गीत – दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
तूने काहे को दुनिया बनाई
फ़िल्म – तीसरी क़सम (1966)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायक – मुकेश / सुमन कल्याणपुर

बासु भट्टाचार्य अपने कैरियर के आरंभ में बिमल रॉय के सहायक थे । स्वतंत्र निर्देशक के रूप में उनकी पहली फ़िल्म आई ‘ उसकी कहानी ‘( 1966 ) । यह फ़िल्म दो कारणों से थोड़ी चर्चा में रही – गीतादत्त के गाये गीत ‘ आज की काली घटा , मस्त मतवाली घटा , मुझसे कहती है कि प्यासा है कोई ‘( क़ैफ़ी आज़मी , कनु रॉय ) तथा नायिका अंजू महेन्द्रू । मशहूर खिलाड़ी गैरी सोबर्स के साथ सगाई की ख़बरों के कारण अंजू महेन्द्रू का नाम सुर्ख़ियो में रहा था । यह सगाई बाद में टूट गयी थी और अंजू महेन्द्रू राजेश खन्ना के साथ अपने सम्बन्धों के कारण चर्चा में बनी रहीं । ‘ उसकी कहानी ‘ का टिकिट खिड़की पर प्रदर्शन अत्यन्त निराशाजनक रहा था ।

1966 में ही बासु भट्टाचार्य की सबसे चर्चित फ़िल्म ‘ तीसरी क़सम ‘ ( राज कपूर , वहीदा रहमान ) रिलीज़ हुयी । फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘ तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गये गुलफ़ाम ‘ पर आधारित इस फ़िल्म के निर्माता गीतकार शैलेंद्र थे । शैलेंद्र ने इस फ़िल्म के निर्माण की क़ीमत अपनी जान दे कर चुकाई । क़र्ज़ ले कर बन रही यह फ़िल्म लम्बे समय तक निर्माणाधीन रही और सूद का बोझ दिनोंदिन बढ़ता रहा । शैलेन्द्र अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के व्यवहार से भी टूट गये । अभिन्न मित्र राजकपूर का सारा ध्यान अपनी होम प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘ संगम ‘ पर था । ‘ संगम ‘ उनकी पहली रंगीन फ़िल्म थी और वे उसकी रिलीज़ से पहले अपनी कोई ब्लैक एण्ड व्हाइट , छोटी फ़िल्म प्रदर्शित नहीं करना चाह रहे थे । निर्देशक बासु भट्टाचार्य बिमल रॉय की इच्छा के विरुद्ध उनकी पुत्री से विवाह कर लम्बे अरसे के लिये कलकत्ता चले गये थे । विभिन्न कारणों से ‘ तीसरी क़सम ‘ रुकी पड़ी रही ।

Shailendra’s rare photos 

आज यह फ़िल्म एक क्लासिक मानी जाती है । पर जब यह रिलीज़ हुयी थी तो बॉक्स ऑफ़िस पर असफल रही थी । ‘ तीसरी क़सम ‘ का संगीत पक्ष अत्यन्त मनमोहक और सदाबहार था । आज भी उसके सारे गीत एकदम ताज़ा महसूस होते हैं । कहा जाता है कि फ़िल्म के सारे गाने शंकर ने बनाये थे । जयकिशन के हिस्से में केवल बैक ग्राउण्ड म्यूज़िक आया था । शैलेंद्र ने अपने साथी गीतकार हसरत जयपुरी से भी दो गीत लिखवाये थे – ‘ मारे गये गुलफ़ाम अजी हाँ मारे गये गुलफ़ाम ‘ ( लता मंगेशकर ) तथा ‘ दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई , तूने काहे को दुनिया बनाई ‘ ( मुकेश / सुमन कल्याणपुर ) ।

Raj Kapoor & Nargis rare photos

गीतकार शैलेंद्र की मृत्यु के समय शैली शैलेन्द्र के अलावा बाक़ी सारे बच्चे छोटे छोटे थे । उनके सबसे छोटे बेटे दिनेश शंकर शैलेन्द्र बड़े हो कर ‘ तीसरी क़सम ‘ के निर्देशक बासु भट्टाचार्य के सहायक बने । ‘ डाकू’ ( 1975 ) , ‘ संगत ‘ ( 1976 ) , ‘ आनन्द महल ‘ आदि फ़िल्मों में वे बासु भट्टाचार्य के सहायक निर्देशक थे । पिछले दिनों उन्होंने फ़ेसबुक पर बासु भट्टाचार्य की एक अधूरी फ़िल्म ‘ असमाप्त कविता ‘ के बारे में जानकारी शेयर की थी । इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर संगीतकार श्यामल मित्रा ( अमानुष , आनन्द आश्रम ) तथा मानेक दत्त ( चरित्र अभिनेता और अभिनेत्री अनिता गुहा के पति ) थे । फ़िल्म के मुख्य कलाकारशर्मीला टैगोर , गुलज़ार और देवेन्द्र खण्डेलवाल थे । यह ‘ असमाप्त कविता ‘ असमाप्त ही रह गयी और हम दर्शक गीतकार गुलज़ार को अभिनेता के रूप में पर्दे पर देखने से वंचित रह गये । गुलज़ार लिखित एक कविता जो इस फ़िल्म में इस्तेमाल की गयी थी उसे भी दिनेश शंकर शैलेंद्र जी ने पोस्ट किया था –

असमाप्त कविता – – गुलज़ार
वो जो शायर था , चुप सा रहता था
बहकी बहकी सी बातें करता था
आँखों कानों पे रख के सुनता था
गूँगी ख़ामोशियों की आवाज़ें
जमा करता था चाँद की
गीली गीली सी नूर की बूँदें
ओक में भर के खड़खड़ाता था
रूखे रूखे से रात के पत्ते
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोंड़ी चूमा करता था
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है 

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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