गीत – नज़र उठने से पहले ही झुका लेती तो अच्छा था
फ़िल्म – माडर्न गर्ल (1961)
संगीतकार – रवि
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण
गायक – मोहम्मद रफ़ी
पिछले दिनों जावेद अख़्तर ने भोपाल में कहा था, “बचपन में, जब मैं लखनऊ में था तब वहाँ मुझे मजाज़ का भांजा कहा जाता था। भोपाल अपनी माँ के साथ जब रहा यहाँ सब साफ़िया आपा का बेटा कहते थे। मुम्बई में पहले लोग शबाना आज़मी का शौहर बुलाते थे अब फ़रहान अख़्तर के पिता के तौर पर जानते हैं। असरार उल हक़ ‘मजाज़’ जावेद अख़्तर की माँ के भाई याने उनके मामा थे। उन्होंने भी फ़िल्मी दुनिया में क़िस्मत आज़माना चाहा था पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उनकी एक नज़्म ‘अय ग़मेदिल क्या करूँ’ ज़रूर सरदार मलिक ने फ़िल्म ‘ठोकर‘ (1953) में इस्तेमाल की थी। इसके अलावा कभी कभी उनकी लिखी ग़ज़ल या नज़्म से प्रेरित हो कुछ स्थापित गीतकारों ने अपने गीत लिखे।
फ़िल्म ‘माडर्न गर्ल’ (1961) में प्रदीप कुमार, साईदा खान, स्मृति विश्वास, नलिनी चोणकर, हेलन, टुनटुन, जॉनी वॉकर आदि सितारे थे। संगीतकार रवि के लिये चार गीतकारों ने गीत लिखे थे – एस एच बिहारी, गुलशन बावरा, क़मर जलालाबादी और राजेन्द्र कृष्ण। ‘माडर्न गर्ल’ का राजेन्द्र कृष्ण का लिखा एक गीत मजाज़ के कलाम ‘नौजवान ख़ातून से’ बहुत ज़्यादा मिलता जुलता था। पर्दे पर यह गीत अदाकारा नलिनी चोणकर पर फ़िल्माया गया था –
नज़र उठने से पहले ही झुका लेती तो अच्छा था
तू अपने आप को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
तेरे शाने पे लहराते हुये आँचल का क्या कहना
इसी आँचल से इक घूँघट बना लेती तो अच्छा था
तेरे होंठों की ये सुर्खी तेरे चेहरे की रौनक़ है
ये सुर्खी माँग में अपनी रचा लेती तो अच्छा था
(माडर्न गर्ल, 1961, राजेन्द्र कृष्ण, मो रफ़ी)
अब मजाज़ का कलाम देखिये जो उन्होंने 1937 में लिखा था – ‘नौजवान खातून से’
हिजाबे फ़ितना परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था
तेरे माथे की ये सुर्खी तेरे चेहरे की रौनक़ है
तू इसे माँग में अपनी सजा लेती तो अच्छा था.
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।