गीत – हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गये
फ़िल्म – काला पानी (1958)
संगीतकार – सचिनदेव बर्मन
गीतकार – मजरूह सुल्तानपुरी
गायक – मोहम्मद रफ़ी

राज खोसला निर्देशित फ़िल्म ‘ काला पानी ‘ (1958) , जिसमें देव आनन्द के साथ मधुबाला और नलिनी जयवंत थीं , का देव आनन्द के कैरियर में विशेष था । अपनी आत्मकथा में ‘ काला पानी ‘ को याद करते हुये उन्होंने लिखा था कि इस फ़िल्म में उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ नायक का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला था । यह पुरस्कार उन्हें एक समारोह में इजिप्ट के तत्कालीन राष्ट्रपति अल नासिर के हाथों दिलाया गया था । साथ ही नलिनी जयवंत को भी सर्वश्रेष्ठ सह नायिका के अवार्ड से नवाज़ा गया था।

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‘काला पानी’ में नायक देव आनन्द के निरअपराध पिता को काला पानी की सज़ा सुना दी जाती है । नायक शपथ लेता है कि कि वह जब तक अपने निर्दोष पिता को न्याय नहीं दिला देता तब तक शोक के प्रतीक काले कपड़े पहनेगा । फ़िल्म के अधिकांश हिस्से में देव साहब ने काले कपड़े पहने थे । उस फ़िल्म के बाद ख़बर मशहूर हो गयी थी कि देव आनन्द को काले कपड़े पहनने से मना किया गया था क्योंकि उन्हें काले कपड़ों में देख कर महिलायें अपने होश गवाँ देती थीं । इस अफ़वाह का उन्होंने बड़ा मज़ा लिया और कभी इसका खंडन नहीं किया ।

‘काला पानी ‘ की शूटिंग चल रही थी तब ख़बर आयी कि इण्डोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो शूटिंग देखने आने वाले हैं । देव आनन्द , राज खोसला सहित यूनिट के सारे लोग उनके स्वागत की तैयारी में जुट गये । उस दिन ‘ हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गये ‘ गीत की शूटिंग चल रही थी । देव आनन्द और नलिनी जयवंत ने गीत की रिहर्सल कर अपने को तैयार कर लिया । लगभग दो घण्टे की प्रतीक्षा के बाद जब राष्ट्रपति सुकर्णो नहीं पधारे तो गीत की शूटिंग पूरी कर ली गयी । जैसे ही अंतिम शाट ओके हुआ ख़बर आई कि सुकर्णो साहब अपने दल बल सहित स्टूडियो पहुँच गये हैं । सेट पर पहुँचते ही सबने उनका स्वागत किया । फिर उन्हें शूटिंग दिखाने के लिये वह गीत जिसका फ़िल्मांकन पूरा हो चुका था , फिर से फ़िल्माने का नाटक किया गया । राज खोसला के लाइट , कैमरा , एक्शन के साथ देव आनन्द व नलिनी जयवंत ने गीत पर फिर अभिनय किया । ‘ कट’ और शॉट ओके होते ही देव फिर से सुकर्णो साहब के पास पहुँचे । राष्ट्रपति ने खुले दिल से उनके अभिनय की तारीफ़ की । देव आनन्द सहित यूनिट के सारे सदस्यों ने इस ड्रामे का मन ही मन ख़ूब आनन्द लिया।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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