गीत – अय मेरे दिल कहीं और चल
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
ढूँढ ले अब कोई घर नया
फ़िल्म – दाग (1952)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – शैलेन्द्र
गायक – तलत महमूद/लता मंगेशकर
फ़िल्मी दुनिया में अपने क़दम रखने से पहले शंकरदास केसरीलाल पत्र पत्रिकाओं के लिये ‘शचिपति‘ के नाम से कवितायें लिखते थे। उन्हें ‘शचिपति’ से ‘शैलेन्द्र’ राज कपूर ने बनाया । उनके गीत बड़े प्रेरणादायी हुआ करते थे – तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत पे यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। देश के बटवारे के बाद उन्होंने लिखा था-
सुन भैया , सुन भैया
दोनों के आँगन एक थे भैया
कजरा और सावन एक थे भैया
ओढ़न पहरावन एक थे भैया
जोधा हम दोनों एक ही मैदान के
परदेसी कैसी चाल चल गया
झूठे सपनों से हमें छल गया
वो डर के घर से निकल तो गया
पर दो आँगन कर गया मकान के।
शहीद भगत सिंह के जीवन बलिदान और जलियाँवाला बाग़ के नरसंहार ने उन्हें हिला कर रख दिया था। उन्होंने एक कविता लिखी थी -‘जलता है पंजाब’। एक बार जब वे इप्टा के थियेटर में अपनी वह कविता सुना रहे थे तब पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर भी वहाँ श्रोताओं में मौजूद थे –
जलता है, जलता है पंजाब हमारा प्यारा
भगत सिंह की आँखों का तारा
किसने हमारे जलियांवाले बाग़ में आग लगाई
किसने हमारे देश में फूट की ये ज्वाला धधकाई
किसने माता की अस्मत को बुरी नज़र से ताका
धर्म और मज़हब से अपनी बदनीयत को ढांका
कौन सुखाने चला है पाँचों नदियों की जलधारा
जलता है , जलता है पंजाब हमारा प्यारा।
फिर क्या हुआ यह तो सब जानते हैं। कविता से प्रभावित राज कपूर ने उनसे अपनी फ़िल्म ‘आग‘ में गीत लिखने का प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। परन्तु बाद में जब उनकी पत्नी गर्भवती थीं और उन्हें पैसों की सख़्त ज़रूरत थी तो उन्होंने राज कपूर की अगली फ़िल्म ‘बरसात‘ में गीत लिखना स्वीकार कर लिया। ‘बरसात में तुमसे मिले हम सजन, हमसे मिले तुम’ लिख कर उन्होंने फ़िल्मों में ‘शीर्षक गीत’ लिखने की एक नई परम्परा की शुरुआत की। ‘बरसात’ से उनके गीतों की जो धारा बहना शुरू हुई वह आज भी सिनेप्रेमियों के तनमन को आनन्द रस में भिगो रही है।
संगीतकार दत्ताराम जो शंकर जयकिशन के सहायक भी थे ने एक टीवी इंटरव्यू में कवि शैलेन्द्र से जुड़ी एक घटना बताई थी –
एक बार देर रात शैलेन्द्र बैठे गीत लिख रहे थे और उनके फ़ाउण्टेन पेन की स्याही ख़त्म हो गयी। स्याही की दवात उपलब्ध नहीं थी। बाज़ार बन्द हो चुका था । मन में नया गीत जन्म ले रहा था और उसे काग़ज़ पर उतारने का कोई साधन नहीं सूझ रहा था। तभी उनकी नज़र एश ट्रे में सिगरेट के बुझे टुकड़ों के साथ पड़ी दस पन्द्रह अधजली माचिस की तीलियों पर पड़ी उन्होंने जली हुई तीलियों से यह गीत लिख दिया –
अय मेरे दिल कहीं और चल
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
ढूँढ ले अब कोई घर नया।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।