गीत – मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राग सुनो
फ़िल्म – नौनिहाल (1967)
संगीतकार – मदन मोहन
गीतकार – क़ैफ़ी आज़मी
गायक – मोहम्मद रफी

अब दिल्ली दूर नहीं‘ (1957) आर के फ़िल्म्स के बैनर तले अमर कुमार के निर्देशन में बनी एक प्रयोगात्मक फ़िल्म थी। इसमें एक बच्चा अपने निरपराध पिता को मौत की सज़ा से बचाने की गुहार ले कर दिल्ली प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलने जाता है। राज कपूर ने पंडित नेहरू से एक मुलाक़ात में यह कहानी सुना कर उनसे फ़िल्म के क्लाइमेक्स में सिने पर्दे पर आने का अनुरोध किया। उन्हें बच्चे से मिल कर उसे न्याय दिलाना था। पंडित नेहरू ने राज कपूर से इस बात की हामी भर दी थी। नेहरू जी के आश्वासन पर राज कपूर ने फ़िल्म शुरू कर दी। पंडित जी का पर्दे पर नज़र आना फ़िल्म की हाईलाइट थी। जब क्लाइमेक्स फ़िल्माने का अवसर आया तो पता चला कि पंडित नेहरू फ़िल्म में नहीं आ सकेंगे। उन्हें मंत्रालय के लोगों ने समझाया था कि देश के प्रधान मंत्री का इस तरह सिनेमा के पर्दे पर आना उचित नहीं होगा। राज कपूर बेहद निराश हुये। किसी तरह कहानी में थोड़ा फेर बदल कर फ़िल्म पूरी की गयी। पर उसका मुख्य आकर्षण जा चुका था।

सावन कुमार टाक की फ़िल्म ‘नौनिहाल’ (1967) की कहानी में भी एक अनाथ बालक पंडित नेहरू से मिलना चाहता है। वह अनाथ इस बात से दुखी था कि उसका अपना कोई रिश्तेदार नहीं है। तब उसे कोई समझा देता है कि चाचा नेहरू तो तुम्हारे चाचा हैं। अपने चाचा से मिलने की साध में वह दिल्ली पहुँचता है। पर तब तक चाचा नेहरू का देहान्त हो जाता है। क्लाइमेक्स में पंडित नेहरू की शवयात्रा के दृश्य दिखाये जाने थे।

‘नौनिहाल’ का संगीत मदन मोहन दे रहे थे। क्लाइमेक्स के उस दृश्य के लिये क़ैफ़ी आज़मी ने एक बेहद पुरअसर गीत लिखा था। नेहरूजी सदैव अपनी शेरवानी के बटन पर गुलाब का फूल लगाते थे। उन्होंने अपनी वसीयत में चिता की राख को सारे देश की धरती पर छिड़क कर देश की मिट्टी में मिल जाने की कामना की थी। इन बातों का कैफ़ी आज़मी साहब ने अपने गीत में बड़ा मार्मिक वर्णन किया था। सोने पर सुहागा मोहम्मद रफ़ी का भावपूर्ण गायन। वह एक हृदयस्पर्शी गीत बन गया था –

मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राग सुनो
मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रखा था
उसके पर्दे में तुम्हें दिल से लगा रखा था
था जुदा सबसे मेरे इश्क का अन्दाज़ सुनो

क्यों सँवारी है ये चन्दन की चिता मेरे लिये
मैं कोई जिस्म नहीं हूँ कि जलाओगे मुझे
राख के साथ बिखर जाऊँगा मैं दुनिया में
तुम जहाँ खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे
हर क़दम पर है नए मोड़ का आग़ाज़ सुनो

नेहरूजी की शवयात्रा तथा अंतिम संस्कार के शाट्स के फ़ुटेज इस गीत के साथ दिखाये जाने आवश्यक थे। उन फ़ुटेज को इस्तेमाल करने के लिये सरकार के सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय की अनुमति चाहिये थी जिसमें हमेशा की तरह कई अड़चनें आ रहीं थीं। किसी तरह इंदिरा गांधी से मिल कर उनसे अनुरोध किया गया। उन्हें यह गीत सुना कर बताया गया कि इस गीत के लिये वे शाट्स कितने महत्वपूर्ण हैं। गीत सुन कर इंदिरा गांधी भावुक हो गयीं। इस गीत का उन पर गहरा असर पड़ा और शीघ्र ही मंत्रालय से आवश्यक अनुमति प्राप्त हो गयी।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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