Rating ★★
Directed by Ritesh Menon
Produced by Prakash Jha
Written by Suhas Shetty, Kushal Punjabi
Starring Swanand Kirkire, Shilpa Shukla, Zachary Coffin, Nora Fatehi, Kiran Karmarkar,
Jagat singh, Pravina Deshpande, Kushal Punjabi, Jugnu Ishiqui
Music by Sidhartha-Suhaas
Lyrics: Kumaar
Cinematography Sojan Narayanan
Edited by Shakti Hasija
Production Company Prakash Jha Productions
Distributed by Prakash Jha Productions
Release dates January 16, 2015
क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली: उबाऊ, नाटकीय, नीरस
बाप तीसरी बार कोमा में है, और अलग-अलग शहरों और विदेशों में रह रहे बेटे-बेटियां उन्हें मिलने-देखने आने में हिचक रहे हैं. ‘पिछली बार की तरह इस बार भी नहीं मरे, तो आने-जाने का फिर खर्चा ‘, पर वसीयत में कऱोडों की प्रॉपर्टी भी तो मिलने वाली है. जाहिर है सारी जद्द-ओ-जेहद अब इस सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हथियाने-हड़प कर जाने की है. हालाँकि लालच में सर से लेकर पैर तक डूबे ऐसे दोयम दर्ज़े के लोगों और टुकड़ों में बँटी उनकी फैमिली की कहानी बॉलीवुड के लिए नयी बिलकुल नहीं है, पर ‘क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली’ उसे एक मज़ाकिया चोला पहनाने की कोशिश जरूर करती है! कई बार कामयाब भी होती है पर इसे एक ‘पूरी तरह मजेदार’ फिल्म कहना बड़ी ज्यादती होगी. अपने औसत दर्जे के लेखन-निर्देशन की वजह से सिर्फ 105 मिनट की फिल्म भी ज्यादातर उबाऊ, जबरदस्ती थोपी हुई और नीरस लगती है!
पुश्तैनी हवेली और करोड़ों की प्रॉपर्टी के मालिक बेरी साब कोमा में हैं. पूरा परिवार इकट्ठा हुआ है पर सबको जल्दी है तो वकील साब से मिलने की. नौकर याद दिलाता है, “बाबूजी से कब मिलेंगे?”. बड़े बेटे [लेखक एवं गीतकार स्वानंद किरकिरे, प्रभावशाली अभिनय] को पैसे चाहियें, एक दबंग नेता से अपनी जान छुड़ाने के लिये। छोटा भाई [कुशल पंजाबी] ग्रीन कार्ड के लिए नकली शादी का ढोंग कर रहा है. ‘मिस इंडिया’ न बन पाने का मलाल लिए बेटी [शिल्पा शुक्ला] अपनी झूठी सोशलाइट ज़िंदगी जीने में मशगूल है और सबसे छोटा बेटा अपनी समलैंगिक शादी के बाद लिंग-परिवर्तन के लिए पैसों का मुंह ताक रहा है. फिल्म पैसों के पीछे भागती और पैसों की जरूरतों पे अटकी ज़िंदगी दिखाने में काफी हद तक सटीक है. जहां कुछ बहुत ही मजेदार किरदार फिल्म में उत्सुकता बनाये रखते हैं, वहीँ कुछ प्रसंग बहुत ही नाटकीय लगते हैं. फिल्म के एक दृश्य में जब दबंग नेता [किरण कर्माकर] स्वानंद को बेघर कर उसका सारा सामान खुले आसमान के नीचे रखवा देता है, स्वानंद की नींद सुबह सोफे पे खुलती है और वो बिना किसी भाव के आदतन उठ कर सामने रखे फ्रिज से पानी की बोतल निकालता है. इसी तरह दिन भर पत्नी के दवाब में घुट-घुट कर रहने वाला पति [निनाद कामत] जब रात को उसी की नाईटी पहनकर उस पर जोर चलाने का अभिनय करता है, हंसी के लिए थोड़ी जगह बनती दिखती है! काश ऐसे मौके और भी होते!
हालाँकि संवाद और कहानी में नयेपन की झलक भी नहीं दिखती, पर परदे पर जब भी स्वानंद आते हैं, उनकी सहजता-सरलता बेबस आपका ध्यान अपनी ओर खींचती है. अभिनय में ये उनका पहला प्रयोग है पर स्वानंद किसी तरह की झिझक की भनक भी नहीं लगने देते। शिल्पा शुक्ला बनावटी हैं पर अपने किरदार की हद में! एक दृश्य में जब उनके पति निनाद कार के टायर बदलने में देर लगते हैं, शिल्पा उनपे टूट पड़ती हैं, “harmonal changes हो रहे हैं क्या??”. अन्य कलाकार भी कमोबेश ठीक ही हैं.
अंत में, रितेश मेनन की ‘क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली’ ढेर सारी उम्मीदें तो जगाती है पर उन्हें पूरा करने की हिम्मत नहीं उठाती। असफल वैवाहिक जीवन से कुंठित पति और समलैंगिक शादी जैसे गैर-मामूली और नए विषयों पर काफी कुछ किया जा सकता था लेकिन उन्हें सिर्फ चौंकाने के लिए ही फिल्म में डाला गया है. इसी तरह, फिल्म के अंत में सभी किरदारों और ज़िंदगी में उनके रवैयों को सही साबित करने का सारा ताम-झाम बहुत ही आसानी से सुलझा लिया जाता है. फिल्म के शुरू में पैसों के पीछे भागती फैमिली अचानक ही हाथों में हाथ डाले ‘हैप्पी एंडिंग’ का गीत गाने लगती है, देख कर असहज महसूस होता है. खैर, इस ‘क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली’ में कुछ क्रेजी किरदार तो जरूर हैं, पर इनके पीछे भागने की कोई जरूरत नहीं! अच्छा होगा, कुछ मजेदार पल घर पर ही बिताएं…अपनी फैमिली के साथ!
Review Written By:- Gaurav Rai