गीत – तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती
एक ख़्वाब सा देखा है ताबीर नहीं बनती
फ़िल्म – बारादरी (1955)
संगीतकार – नाशाद
गीतकार – ख़ुमार बाराबंकवी
गायक – तलत महमूद
मेंहदी हसन साहब की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल है – “रफ़ता रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गये, पहले जां फिर जानेजां फिर जानेजाना हो गये” हर महफ़िल में लोग उनसे ये ग़ज़ल सुनाने की फ़रमाइश करते थे। यह ग़ज़ल पाकिस्तानी फ़िल्म ‘ज़ीनत‘ (1975) की थी। जिसे शायर तस्लीम फ़ाज़ली ने लिखा था। हिन्दी फ़िल्म ‘हम कहाँ जा रहे हैं‘ (1966, नीना, प्रकाश) फ़िल्मिस्तान के बैनर तले बनने वाली आख़री फ़िल्मों में थी। इसमें एक नामालूम से संगीतकार बसंत प्रकाश के संगीत में महेन्द्र कपूर और आशा भोंसले का गाया एक गीत बड़ा मशहूर हुआ था –
रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमां हो गये
पहले जां फिर जानेजां फिर जानेजाना हो गये
रफ़्ता रफ़्ता वो मेरी तस्कीं की सामां हो गये
पहले दिल फिर दिलरुबा फिर दिल के मेहमां हो गये
इस ग़ज़ल को क़मर जलालाबादी ने लिखा था जिससे प्रभावित हो कर पाकिस्तान में तस्लीम फ़ाज़ली ने फ़िल्म ‘ज़ीनत’ के लिये अपनी ग़ज़ल लिखी। मेंहदी हसन साहब की गायकी का जादू है कि आज लोग इस ग़ज़ल को उनकी ग़ज़ल के नाम से जानते और याद करते हैं। पाकिस्तानी फ़िल्म ‘ज़ीनत’ के संगीतकार नाशाद थे, जो सन 1964 में भारत छोड़ पाकिस्तान जा कर बस गये थे। नाशाद का असली नाम शौक़त अली हाशमी था। 1947 से 1953 के बीच उन्होंने कई फ़िल्मों में संगीत शौक़त हैदरी और शौक़त देहलवी के नाम से दिया था जैसे – दिलदार, जीने दो, टूटे तारे, पायल, दादा, आइये, ग़ज़ब वग़ैरह।
प्रोड्यूसर, डायरेक्टर नक़्शब जर्चावी एक फ़िल्म बना रहे थे ‘नग़मा‘(1953) जिसके मुख्य कलाकार अशोक कुमार और नादिरा थे। नक़्शब जर्चावी और नादिरा का निकाह भी हुआ था पर वह शादी ज़्यादा समय तक नहीं चली। ‘नग़मा’ में संगीत के लिये नक़्शब चाहते थे कि नौशाद साहब को साइन किया जाये। नौशाद बेहद सोच समझ कर गिनी चुनी फ़िल्में लेते थे तो उन्होंने नक़्शब का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। नक़्शब ने इससे अपने को बड़ा अपमानित महसूस किया। नौशाद से बदला लेने के लिये उन्होंने संगीतकार शौक़त हैदरी/देहलवी से कहा कि वे उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर म्यूज़िक डायरेक्टर लेंगे पर उन्हें ‘नाशाद’ के नाम से संगीत देना पड़ेगा। ‘नौशाद’ के मिलते जुलते नाम ‘नाशाद’ से सबको धोखा देने की नीयत से यह किया जा रहा था। शौक़त हैदरी को उस वक़्त काम की ज़रूरत थी तो वे तैयार हो गये। ‘नग़मा’ की सफलता के बाद यह नाम ताज़िन्दगी उनसे जुड़ा रहा ।
नाशाद ने फिर जिन फ़िल्मों में संगीत दिया उनमें ‘बारादरी’ (1955, गीताबाली, अजीत, चन्द्र शेखर, प्राण) सबसे प्रमुख है। इस फ़िल्म के गीत आज भी याद किये जाते हैं। मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का गाया गीत ‘भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, ज़माना ख़राब है दगा नहीं देना जी दगा नहीं देना’ बेहद सुरीला बन पड़ा था।
‘आज का गीत’ में तलत महमूद का गाया ‘बारादरी’ का अमर गीत पेश है जो चन्द्र शेखर पर फ़िल्माया गया था –
तस्वीर बनाता हूँ , तस्वीर नहीं बनती
एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।