गीत – क़समें वादे प्यार वफ़ा सब
बातें हैं बातों का क्या .
फ़िल्म – उपकार (1967)
संगीतकार – कल्याणजी आनन्दजी
गीतकार – इन्दीवर
गायक – मन्ना डे

फ़िल्म ‘शहीद‘ (1965) का पर्दे के पीछे से निर्देशन (ghost direction) मनोज कुमार ने किया था। निर्देशक के रूप में नाम एस राम शर्मा का गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘शहीद’ देख कर मनोज कुमार को बधाई देते हुये अपने नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर कोई फ़िल्म बनाने का सुझाव दिया। वह विचार अन्तत: ‘उपकार’ के रूप में साकार हुआ। इस बार मनोज कुमार आधिकारिक रूप से निर्देशक बने। ‘भारत’ का स्क्रीन नाम भी उन्हें इसी फ़िल्म से मिला जो हमेशा के लिये उनसे जुड़ गया। मनोज कुमार ने एक और लीक से हट कर काम किया। प्राण एक स्थापित खलनायक थे। उनकी नकारात्मक छवि दर्शकों के दिलोदिमाग़ पर पुख़्ता ढंग से बसी हुयी थी। कहा जाता है कि उन बरसों में किसी बच्चे का नाम प्राण नहीं रखा जाता था। ऐसे समय में प्राण को मनोज कुमार ने एक सहानुभूतिपूर्ण चरित्र भूमिका दी। यह प्राण के कैरियर का एक टर्निंग प्वाइंट था। इसके बाद उन्होंने विविध रंगों की प्रमुख चरित्र भूमिकायें ढेरों फ़िल्मों में सफलतापूर्वक निभाईं।

संगीतकार आनन्दजी और गीतकार इन्दीवर एक बार कार में जा रहे थे। आनन्दजी के एक मित्र की प्रेमिका उनसे किये वादे तोड़ कर किसी और से शादी करने जा रहीं थीं। वे मित्र विदेश में थे और आनन्दजी समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें कैसे ख़बर करें। बड़े फिलासाफिकल मूड में उन्होंने कहा कि ये क़समें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बेकार की बातें हैं। इन बातों पर क्या भरोसा करना। इन्दीवर ने कहा कि इस बात पर तो गीत का एक मुखड़ा बन सकता है। कल्याणजी के घर पहुँचते पहुँचते उन्होंने गीत की आरंभिक दो पंक्तियाँ रच दीं –

क़समें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं, नातों का क्या

घर पहुँच कर दोनों गीत और धुन बनाने में जुट गये। उस रात इन्दीवर अपने घर नहीं गये और उन लोगों ने पूरी रात साथ बैठ कर यह गीत पूरा कर लिया। मनोज कुमार को यह गीत पसंद आ गया। यह उनकी कहानी में फ़िट बैठता था। उन्होंने निर्णय ले लिया कि इसका फ़िल्मांकन प्राण के ऊपर करेंगे।

कल्याणजी आनन्दजी इस गीत को किशोर कुमार की आवाज़ में रिकार्ड करवाना चाह रहे थे। जब किशोर कुमार को पता चला कि यह गीत प्राण के ऊपर फ़िल्माया जायेगा तो वे इसे गाने में आनाकानी करने लगे। उनके दिमाग़ में भी प्राण की विलेन वाली इमेज हॉवी थी। अंत में इसे मन्ना डे से रिकार्ड कराया गया। आज गीत सुन कर लगता है कि मन्ना डे से बेहतर इस गीत को कोई गा ही नहीं सकता था।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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