इक दीवाना आते जाते हमसे छेड़ करे, सखी री वो क्या माँगे- नया दौर (1957)

गीत – इक दीवाना आते जाते हमसे छेड़ करे
सखी री वो क्या माँगे …
फ़िल्म – नया दौर (1957)
संगीतकार – ओ पी नय्यर
गीतकार – साहिर लुधियानवी
गायिका – आशा भोंसले

फ़िल्म ‘ नया दौर ‘ (1957) के संगीतकार ओ पी नय्यर ने नायिका मधुबाला को ख़ास ध्यान में रख कर एक गीत ‘ इक दीवाना आते जाते हमसे छेड़ करे ‘ बनाया था । पहले ‘नया दौर’ की नायिका मधुबाला थीं । यह गीत उन पर फ़िल्मा भी लिया गया था । ओ पी नय्यर ने उन्हीं दिनों ‘ फागुन ‘ फ़िल्म में मधुबाला के लिये ‘ इक परदेसी मेरा दिल ले गया ‘ बनाया था , जो उसी मूड का गीत था । ‘ फागुन ‘ और ‘ नया दौर ‘ दोनों फ़िल्मों का संगीत सुपरहिट रहा पर दुर्भाग्य कि ‘ नया दौर ‘ का गीत ‘ इक दीवाना आते जाते ‘ फ़िल्म में नहीं रखा गया । हुआ यूँ कि ‘ नया दौर ‘ से मधुबाला बाहर हो गयीं और वैजयंतीमाला ने उनकी जगह ले ली । मधुबाला के लिये बने उस गीत का फिर इस्तेमाल नहीं किया गया ।

Famous Lyrics of Sahir Ludhianvi 

मधुबाला का ‘ नया दौर ‘ से अलग होने का क़िस्सा बड़ा चर्चित रहा है । उन दिनों दिलीप कुमार और मधुबाला का रोमांस अपने शबाब पर था । दोनों ‘तराना’ (1951), ‘संगदिल’ ( 1952 ) ,’ अमर ‘ ( 1954 ) आदि फ़िल्मों में साथ काम करते करते काफ़ी नज़दीक आ चुके थे । ये नज़दीकियाँ मधुबाला के पिता अताउल्ला खान को रास नहीं आ रहीं थीं । बी आर चोपड़ा ‘ नया दौर ‘ की आउटडोर शूटिंग भोपाल के पास बुधनी में प्लान कर चुके थे । मधुबाला के पिता को यह बात पसन्द नहीं आयी । उन्हें डर था कि आउटडोर शूटिंग के दौरान मधुबाला और दिलीप कुमार साथ रहेंगे तो उनके सम्बन्ध और गाढ़े हो जायेंगे । उन्होंने मधुबाला को आउटडोर शूटिंग में भेजने से साफ़ मना कर दिया। बी आर चोपड़ा के लाख समझाने पर भी वे ना माने। बात इतनी बिगड़ी कि बी आर चोपड़ा ने मधुबाला के ख़िलाफ़ काण्ट्रैक्ट तोड़ने का मुक़दमा दायर कर दिया। मुक़दमे में दिलीप कुमार ने बी आर चोपड़ा के पक्ष में गवाही दी जिसके कारण उनके और मधुबाला के सम्बन्धों में दरार पैदा हो गयी। मुक़दमा चोपड़ा साहब के पक्ष में जा रहा था परन्तु मधुबाला को सज़ा से बचाने के लिये उन्होंने मुक़दमा वापिस ले लिया।

The Rhythm King O P Nayyar

मधुबाला और दिलीप कुमार के रिश्ते इतने बिगड़े कि उनकी आपस की बोलचाल एकदम बन्द हो गयी। ‘मुग़लेआज़म’ के निर्माण के आधे समय दोनों के बीच दुआ सलाम भी नहीं होती थी। पर उस फ़िल्म के प्रेम दृश्यों को देख कर इस बात का अन्दाज़ लगा पाना भी मुश्किल है। ‘नया दौर’ इन्सान और मशीन के बीच लड़ाई की कहानी थी । बी आर चोपड़ा ने जब यह कहानी अपने सीनियर महबूब खान साहब को सुनाई तो उन्होंने कहा कि इस थीम पर एक अच्छी डाक्यूमेण्ट्री फ़िल्म बन सकती है लेकिन इस पर बनी फ़ीचर फ़िल्म लोगों को पसन्द नहीं आयेगी और फ़्लॉप हो जायेगी । बी आर चोपड़ा को अपनी कहानी पर विश्वास था । उन्होंने बड़ी लगन व मेहनत से फ़िल्म बनाई जो सुपरहिट साबित हुयी। ‘ नया दौर ‘ के 100 दिन पूरे होने पर जो जश्न मनाया गया उसमें बी आर चोपड़ा ने महबूब साहब को चीफ़ गेस्ट बना कर आमंत्रित किया। सारे दर्शकों के सामने महबूब साहब ने अपनी ग़लती मान कर चोपड़ा साहब और फ़िल्म की खुले दिल से तारीफ़ की।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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