गीत – ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
फ़िल्म – माइ लव (1970)
संगीतकार – दानसिंह
गीतकार – आनन्द बख़्शी
गायक – मुकेश

अतुल आर्ट्स के बैनर तले बनी फ़िल्म ‘माइ लव’ (1970) के निर्देशक एस सुखदेव थे। यह उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म थी। इससे पहले वे डाक्यूमेण्ट्री फ़िल्में बनाया करते थे। यह फ़िल्म भी कभी कभी एक डाक्यूमेंट्री लगने लगती थी। लगता था कि अफ़्रीका की वाइल्डलाइफ़ पर कोई डाक्यूमेंट्री देख रहे हैं । लेकिन फ़िल्म का संगीत ऐसा था जो सारी कमी पूरी कर देता था। संगीतकार दानसिंह एक कम चर्चित नाम है पर उन्होंने जो गीत बनाये वो आज भी सुनने वाले के दिल को छूने में समर्थ हैं। विशेषकर मुकेश के गाये दो गीत। दानसिंह जयपुर के वासी थे । उन्होंने वहाँ के शायर सुल्तान सिंह की एक नज़्म को अपनी धुन में ढाला था –

A photo tribute to Mukesh

बन्द कलियों के नयन
ख़्वाब में डूबा था मन
सच कहा तारों ने चुपके से
कि दिन बीत गया।

उन्होंने जब यह धुन ‘माइ लव’ के निर्देशक को सुनाई तो उन्हें बेहद पसंद आई। इस धुन पर गीतकार आनन्द बख़्शी ने फ़िल्म की सिचुयेशन के हिसाब से अलग बोल लिखे-

वो तेरे प्यार का ग़म, इक बहाना था सनम
अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी, कि दिल टूट गया

गायक मुकेश के गाये इस हृदयस्पर्शी गीत के लिये आनन्द बख़्शी ने एक अतिरिक्त अंतरा लिखा था, जो रिकार्ड नहीं हुआ –

क्या हुआ तूने उठा डाला अगर महफ़िल से
हो गयी होगी ख़ता कोई हमारे दिल से
दिल से होती न ख़ता तो भी हो जाती सज़ा
अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी
कि दिल टूट गया

दानसिंह के संगीत में इस फ़िल्म में लक्ष्मीकांत ने मैण्डोलिन, प्यारेलाल ने वायलिन, पं. शिवकुमार शर्मा ने संतूर, पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने बाँसुरी और मनोहारी सिंह ने सैक्सोफोन बजाया था।‘माइ लव’ में शशि कपूर और शर्मीला टैगोर पर फ़िल्माया मुकेश का दूसरा सदाबहार गीत है –

Shashi Kapoor: The Suave Charmer

ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है।

आनन्द बख़्शी ने इस गीत के लिये भी कई अंतरे लिखे थे । एक अंतरा जो फ़िल्म/रिकार्ड में शामिल नहीं हुआ इस प्रकार है –

यूँ बिखर कर हसीन चेहरे पर
तेरे गेसू कमाल करते हैं
कि तेरे आस्तां पे दीवाने
तुझसे झुक कर सवाल करते हैं
ना कहे तो जनाज़े उठते हैं
हाँ कहे तो बरात होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जल्वों की बात होती है.

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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