गीत – आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे
फ़िल्म – अनपढ़ (1962)
संगीतकार – मदन मोहन
गीतकार – राजा मेंहदी अली खान
गायिका – लता मंगेशकर
गीतकार राजा मेंहदी अली खान और संगीतकार मदनमोहन की जोड़ी ने एक से बढ़ कर एक फ़िल्मों में अमर संगीत दिया था –अनपढ़, मेरा साया, वो कौन थी, आपकी परछाइयाँ, नीला आकाश, दुल्हन एक रात की, जब याद किसी की आती है, आँखें (1950, नलिनी जयवंत, शेखर), अदा, मदहोश और नवाब सिराजुद्दौला। दोनों में आपस में बड़ी घनिष्ठता थी। दोनों खाना बड़ा बढ़िया बनाते थे।
Blast From Past: Raja Mehdi Ali Khan
जब वे साथ काम करते तो राजा मेंहदी अली खान मदनमोहन के घर आ जाते। दोनों मिल कर खाना पकाते। फिर खा पी कर संगीत रचना में जुट जाते। राजा अपना लिखा गीत मदनमोहन को दे कर चले जाते। गीत पसंद आने पर मदनमोहन उसके लिये अलग अलग कई धुनें तैयार करते और पसंद ना आने पर वे राजा साहब के घर पहुँच जाते और रसोईघर से चिमटा उठा कर उन्हें धमकाते -”यह क्या लिखा है? यह चिमटा मैं तुम्हारे बदन पर बजाऊँगा”। राजा साहब को दोबारा गीत लिखना पड़ता। उन्होंने मज़ाक़ में मदनमोहन का नाम चिमटा मार खां रख दिया था।
राजा मेंहदी अली खान ओ पी नय्यर के लिये फ़िल्म ‘एक मुसाफ़िर एक हसीना‘(1962, जॉय मुखर्जी, साधना) में गाने लिख रहे थे। उन्होंने पहले ‘आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे, दिल की अय धड़कन ठहर जा, मिल गयी मंज़िल मुझे’ गीत ओ पी नय्यर को इस फ़िल्म के लिये सुनाया। मुखड़ा सुनते ही ओ पी नय्यर ने उसे रिजेक्ट कर दिया। उनके विचार से गीत में नायिका अपने को नायक से कमतर समझ रही थी और उसके द्वारा स्वीकार किये जाने को अपना सौभाग्य मान रही थी।
ओ पी नय्यर को ‘एक मुसाफ़िर एक हसीना’ के लिये साधना और जॉय मुखर्जी पर फ़िल्माये जाने के लिये एक ऐसा गीत चाहिये था जिसमें दोनों का क़द बराबरी का हो। कोई छोटा बड़ा न हो। राजा साहब ने फिर उन्हें ‘आप यूँ ही अगर हमसे मिलते रहे, देखिये एक दिन प्यार हो जायेगा’ लिख कर दिया।
राजा मेंहदी अली खान ने फिर ‘आपकी नज़रों ने समझा’ गीत फ़िल्म ‘अनपढ़’ के लिये निर्देशक मोहन कुमार और मदनमोहन को सुनाया तो दोनों को बेहद पसंद आया। ‘अनपढ़’ की नायिका माला सिन्हा का जो चरित्र था वह एक समर्पित भारतीय नारी का था जिस पर यह गीत पूरी तरह सही लग रहा था। फिर मदनमोहन और लता मंगेशकर के मणि कांचन योग ने गीत को एक नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया।
नौशाद साहब ने जब यह गीत सुना तो वे मुग्ध हो गये थे। उन्होंने मदनमोहन से कहा था कि तुम्हारे इस एक गीत के बदले मैं अपने सारे गीत देने के लिये तैयार हूँ।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।