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बनारस सिर्फ गाँजा-भांग-चरस की चिलम चढ़ाये ‘फोटो-फ्रेन्डली’ बाबाजी लोगों या फिर टूटी-फूटी अंग्रेजी में ‘अंग्रेजों’ को लूट लेने की जुगत में दिमाग खपातेजुगाड़ियों का ही शहर नहीं है, बनारस में जिन्दगी का एक पहलू और भी है…थोड़ा मार्मिक-थोड़ा निष्ठुर पर सच्चाई के बिल्कुल करीब! नीरज घायवान की’मसान’ आपका परिचय एक बिल्कुल नये बनारस से कराती है, जिसे आपने देखा-सुना तो शायद जरुर होगा पर इस बार आप उसे रुंधे गले-भरे दिल औरडबडबाई आँखों से महसूस भी कर पायेंगे।
ये उन नौजवानों का बनारस है, जिनका प्रेम फेसबुक की दीवारों पर परवान चढ़ता है। जिनकी आशाएँ-आकांक्षाएँ जमीन से उखड़ी नहीं हैं, पर हर तरह के सामाजिक बन्धनों को तोड़ने का दम-खम रखती हैं। नायक(विकी कौशल) मसान (शमशान का अपभ्रंश) में चिताएं सजाने-जलाने वाले एक डोम परिवार से सम्बन्ध रखताहै। स्थानीय कालेज से सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा लेने के बाद शायद वो इस पेशे से अलग भी हो जाए,पर आज उसे अपने परिवार का हाथ बँटाने में तनिक गुरेज़ नहीं। प्यार के मामले में भी नायक अपनीकमजोरियां बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेता है।
नायिका (रिचा चढ्ढा) को अपने प्रेमी के साथ एक होटल के कमरे में सेक्स करते हुए पकड़े जाने का कोई मलाल नहीं, हालांकि इस पूरे मामले को सनसनीखेज बनाने की पुलिस की कोशिशों से अब उसकी जिंदगी इतनी आसान नहीं रही पर उसके वजूद को तोड़ना अब भी कोई हंसी खेल नहीं।
‘मसान’ जिन्दगी, मौत और उसके बीचकी तमाम बातों का एक सीधा सा दिखने वाला पर जटिल लेखा-जोखा है। मसान में चिता जलाते किरदार जबमुर्दा शरीर के अंगों के साथ खेलते नजर आते हैं, मौत जिन्दगी से हलकी लगने लगती है।
“दु:ख खतम क्यों नहींहोता, रे?” कहकर जब नायक का सब्र पीड़ा के आगे घुटने टेक देता है, तब भी जिन्दगी ही हारती दिखती है, पर अभी सब कुछ खतम नहीं हुआ है। जिन्दगी अब भी बाकी है।