गीत – मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
फ़िल्म – ग़ज़ल ( 1964 )
संगीतकार – मदन मोहन
गीतकार – साहिर लुधियानवी
गायक – मोहम्मद रफ़ी
संगीतकार मदन मोहन से जुड़ी कुछ यादें –
फ़िल्म ‘ जहांआरा ‘ ( 1964, भारत भूषण , माला सिन्हा ) अभिनेता , निर्माता ओम प्रकाश और निर्देशक विनोद कुमार की फ़िल्म थी और वे चाहते थे कि इस फ़िल्म के सब गीत मोहम्मद रफ़ी गायें । मदन मोहन को लगता था कि कुछ गीत तलत महमूद की आवाज़ में बेहतर लगेंगे । मदन मोहन अपनी बात पर दृढ़ थे और उनकी बात स्वीकार्य न होने पर फ़िल्म छोड़ने के लिये भी तैयार थे । आख़िर उनकी बात मान ली गयी और – फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है , तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ , मैं तेरी नज़र का सुरूर हूँ और अय सनम आज ये क़सम खायें जैसे दिलकश गीत तलत महमूद की आवाज़ में रिकार्ड किये गये ।
‘ जहांआरा ‘ के लिये एक क़व्वाली चारों मंगेशकर बहनों की आवाज़ में रिकार्ड की गयी थी । परन्तु वह फ़िल्म में नहीं रखी गयी , ना ही उसका रिकार्ड बना । वह ऐतिहासिक गीत गुमनामी में खो गया । लता मंगेशकर , मीना मंगेशकर ( खड़ीकर ), आशा भोंसले और उषा मंगेशकर का एक साथ गाया और कोई हिन्दी गीत याद नहीं आता ।
‘ चाचा ज़िन्दाबाद ‘( 1959, किशोर कुमार , अनिता गुहा ) के लिये मदन मोहन एक शास्त्रीय राग पर आधारित गीत ‘ प्रीतम दरस दिखाओ , तुम बिन रो रो रैन बिताई ‘ उस्ताद आमिर खान और लता मंगेशकर की आवाज़ में रिकार्ड करना चाह रहे थे । लता मंगेशकर शास्त्रीय रागों के उस्ताद , उस्ताद आमिर खान साहब के साथ गाने में असहज महसूस कर रहीं थीं । इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर अभिनेता ओम प्रकाश थे । लता जी ने ओम प्रकाश और मदन मोहन को अपनी झिझक बताई । उनके अनुरोध पर यह गीत फिर उनके साथ मन्ना डे की आवाज़ में रिकार्ड किया गया ।
‘ नौनिहाल ‘ ( 1967 ) के बाद सावन कुमार टाक ‘ ग़ालिब ‘ फ़िल्म बनाने का विचार कर रहे थे । टाइटिल रोल के लिये अमिताभ बच्चन या संजीव कुमार के नामों की चर्चा चल रही थी । उस फ़िल्म के लिये मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ ग़ज़लें मदन मोहन ने रिकार्ड की थीं । वह फ़िल्म कभी नहीं बनी और वे ग़ज़लें भी कभी सामने नहीं आ पायीं ।
इसी तरह चेतन आनन्द अमिताभ बच्चन और प्रिया राजवंश को ले कर ‘ सलीम अनारकली ‘ फ़िल्म बनाने पर विचार कर रहे थे । उस फ़िल्म के संगीत के लिये मदन मोहन चेतन आनन्द के साथ काम कर रहे थे । अपनी मृत्यु के एक दिन पहले तक मदन मोहन चेतन आनन्द के साथ बैठ कर ‘ सलीम अनारकली ‘ के लिये धुनें बनाते रहे । यह फ़िल्म तो कभी नहीं बनी पर चर्चा यह रही कि चेतन आनन्द ने उन धुनों का उपयोग अपनी फ़िल्म ‘ क़ुदरत ‘ में कर लिया ।
फ़िल्म ‘ ग़ज़ल ‘ ( 1964, सुनील दत्त , मीना कुमारी ) के लिये साहिर लुधियानवी की ताजमहल पर लिखी मशहूर नज़्म को लिया गया था । मदन मोहन ने इसे मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में रिकार्ड कराया था । गीत का पिक्चराइज़ेशन भी हो चुका था । किन्तु फ़िल्म के निर्माता निर्देशक वेद मदन और साहिर लुधियानवी के बीच कुछ मतभेद हो जाने से साहिर ने यह नज़्म वापिस ले ली थी । फ़िल्म सिनेमाघरों में बिना इस गीत के रिलीज़ हुई थी । साहिर साहब के इंतक़ाल के बाद इस गीत को फ़िल्म के वीडियो रिलीज़ के समय शामिल किया गया –
ताज तेरे लिये एक मज़हरे उल्फ़त ही सही
तुझको इस वादी ए रंगीं से अकीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
ये चमनज़ार ये जमना का किनारा ये महल
ये मुनक्कश दरोदीवार ये महराब , ये ताक
एक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे .
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।