गीत – ज़रा सामने तो आओ छलिये,
छुप छुप छलने में क्या राज़ है
फ़िल्म – जनम जनम के फेरे (1957)
संगीतकार – एस एन त्रिपाठी
गीतकार – भरत व्यास
गायक – मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर
‘जनम जनम के फेरे’ निर्माता सुभाष देसाई की एक म्यूज़िकल हिट धार्मिक फ़िल्म थी। सुभाष देसाई मनमोहन देसाई के बड़े भाई थे। फ़िल्म का पूरा नाम ‘जनम जनम के फेरे याने सती अन्नपूर्णा‘ था। संगीतकार एस एन त्रिपाठी याने श्रीनाथ त्रिपाठी के हिस्से में अधिकांशत: धार्मिक, पौराणिक और एतिहासिक फ़िल्में आती थीं। पर इन बी और सी ग्रेड की कम बजट वाली फ़िल्मों में भी उन्होंने संगीत का स्तर सदैव ए ग्रेड का रखा। धार्मिक फ़िल्मों में शुद्ध हिन्दी के गीतों की माँग रहती थी अत: एस एन त्रिपाठी के साथ अधिकांश फ़िल्मों में गीतकार भरत व्यास रहा करते थे, जो हिन्दी में अत्यन्त सुन्दर गीतरचना करने में निपुण थे।
PORTRAIT OF THE DIRECTOR – Manmohan Desai
भरत व्यास गीतकार होने के साथ साथ एक कुशल नाटककार और मंच के अभिनेता भी थे। उनके भाई बी एम व्यास एक जानेमाने अभिनेता थे। ‘जनम जनम के फेरे’ फ़िल्म में निरूपाराय, मनहर देसाई, महिपाल के साथ बी एम व्यास ने भी अभिनय किया था। भरत व्यास निर्माता, निर्देशक व्ही शांताराम के प्रिय गीतकार थे। उनकी अनेक फ़िल्मों के गीत भरत व्यास ने लिखे थे, जैसे – तूफ़ान और दिया, दो आँखें बारह हाथ, स्त्री, नवरंग, बूँद जो बन गयी मोती इत्यादि।
‘जनम जनम के फेरे’ के गीतों ने लोकप्रियता की नई ऊँचाइयों को स्पर्श किया था – ‘जनम जनम के फेरे, इनसे ना कोई बचे रे’, ‘तू है या नहीं भगवान’, ‘तन के तम्बूरे में दो साँसों के तार बोले’, ‘रंगबिरंगे फूलों की झूमे रे डालियाँ’ आदि। फ़िल्म का सर्वाधिक हिट गीत था – ‘ज़रा सामने तो आओ छलिये।’ इस गीत ने उस वर्ष ‘बिनाका गीतमाला’ के वार्षिक कार्यक्रम में सबसे ऊँचा प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
भरत व्यास साहब के पुत्र का परीक्षा परिणाम संतोषजनक नहीं आया था। इस कारण वे अपने पुत्र पर क्रोधित थे। उनके क्रोध से बचने के लिये पुत्र घर छोड़ कर भाग गया। पुत्र वियोग में वे व्याकुल थे उन्हीं दिनों उन्हें ‘ज़रा सामने तो आओ छलिये’ गीत लिख कर देना पड़ा। उनके हृदय की व्यथा छलक कर गीत में भी सामने आ गयी –
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो
ऐसा कभी ना हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ के
सुख से कभी ना सो सकता
हमें डरने की जग में क्या बात है
जब हाथ में तिहारे मेरी लाज है
यूँ छुप ना सकेगा परमात्मा
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है।
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।