पहलाज साहब, मैं आऊँगा।
निहलानी साहब, नमस्ते।
मैं उड़ता पंजाब। अरे! चौंकिए मत। मैं जिंदा हूँ और स्वस्थ भी। आपके आदमी अभी तक मुझे छु नहीं पाए है। कैंची लेकर घूम रहे है पूरे शहर में। कुछ तो पंजाब तक पहुँच गए है। उन्हें लगता है मैं उड़ कर वहाँ चला गया हूँ। अपने आदमियों से कह दीजियेगा की वो मुझे वहाँ ढूँढ रहें है और मैं उनका यहाँ इंतज़ार कर रहा हूँ।
ये वही लोग है जिन्हें इस देश में कुछ और गलत नहीं दिख रहा। बस एक बात को छोड़ कर की उड़ता पंजाब एक बहुत ही गलत फिल्म है। इन लोगो में से कुछ को मैंने मस्तीजादे के रिलीज़ पर सिनेमा घरो के बाहर देखा था। अभिषेक चौबे ने थोड़ा टाइम दिया तो तफरी पे निकला था। ये उसी वक्त की बात है। उस वक्त तो मुझे भी नहीं पता था की मैं साला इतना सीरियस टाइप निकलूंगा। खैर मस्तीजादे कोई ऐसी फिल्म नहीं है जिसमे कुछ आपत्तिजनक हो और अगर हो भी तो वो जनता का फैसला है की उसे देखे या न देखे। सबका अपना-अपना टेस्ट है। बहरहाल! मैं अपनी बात करता हूँ।
देखिये साहब, मैं अपने अन्दर के बुराई को देख नहीं सकता और मैं क्या, मैं तो एक फिल्म हूँ। कुछ दो घंटे की फिल्म। एक ७० साला का आदमी भी अपने अन्दर का बुरा नहीं देख सकता क्यूंकि उसको तो पता ही नहीं चलता की उसके अन्दर कितना गन्दा भरा हुआ है। लेकिन एक बात मैं आपको साफ़- साफ़ बता दूँ।
मेरे जो माँ-बाप है। उन्होंने मेरे अन्दर ऐसे संस्कार भरे है की मुझे अपने आप पर पूरा विश्वास है की किसी का कुछ बुरा नहीं करूँगा। ये भी बताता चलूँ की मेरे ढेरो माँऎ है और कई बाप। अनुराग, अभिषेक, एकता, विक्रमादित्य, सुदीप, अमित, दिलजीत, शाहिद, करीना, आलिया, सतीश, सोनू, मुन्ना, सुरेन्द्र और वो चाय वाला जो सबको सेट पे चाय पिलाता था। उसका नाम भूल रहा हूँ माफ़ कीजियेगा भूल गया। मगर उसने भी बहुत मेहनत की है मेरे पैदा होने में और उसके साथ – साथ कई लोगो ने जिनके नाम मैं यहाँ नहीं ले पा रहा हूँ। मैं जब देखता था की कितनी शिद्दत और ईमानदारी से वो मुझे बना रहे है, सवार रहे है, सजा रहे है तो यकीं नहीं होता था की कोई मुझसे इतना प्यार कर सकता है। आज जब उनको एक कोने में उदास बैठा देखता हूँ तो दुःख होता है।
मैं आपको ये इसलिए नहीं बता रहा की आप मुझ पर दया खाए और रिलीज़ कर दे। मैं आपको ये बताना चाहता हूँ की मैं इन लोगो की क़द्र कर रहा हूँ जिन लोगो ने मेरे आने के सपने देखे हैं। और जिस तरह आप मुझे बाहर लाना चाहते है, उस तरह आने से अच्छा है मैं यही दम तोड़ दूँ। लेकिन फिक्र मत करिए। मेरे हौंसले बुलंद है। मैं अगर आऊंगा तो पूरा ही आऊंगा। कोई कैंची, सेंसर, या सरकार मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
बाहर आने के बाद अगर मैं बुरा निकलता भी हूँ, तो मुझे कोई गम नहीं। मैं हर किस्म के क्रिटिसिज्म को सहने को तैयार हूँ बनाने वाले ने मुझे लोहे की तरह बनाया है। मेरे बुरा होने का समाज पे कैसे बुरा असर पड़ जाएगा, ये आप ही समझ सकते है।अगर ऐसा होता तो साध्वी प्राची, साक्षी महाराज जैसे लोगो ने तो अब तक समाज को उन जैसा ही बना दिया होता। मगर ऐसा हुआ नहीं।
समाज एक बहुत मजबूत सिस्टम है जो लोग, उनके विचार और विमर्श के ऊपर टिका हुआ है। विचार और विमर्श, समझते है ना आप ये दो शब्द। मैं उसी की ही उपज हूँ। किसी का विचार हूँ मैं और कईयों के विमर्श का कारण बन सकता हूँ। कल को शायद मुझ पर स्कूलों, कॉलेजो, चाय के ठेलो, रेलवे स्टेशनो जैसे कई स्थानों पर चर्चाये होंगी और ये चर्चाये बहुत महत्वपूर्ण होंगी। मेरे लिए नहीं इस समाज को और भी सशक्त बनाने के लिए। अगर अब विचारो को ही मिटा देंगे, तो किस समाज के कौन से तबके को सशक्त कर पाएंगे।
इसीलिए मैंने फैसला लिया है कि मैं आऊंगा और जैसा हूँ वैसा ही आऊंगा। किसी से बिना परमिशन लिए। बेबाक अपनी बात कहने। धड़ल्ले से, शान से, अपने कम्पलीट फॉर्म और शेप में, लोगो के लिए, जनता के लिए, फ़िल्मी कीड़ो के लिए, अमीरों के लिए, गरीबो के लिए और आप जैसो के लिए।
खासकर आप जैसो के लिए जो नहीं चाहता की मैं आऊँ लेट कर, तैर कर या शायद उड़ कर पर मैं आऊंगा।
धन्यवाद
उड़ता पंजाब नाम है हमारा, बता दीजियेगा सबको।