Rating ★★★
Directed by Anup Singh
Produced by Johannes Rexin, Thierry Lenouvel, Bero Beyer
Written by Anup Singh, Madhuja Mukherjee
Starring Irrfan Khan, Tillotama Shome, Tisca Chopra,Rasika Dugal
Music by Beatrice Thiriet, Manish J Tipu
Cinematography Sebastian Edschmid
Release dates 8 September 2013 (TIFF)
10 July 2014 (Germany)
20 February 2015 (India)
Country India, Germany, France, Netherlands
Language Punjabi
बंटवारे की त्रासदी झेल रहे उम्बर सिंह [इरफ़ान खान] को एक बेटा चाहिए! तीसरी बेटी के वक़्त तो उन्होंने बच्ची का मुंह देखने से भी इंकार कर दिया था, ये कहते हुए कि बेटियां तो बहुत देख लीं. ऐसे मुश्किल वक़्त में जब लोग एक-दूसरे को बाजरे की तरह काट रहे हों और औरतों को घर की सबसे कीमती चीज़ समझ कर छुपाया-बचाया जाता हो, उम्बर सिंह की बेटा पाने की चाह और सनक उन्हें एक ऐसे रास्ते पे ले आती है जहां से वापस लौटने की कोई सूरत बनती नहीं दिखती।
अनूप सिंह की ‘किस्सा‘ एक बेहद सुलझी हुई, पर उतनी ही गहरी और कई परतों में खुलने वाली फिल्म है जो खत्म होने के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ती और आपके ज़ेहन में घर बना लेती है! ‘किस्सा’ किसी एक लोककथा की तरह है जहां तर्कों की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है पर कहानी की प्रासंगिकता और बांधे रखने की क्षमता पर सवाल कभी खड़े नहीं होते। उम्बर सिंह अपनी चौथी बेटी को बेटे की तरह पालने लगते हैं, इतनी हिफाज़त से कि उनकी बीवी [टिस्का चोपड़ा] और बाकी बच्चियां भी कँवर [तिलोत्तमा शोम] को लड़का ही मानते हैं, यहां तक कि खुद कँवर को भी अपने जिस्मानी तरजीह पर शक नहीं होता! मामला तब रंग पकड़ता है जब उम्बर सिंह, कँवर की शादी एक लड़की [रसिका दुगल] से करा देते हैं. रिश्तों की आड़ में इंसानी समझौते और पहचान छुपाने की इस उधेड़बुन में मर्दों के खोखले अहम की बखिया भी उधड़ती हुई दिखाई देती है.
‘किस्सा’ में हालांकि बंटवारे की लड़ाई का ज़िक्र है पर असली लड़ाई उम्बर सिंह और कँवर की है. एक दूसरे से कहीं ज्यादा अपने आप से! एक ऐसे किरदार में, जो अपने डर, समझ और अहम में इतना बंधा हुआ है कि मौत के बाद भी आज़ाद होने की तमन्ना बाकी ही रहती है, इरफ़ान खान बखूबी जंचते हैं. उनकी सहज़ता में भी एक तरह का सैलाब है जो आपको अपने साथ बहा ले जाता है. तिलोत्तमा, कँवर की झिझक, परेशानी, गुस्से और उदास अकेलेपन की पीड़ा को बारीकी के साथ परदे पर पेश करती हैं. हालात से लड़ कर, थक कर ज़िंदगी के समझौतों में दबी बीवियों के किरदार में टिस्का और रसिका छाप छोड़ने में कामयाब रहती हैं.
अंत में; अनूप सिंह की ‘किस्सा’ बीते दौर की कहानी भले ही हो, आज के लिए भी उतनी ही माकूल है. खानदान चलाने के लिए बेटों की दकियानूसी अहमियत हो या औरतों के हाल-हालात तय करने बैठे मर्दों का खोखला रोब-दाब, ‘किस्सा’ कहीं न कहीं हमारी सोच पे चोट करने की कामयाब कोशिश करती है! हालाँकि फिल्म की रफ़्तार थोड़ी धीमी है और कहानी का आखिरी हिस्सा थोड़ा उलझा हुआ, पर ये निश्चित तौर पर देखने वाली फिल्म है. ये आपको न सिर्फ हैरान करेगी, आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी करेगी!
Qisaa Review Written By: Gaurav Rai
https://www.youtube.com/watch?v=so9jp-tpMEw