गीत – नैया मेरी चलती जाये सहारे तेरे बढ़ती जाये,
कभी तो मुझे पार लगा दे , जवानी मेरी ढलती जाये.
फ़िल्म – माई फ्रैण्ड (1974)
संगीतकार – नौशाद
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायक – मोहम्मद रफी

संगीतकार नौशाद साहब के बेटे रहमान नौशाद अपने पिता के सहायक के रूप में कुछ फ़िल्मों के संगीत से जुड़े थे । उन्होंने दो फ़िल्मों का निर्देशन भी किया- ‘ माई फ्रैण्ड ‘ (1974) तथा ‘ तेरी पायल मेरे गीत ‘ (1993, गोविन्दा , मीनाक्षी शेषाद्री)। इन दोनों फ़िल्मों का संगीत नौशाद का था तथा ‘ तेरी पायल मेरे गीत ‘ की कहानी भी जनाब नौशाद की थी। ‘ माई फ्रैण्ड ‘ एक कम बजट की ‘ बी ‘ ग्रेड फ़िल्म थी । इसमें नायिका प्रेमा नारायण के साथ एक नया चेहरा राजीव नायक था। सहायक भूमिकाओं में उत्पल दत्त, पूर्णिमा, जगदीप, असित सेन, पोल्सन, टुनटुन आदि कलाकार थे।

हसरत जयपुरी एक माने हुये शायर और फ़िल्मी गीतकार थे। आर के फ़िल्म्स की ‘बरसात’ से फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत कर उन्होंने एक सफल लम्बी पारी खेली। शंकर जयकिशन की फ़िल्मों के तो वे तथा शैलेन्द्र स्थायी गीतकार थे। अपने सुदीर्घ कैरियर में शंकर जयकिशन के अलावा सचिन देव बर्मन, राहुलदेव बर्मन से ले कर रामलाल और रवीन्द्र जैन तक लगभग सभी चर्चित संगीतकारों के साथ उन्होंने काम किया था।

पर उनके मन में एक हसरत रह गयी थी कि उन्हें नौशाद साहब के साथ कभी काम करने का अवसर नहीं मिला। एक बार उन्होंने नौशाद साहब से इस बात का ज़िक्र किया और कहा कि मेरी दिली इच्छा है कि मैं आपकी किसी फ़िल्म में गाने लिखूँ। नौशाद साहब ने यह बात याद रखी और जब उनके साहिबज़ादे रहमान नौशाद ‘ माई फ्रैण्ड ‘ बना रहे थे तब उन्होंने हसरत जयपुरी को गीत लिखने के लिये आमंत्रित किया। इस तरह यह इकलौती फ़िल्म है जिसमें नौशाद साहब और जनाब हसरत जयपुरी ने एक साथ काम किया है।

इस फ़िल्म के चारों गीत हसरत जयपुरी के हैं। तीन गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में हैं – दुनिया मचाये शोर दिल पे किसका ज़ोर, मुझको एक महबूब तुमसा चाहिये और तुमको अगर प्यार दिया तो । एक गीत मोहम्मद रफ़ी का गाया हुआ है -‘ नैया मेरी चलती जाये , सहारे तेरे बढ़ती जाये’। यह गीत एक अफ़ग़ानी लोकधुन पर आधारित है। नौशाद ने फ़िल्म ‘पाकीज़ा’ (1972) के बैकग्राउण्ड म्यूज़िक में पहले इस धुन का उपयोग किया था। ‘पाकीज़ा’ में राजकुमार और मीनाकुमारी जब भी रोमांटिक माहौल में एकांत में मिलते हैं तब उस्ताद रईस खान साहब के बजाये सितार पर यह धुन पार्श्व में गूँजती रहती है।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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