गीत – आवाज़ दे कर हमें तुम बुलाओ
मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ
फ़िल्म – प्रोफ़ेसर (1962)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायक – मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर

गुरुदत्त के दिमाग़ में सदा नये नये विचार आते रहते थे और वे समय समय पर कई फ़िल्मों का निर्माण शुरु कर देते थे। बाद में फ़िल्म की प्रगति से असंतुष्ट हो कर अथवा अन्य किसी कारण से उस प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़, आगे बढ़ कर नई फ़िल्म पर काम शुरू कर देते थे। ‘गौरी‘ (जिसमें गीतादत्त बतौर सिंगिंग स्टार पेश किये जाने वाली थीं) के अलावा भी कई प्रोजेक्ट्स ऐसे थे जिनकी कल्पना गुरुदत्त ने की थी पर वे मूर्त रूप न ले पाये।

सादिक़ को निर्देशक बना कर गुरुदत्त ने एक बांगला फ़िल्म का निर्माण शुरू किया था – ‘एक टुकु छोआ‘ ( A tender touch )। यह शीर्षक रवीन्द्र संगीत के एक गीत ‘एक टुकु छोआ लागे, एक टुकु कोथा सुनी’ से लिया गया था। गुरुदेव के इस गीत को किशोर कुमार के अलावा और कई गायकों ने भी गाया है। इस फ़िल्म में विश्वजीत और नन्दा प्रमुख भूमिकाओं में थे। यह गुलशन नन्दा के उपन्यास ‘नील कमल‘ पर आधारित थी। इसे भी अधूरा छोड़ दिया गया। बाद में राम माहेश्वरी ने ‘नील कमल‘ फ़िल्म बनाई जिसमें वहीदा रहमान, राज कुमार, मनोज कुमार ने अभिनय किया था।

गुरुदत्त का एक कामेडी फ़िल्म ‘ श s s s‘ बनाने का विचार था। पर वह विचार साकार रूप न ले सका। अपने सहायक निरंजन को निर्देशन की बागडोर थमा कर उन्होंने एक सस्पेंस फ़िल्म – ‘राज़‘ शुरू की थी। सुनीलदत्त और वहीदा रहमान (डबल रोल) उसके सितारे थे। बाद में सुनीलदत्त की जगह स्वयं गुरुदत्त ने नायक की जगह ले ली थी। कुछ रील बनने के बाद फ़िल्म की प्रगति से असंतुष्ट हो कर उन्होंने वह प्रोजेक्ट अधूरा छोड़ दिया था। बाद में उस कहानी पर राज खोसला ने ‘वो कौन थी’ फ़िल्म बनाई थी।

‘राज़’ अधूरा छोड़ने के बाद गुरुदत्त ने निरंजन को ‘मोती की मौसी‘ का निर्देशन सौंपा। तनूजा और सलीम (जावेद वाले) इसके मुख्य सितारे थे। निरंजन की असमय मृत्यु से यह प्रोजेक्ट अधूरा रह गया। गुरुदत्त फ़िल्म्स की पहली रंगीन फ़िल्म के रूप में वे अरेबियन नाइट्स की कहानी पर आधारित ‘क़नीज़’ की शूटिंग शुरू कर चुके थे। सिमी ग्रेवाल उस फ़िल्म की नायिका थीं। पर प्रेस में छप रही आलोचनाओं (कि गुरुदत्त जैसा गंभीर फ़िल्मकार अरेबियन नाइट्स/अलीबाबा पर फ़िल्म बना रहे हैं) से प्रभावित हो कर उन्होंने कुछ दिनों की शूटिंग के बाद वह प्रोजेक्ट ड्राप कर दिया।

‘प्रोफ़ेसर’ के स्क्रीनप्ले और डायलाग्ज़ उन्होंने अबरार अल्वी से लिखवाये थे। उसका निर्देशन भी वे उन्हीं से करवाना चाह रहे थे। पर अबरार अल्वी इसके लिये तैयार नहीं हुये। किशोर कुमार और वहीदा रहमान को इस फ़िल्म में लेने की योजना थी। पर अन्य कई प्रोजेक्ट की तरह यह फ़िल्म भी परवान न चढ़ पाई। अबरार अल्वी के स्क्रीनप्ले पर कुछ वर्षों बाद ईगल फ़िल्म्स के बैनर तले निर्माता एफ सी मेहरा ने निर्देशक लेख टण्डन से ‘प्रोफ़ेसर’ फ़िल्म बनवाई। फ़िल्म के मुख्य सितारे शम्मी कपूर, कल्पना, ललिता पवार, प्रवीण चौधरी आदि थे। सलीम (सलमान खान के पिता) ने भी इस फ़िल्म में अभिनय किया था। पहले यह नायिका कल्पना की पहली फ़िल्म समझी जा रही थी। बाद में पता चला कि कल्पना पहले एक छोटे बजट की फ़िल्म ‘प्यार की जीत’ में महिपाल के साथ काम कर चुकी हैं। उन्होंने यह तथ्य छुपा रखा था। इस कारण ही फ़िल्म के क्रेडिट्स/टाइटिल्स से उनके नाम के पहले लिखा ‘इण्ट्रोड्यूसिंग’ हटा दिया गया ।

‘प्रोफ़ेसर’ इतनी सफल रही कि इसे फिर तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में भी बनाया गया। आगे चल कर हिन्दी में भी कहानी में थोड़ा रद्दोबदल कर (नायक के बदले नायिका को बूढ़ा बना कर) दो फ़िल्में ‘दो झूठ’ (मौसमी चटर्जी, विनोद मेहरा) और ‘दिल तेरा आशिक़’ (माधुरी दीक्षित , सलमान खान , अनुपम खेर) बनाई गयीं। ‘प्रोफ़ेसर’ के संगीत के लिये शंकर जयकिशन को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला था। इसके लोकप्रिय गीत हैं- अय गुलबदन, अय गुलबदन, मैं चली मैं चली, पीछे पीछे जहाँ, खुली पलक में झूठा ग़ुस्सा, हमरे गाँव कोई आयेगा और- ‘आवाज़ दे कर हमें तुम बुलाओ, मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ।’

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी

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