गीत – मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का
बोल राधा बोल संगम होगा या नहीं?
फ़िल्म – संगम (1964)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – शैलेन्द्र
गायक – मुकेश, वैजयंतीमाला

लेखक इंदर राज आनन्द (टीनू आनन्द के पिता) की एक कहानी पर राजकपूर ‘घरौंदा‘ नाम से फ़िल्म बनाना चाह रहे थे। उनकी इच्छा थी कि इसमें ‘अन्दाज़‘ की टीम अर्थात् दिलीप कुमार, राज कपूर और नर्गिस अभिनय करें। पर बरसों तक उनकी यह इच्छा फलीभूत न हो सकी। अंततः जब उस कहानी पर फ़िल्म – ‘संगम’ बनाने का समय आया तब उन्होंने फिर दिलीप कुमार से अनुरोध किया कि वे उस फ़िल्म में अभिनय करें। दिलीप कुमार ने सीधे सीधे इंकार नहीं किया पर उन्होंने शर्त रख दी कि अभिनय के साथ वे फ़िल्म की एडिटिंग भी करेंगे। राज कपूर इस शर्त पर सहमत नहीं हुये। देव आनन्द और फीरोज़ खान के नामों पर भी विचार हुआ और अंत में राजेन्द्र कुमार फ़िल्म में कास्ट कर लिये गये। राजकपूर ने स्वयं पहली बार एडिटिंग की ज़िम्मेदारी भी सम्भाली। ‘संगम’ राजकपूर की पहली रंगीन फ़िल्म थी। विदेशों में शूटिंग का सिलसिला भी  संगम’ के बाद ही लोकप्रिय हुआ। यह फ़िल्म ख़ासी लम्बी थी। जब रिलीज़ हुई थी तब यह लगभग चार घण्टे की थी। बाद में काट छाँट कर इसे साढ़े तीन घण्टे का बनाया गया।

इस फ़िल्म की शूटिंग और प्रदर्शन के दौरान राजकपूर और नायिका वैजयंतीमाला के प्रेम प्रसंग की चर्चा पत्र पत्रिकाओं में ज़ोरों पर रही। राजकपूर के निधन के बाद वैजयंतीमाला की आत्मकथा प्रकाशित हुई थी। इसमें उन्होंने इस तरह के किसी भी सम्बंध से इंकार किया। उन्होंने लिखा कि फ़िल्म ‘संगम’ की पब्लिसिटी के लिये राजकपूर और उनके पब्लिसिटी आॅफीसर ने उनके नाम का सहारा लिया। राजकपूर के पुत्र ऋषि कपूर ने इस पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुये इंटरव्यू दिया था कि उनके पिता को पब्लिसिटी का भूखा बतलाना उचित नहीं है। उन दिनों सचमुच राजकपूर और वैजयंतीमाला का अफ़ेयर चल रहा था। इस कारण दुखी हो कर उनकी माँ कृष्णा राजकपूर सब बच्चों के साथ घर छोड़ कर नटराज होटल में लगभग साढ़े चार महीने तक रहीं थीं।

आर के फ़िल्म्स के डायरेक्टर आॅफ पब्लिसिटी स्वर्गीय बनी रूबेन की पुत्री लक्ष्मी रूबेन गोपाली ने भी ऋषि कपूर की बातों का समर्थन किया था। बनी रूबेन ने अपनी पुस्तक ‘राजकपूर – लाइफ़ एण्ड फ़िल्म्स‘ में भी उन दिनों का विस्तृत वर्णन किया था। वे लम्बे समय तक आर के फ़िल्म्स से जुड़े रहे थे। ‘आवारा‘ के बाद से आर के फ़िल्म्स की लगभग सभी फ़िल्मों (बाॅबी को छोड़ कर) के वे पब्लिसिटी आॅफीसर थे। वे ‘आशिक‘ (राजकपूर, पद्मिनी, नन्दा) फ़िल्म के सह निर्माता भी थे।

‘संगम’ की कास्टिंग के समय राजकपूर ने वैजयंतीमाला को फ़िल्म की कहानी सुनाई थी और उनके सामने नायिका राधा का रोल करने का प्रस्ताव रखा था। वैजयंतीमाला ने एकदम से कोई निर्णय नहीं लिया था और काम के सिलसिले में बम्बई से बाहर चली गयीं थीं। उनका जवाब जानने के लिये बेचैन हो कर राजकपूर ने उन्हें एक टेलीग्राम भेजा – ‘बोल राधा बोल, संगम होगा कि नहीं?’ उन्हें जल्द ही जवाबी टेलीग्राम मिला – ‘होगा होगा होगा।’

यह सारा क़िस्सा सुन कर गीतकार शैलेन्द्र ने गीत रच दिया – मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का, बोल राधा बोल, संगम होगा या नहीं ?

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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