब तो मेरा कहाँ जवाब है’। यह गीत प्रशांतऔर प्रवीण चौधरी पर फ़िल्माया गया था। ज्ञातव्य है कि प्रशांत व्ही शांताराम की फ़िल्म ‘सेहरा‘ के हीरो थे।
कविराज शैलेन्द्र के निधन के बाद सलिल चौधरी किसी नये गीतकार की तलाश में थे। चूँकि सलिल दा स्वयं बांगला में अति सुन्दर कवितायें लिखते थे अतः उन्हें संतुष्ट कर पाना दुष्कर कार्य था। उनकी पत्नी गायिका सविता चौधरी के सुझाव पर वे योगेश से मिले और अपनी धुनों पर उनसे कुछ गीत लिखने के लिये कहा। पहली बार में ही सलिल दा के इम्तिहान में योगेश पास हो गये।
एक बार बासु भट्टाचार्य की एक फ़िल्म के लिये योगेश के लिखे तीन गीत मुकेश की आवाज़ में सलिल चौधरी ने रिकार्ड किये थे। बासु भट्टाचार्य की फ़िल्म तो बनी नहीं पर वे तीनों गीत निर्माता एल बी लक्ष्मण (जिन्होंने अनाड़ी, असली नक़ली, बुड्ढा मिल गया आदि फ़िल्में बनाईं थीं) को बड़े पसंद आये और उन्होंने वे तीनों गीत ख़रीद लिये। एल बी लक्ष्मण और हृषिकेश मुखर्जी ने मिल कर कई फ़िल्में बनायीं थीं। हृषिकेश मुखर्जी उन दिनों ‘आनन्द’ फ़िल्म बना रहे थे। उन्होंने जब वे गीत सुनें तो वे भी अत्यन्त प्रभावित हुये। उन्हें लगा कि उनमें से दो गीतों के बोल, संगीत और मुकेश जी का गायन सब कुछ उनकी फ़िल्म ‘आनन्द’ की कहानी के लिये सर्वथा उपयुक्त है। वे एल बी लक्ष्मण से अनुरोध करने लगे कि वे दो गीत उन्हें दे दिये जायें। आपसी सम्बंधों का लिहाज़ कर एल बी लक्ष्मण ने कहा कि दोनों गीत तो वे नहीं देंगे पर उनमें से एक गीत हृषिकेश मुखर्जी चुन सकते हैं। एक गीत हृषि दा ने चुना और दूसरा गीत एल बी लक्ष्मण ने अपनी फ़िल्म ‘अन्नदाता‘ (1972, जया भादुड़ी, अनिल धवन) में इस्तेमाल किया। साथ ही ‘अन्नदाता’ के बाकी सभी गीत भी योगेश से लिखवाये। ‘अन्नदाता’ में लिया गया गीत था – ‘नैन हमारे साँझ सकारे देखें लाखों सपने, सच ये कहीं होंगे या नहीं, कोई जाने ना यहाँ’ तथा हृषिकेश मुखर्जी ने ‘आनन्द’ के लिये जो गीत चुना था उस गीत ने गीतकार योगेश की क़िस्मत पलट दी। वे ‘सी ग्रेड’ फ़िल्मों से सीधे ‘ए ग्रेड’ की फ़िल्मों में प्रवेश पा गये। वह गीत था- कहीं दूर जब दिन ढल जाये, साँझ की दुल्हन बदन चुराये, चुपके से आये, मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाये।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।