छू लेने दो नाज़ुक होंठों को कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये- काजल (1965) गीत – छू लेने दो नाज़ुक होंठों को कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये…
खिलते हैं गुल यहाँ, खिल के बिखरने को मिलते हैं दिल यहाँ- शर्मीली (1971) गीत – खिलते हैं गुल यहाँ, खिल के बिखरने को मिलते हैं दिल यहाँ, मिल…