गीत – जाता कहाँ है दीवाने , सब कुछ यहाँ है सनम
फ़िफ्फ़ी कुछ मेरे दिल में फ़िफ्फ़ी
फ़िल्म – सी आई डी (1956)
संगीतकार – ओ. पी. नय्यर
गीतकार – मजरूह सुल्तानपुरी
गायिका – गीता दत्त

एक बार गुरुदत्त हैदराबाद में अपनी फ़िल्म ‘मिस्टर एण्ड मिसेज़ 55‘ के वितरक के दफ़्तर में बैठे थे। बाहर हो हल्ला सुन कर उन्होंने कारण जानना चाहा। पता चला कि एक हिट तेलुगु फ़िल्म ‘रोजुलु मारायी‘ की कलाकार को देखने के लिये भीड़ लगी है। वह कलाकार वहीदा रहमान थीं। उन पर फ़िल्माया नृत्य और गीत ‘इरुवाका सागारो रान्नो चिनन्ना’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। गुरुदत्त उन दिनों अपनी फ़िल्म ‘ सी आई डी ‘ के लिये सहनायिका / वैम्प के रोल के लिये एक नया चेहरा तलाश रहे थे । वे वहीदा रहमान से मिले और उन्हें बम्बई आने का न्योता दिया।

‘सी आई डी’ के निर्देशक राज खोसला थे। वे जब ‘बम्बई का बाबू‘ (1960) बना रहे थे तब उन्होंने एस डी बर्मन साहब से ‘ रोजुलु मारायी ‘ के तेलुगु गाने की धुन पर एक गीत बनवाया था -‘ देखने में भोला है दिल का सलोना , बम्बई से आया है , बाबू चिनन्ना।’ मजरूह सुल्तानपुरी ने मूल तेलुगु गीत का ‘ चिनन्ना ‘ अपने हिन्दी गीत में भी इस्तेमाल कर लिया था।

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‘सी आई डी’ में वहीदा रहमान के ऊपर दो गाने फ़िल्माये गये थे – ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना’ (शमशाद बेग़म) और –

जाता कहाँ है दीवाने , सब कुछ यहाँ है सनम
बाक़ी के सारे फ़साने , झूठे हैं तेरी कसम
फ़िफ़्फी कुछ तेरे दिल में फ़िफ़्फी
कुछ मेरे दिल में फ़िफ़्फी
ज़माना है बुरा (गीतादत्त)

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जब फ़िल्म सेंसर बोर्ड के पास गयी तो सदस्यों को ‘फ़िफ़्फी’ शब्द पर आपत्ति थी। उन्हें यह शब्द दोअर्थी और अश्लील लगा। यह गीत सेंसर बोर्ड की आपत्ति के कारण काट देना पड़ा। 2015 में जब अनुराग कश्यप ‘बाम्बे वेल्वेट’ बना रहे थे तब उन्होंने पचास के दशक का बम्बई का माहौल बताने के लिये इस गीत ‘जाता कहाँ है दीवाने, फ़िफ़्फी’ का इस्तेमाल किया। यह गीत सुमन श्रीधर की आवाज़ में पुनः रिकार्ड कर ‘बाम्बे वेल्वेट’ में रखा गया। इतने बरसों में सेंसर बोर्ड का नज़रिया बदल चुका था। इस बार उन्हें गीत में कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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