गीत – जिया बेक़रार है छाई बहार है
आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है
फ़िल्म – बरसात (1949)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायिका – लता मंगेशकर

हसरत जयपुरी प्रेमगीतों के गीतकार माने जाते हैं। फ़िल्मों के लिये प्रेमगीत लिखना जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं है। फ़िल्म दर फ़िल्म उन्हीं प्रेमभावों को आख़िर कितनी बार अलग अलग तरह से व्यक्त किया जा सकता है? हर बार कोई नई और अनूठी बात पैदा करना बेहद कठिन है। हसरत जयपुरी ने इस कठिन कार्य को बड़ी ख़ूबसूरती से अंजाम दिया है। बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे, आ नीले गगन तले प्यार हम करें, आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ, फूलों की रानी बहारों की मलिका तेरा मुस्कुराना ग़ज़ब हो गया, अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो, छलके तेरी आँखों से शराब और ज़्यादा- एक से बढ़ कर एक प्यार भरे नग़मों की लम्बी क़तार है जिसका सिरा नज़र नहीं आता।

जयपुर के वासी इक़बाल हुसैन अपनी जवानी की शुरुआत में अपने घर के सामने रहने वाली राधा से प्यार कर बैठे। उनके अनुसार प्यार तो प्यार होता है वह कोई जाति, धर्म या और कोई बंधन नहीं मानता। पर उस ज़माने में धर्म की दीवार और भी मज़बूत होती थी जिसे तोड़ पाना दुष्कर था। उस प्यार ने उन्हें शायर बना दिया और वे इक़बाल हुसैन से हसरत जयपुरी बन गये। उन्होंने राधा को अपनी ज़िन्दगी का पहला प्रेमपत्र लिखा-  ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर तुम नाराज़ न होना, कि तुम मेरी ज़िन्दगी हो कि तुम मेरी बन्दगी हो

बरसों बाद थोड़ी फेरबदल कर इस गीत को ‘संगम‘ फ़िल्म में राजकपूर ने इस्तेमाल किया। इस गीत के कारण ही शंकर जयकिशन के बीच पहली बार हल्की सी दरार आ गयी थी। उन दोनों के बीच समझौता था कि कौन सा गीत किसने बनाया है यह बात कभी बाहर उजागर नहीं होने दी जायेगी। लेकिन जयकिशन ने एक इंटरव्यू में यह बता दिया था कि इस गीत की धुन उन्होंने तैयार की थी। शंकर इस बात पर आहत और नाराज़ हो गये थे।

हसरत जयपुरी प्यार में असफल हो कर बम्बई आ गये थे। आठ वर्षों तक बस के कण्डक्टर रहे पर शायरी का दामन ना छोड़ा। किसी मुशायरे में उनके कलाम से प्रभावित हो कर पृथ्वीराज कपूर ने राजकपूर से उनकी सिफ़ारिश कर दी और उन्हें आर के फ़िल्म्स की ‘बरसात’ में गीत लिखने का मौक़ा मिल गया।

‘बरसात’ के लिये शंकर ने एक धुन बनाई थी। उसमें उन्होंने अपने बचपन में सुनें एक लोकगीत का सहारा लिया था जिसके बोल कुछ इस तरह थे – अम्बुआ का पेड़ है, छाया मुण्डेर है,  आजा मोरे बालमा, अब काहे की देर है

राजकपूर ने हसरत जयपुरी से इस धुन पर गीत लिखने कहा। गीत की सिचुएशन बताई गयी कि एक युवती अपने प्रेमी का इंतज़ार कर रही है जो आने का वादा कर उसे छोड़ कर चला गया है। गीत निम्मी पर फ़िल्माया जाना था। इस पर हसरत जयपुरी ने जो पहला गीत लिखा वह था – जिया बेक़रार है, छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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