गीत – ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ
सुन जा दिल की दास्ताँ
फ़िल्म – जाल (1952)
संगीतकार – सचिनदेव बर्मन
गीतकार – साहिर लुधियानवी
गायक – हेमन्त कुमार

टाइम्स ग्रुप की अंग्रेज़ी पत्रिका ‘इलस्ट्रेटेड वीकली अॉफ इण्डिया‘ के सहायक सम्पादक और जानेमाने संगीत समीक्षक राजू भारतन ने अपनी एक पुस्तक में गुरुदत्त और गीताराय/ दत्त के विवाह का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। गीताराय और गुरुदत्त का विवाह 26 मई 1953 को सम्पन्न हुआ था। शादी का स्वागत समारोह उस शाम गीता जी के सान्ताक्रुज़ वाले बंगले में आयोजित था। दूल्हेराजा गुरुदत्त पादुकोण अपनी हडसन कार में वहाँ पहुँचे। कार फूलों से इस क़दर लदी हुयी थी कि उसका रंग भी बता पाना मुश्किल था। मंच पर मौजूद सुन्दरियों के समूह में प्रमुख थीं – गीताबाली, कल्पना कार्तिक, नलिनी जयवंत, नूतन, कामिनी कौशल, सुमित्रादेवी, रूमादेवी ( किशोर कुमार की पहली पत्नी )। पुरुषों में देव आनन्द, चेतन आनन्द, मोतीलाल, जयराज, केदार शर्मा, रामानन्द सागर, ओम प्रकाश, के एन सिंह आदि शोभायमान थे। गायकों की भी पूरी क़तार वहाँ विराजमान थी – लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, हेमन्त कुमार, तलत महमूद, किशोर कुमारमुकेश उस दिन शहर में मौजूद नहीं थे ।

उस समारोह के सबसे रोचक भाग के सूत्रधार बने गुरुदत्त के सहायक राज खोसला जो स्वयं एक कुशल गायक थे। राज खोसला ने सभी गायकों से अनुरोध किया कि वे कुछ गा कर शाम को कुछ और रंगीन बनाने में अपना योगदान दें। बस शर्त यह रख दी कि वह गीत गुरुदत्त की किसी फ़िल्म का हो।  लता मंगेशकर ने फ़िल्म ‘जाल‘ (1952) के गीत से शुरुआत की। यह गीत पर्दे पर गीताबाली पर फ़िल्माया गया था जो साक्षात वहाँ उपस्थित थीं -‘पिघला है सोना दूर गगन पर’। किशोर कुमार ने भी ‘जाल’ का एक मस्ती भरा गीत गा कर आनन्द बिखेरा -‘दे भी चुके हम दिल नज़राना दिल का’।

Hemant Kumar Singing Live Na Tum Hamein Jano

मोहम्मद रफ़ी को अपने गाये गीतों के बोल कभी याद नहीं रहते थे। उनके साले ज़हीर जो उनके सेक्रेटरी का काम भी संभालते थे वे उर्दू में उन्हें गाने के बोल लिख कर देते थे जिसे देख कर वे गाने रिकार्ड कराया करते थे। सब आशा कर रहे थे कि मोहम्मद रफी फ़िल्म ‘बाज़‘ ( 1953 ) का गीत गायेंगे-‘जो दिल की बात होती है, नज़र तक आ ही जाती है’, लेकिन गीत याद न होने से रफ़ी साहब चुपचाप वहाँ से खिसक लिये। तलत महमूद ने ‘ बाज़ ‘ का एक दूसरा गीत सुनाया,’मुझे देखो हसरत की तस्वीर हूँ मैं’। उस शाम की सबसे मोहक प्रस्तुति हेमन्त कुमार साहब की रही जिन्होंने ‘जाल’ का वह सदाबहार गीत अपनी दिलकश आवाज़ में पेश किया – ‘ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ’।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

Leave a comment

Verified by MonsterInsights