गीत – दिल पुकारे आ रे आरे, अभी ना जा मेरे साथी
फ़िल्म – ज्वेल थीफ़ (1967)
संगीतकार – सचिनदेव बर्मन
गीतकार – मजरूह सुल्तानपुरी
गायक – मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर
साठ के दशक के पूर्वार्ध में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी के बीच मनमुटाव हो गया था। लता मंगेशकर की अगुवाई में अधिकांश गायक माँग कर रहे थे कि गानों की रायल्टी में गायकों को भी उनका हिस्सा मिलना चाहिये । लता जी के साथ मुकेश, तलत महमूद, किशोर कुमार, मन्ना डे आदि गायक इस विषय में सहमत थे। केवल मोहम्मद रफ़ी इस बात के लिये राज़ी नहीं थे। उनका कहना था कि जब गाने अथवा फ़िल्म के हिट या फ़्लॉप होने की गायक कोई गारण्टी नहीं दे सकते तो उन्हें रायल्टी पर अपना हक़ नहीं जमाना चाहिये। गाने का मेहनताना तो उन्हें मिल ही जाता है।
इस विषय पर सभी पार्श्वगायकों की मीटिंग में जब रफ़ी साहब से उनका मत पूछा गया तो अंत में उन्होंने कह दिया कि मैं क्या कह सकता हूँ, ‘महारानी ‘ से पूछो। वो जो चाहेंगी होगा। लता अपने लिये ‘महारानी ‘ की व्यंगोक्ति से एकदम नाराज़ हो गयीं। हालाँकि रफ़ी कई मौक़ों पर उन्हें पहले भी ‘महारानी’ बोल चुके थे।
बात इतनी बढ़ी कि दोनों ने साथ गाना बन्द कर दिया। 1963 – 1967 के दौरान उन दोनों ने कोई गीत साथ नहीं गाया। संगीतकार अगर गीत के लिये लता मंगेशकर को आवश्यक समझते तो सहगायक के रूप में महेन्द्र कपूर को ले लेते थे। यदि गीत में उन्हें मोहम्मद रफ़ी आवश्यक लगते तो वे सहगायिका के रूप में सुमन कल्याणपुर अथवा आशा भोंसले से गीत रिकार्ड करवा लेते थे । लता मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर को बताया था कि बाद में मोहम्मद रफ़ी ने अपनी ग़लती मान कर उन्हें पत्र लिखा था और उन दोनों के बीच सम्बन्ध सामान्य हो गये थे। लेकिन लता मंगेशकर के इस दावे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुये रफ़ी साहब के बेटे शाहिद रफ़ी ने कहा था कि रफ़ी साहब ने ऐसी कोई माफ़ीनामे की चिट्ठी नहीं लिखी थी।
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अगर लताजी के पास ऐसा कोई ख़त है तो वे उसे सबके सामने लायें। मोहम्मद रफ़ी के बेटे खा़लिद रफ़ी की पत्नी यास्मीन ख़ालिद रफ़ी ने अपनी पुस्तक ‘मोहम्मद रफ़ी माई अब्बा – ए मेमायर’ में लिखा है कि लता – रफ़ी के बीच समझौता संगीतकार जयकिशन ने करवाया था। सुलह के बाद दोनों ने पहला युगलगीत फ़िल्म ‘पलकों की छांव में’ के लिये रिकार्ड करवाया था। यह जानकारी ग़लत लगती है। फ़िल्म ‘पलकों की छांव में’ 1977 की है और इसके संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे। सबसे बड़ी बात यह कि इस फ़िल्म में मोहम्मद रफ़ी का गाया कोई गीत नहीं था। लता मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर को बताया था कि उनके और मोहम्मद रफ़ी के बीच सुलह सचिनदेव बर्मन साहब ने करवाई थी । 1967 में शण्मुखानन्द हॉल में ‘सचिनदेव बर्मन नाइट’ का आयोजन हुआ था। उस कार्यक्रम में मंच से घोषणा की गयी कि लता जी और रफ़ी साहब के बीच समझौता हो गया है और वे दोनों अब फिर से एक साथ गीत गाया करेंगे। स्वागत स्वरूप दर्शकों की बजती तालियों के बाद दोनों महान कलाकारों ने मंच पर फ़िल्म ‘ज्वेल थीफ़‘ (1967, देव आनन्द, वैजयन्तीमाला, अशोक कुमार) का युगलगीत प्रस्तुत किया था – ‘दिल पुकारे आ रे आरे आरे, अभी ना जा मेरे साथी’ (सचिनदेव बर्मन। मजरूह सुल्तानपुरी)।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।