गीत – ये ज़िन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया
प्यार ही में खो गया
फ़िल्म – अनारकली (1953)
संगीतकार – सी रामचन्द्र
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण
गायिका – लता मंगेशकर

शहज़ादा सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म ‘मुग़लेआज़म’ ने मूर्त रूप लेने में कई बरस लगा दिये थे। के आसिफ़ के दिमाग़ में इसका बीजारोपण 1944 में हुआ था और यह फ़िल्म 1960 में जा कर प्रदर्शित हो सकी। इस बीच फ़िल्मिस्तान ने अपनी फ़िल्म ‘अनारकली‘ (1953) तेज़ी से बना कर रिलीज़ भी कर दी। बीनाराय, प्रदीप कुमार, मुबारक़, कुलदीप कौर अभिनीत इस फ़िल्म का संगीत पक्ष अत्यन्त सबल था। प्रमुख संगीतकार सी रामचन्द्र थे। साथ ही दो गीत संगीतकार बसन्त प्रकाश ने बनाये थे -‘आ जानेवफ़ा'(गीतादत्त) तथा अय रात ठहर जाना , यूँ ही ना गुज़र जाना ‘ (लता मंगेशकर)। अगर संगीतकार दो थे तो गीतकार चार – राजेन्द्र कृष्ण, हसरत जयपुरी, शैलेंद्र और जाँ निसार अख़्तर

Magic of Shankar Jaikishan-A Live Recording

संगीतकार सी रामचन्द्र जब ‘ये ज़िन्दगी उसी की है’ गीत के ‘सैड वर्शन’ की धुन बना रहे थे उस समय संगीतकार रोशन और लता मंगेशकर भी वहाँ उपस्थित थे। वे जो धुन बना रहे थे, उससे उन्हें सन्तुष्टि नहीं हो रही थी। कुछ समय पश्चात उन्होंने रोशन जी से अनुरोध किया कि वे सहायता करें। रोशन ने हारमोनियम ले कर इन पंक्तियों को स्वरबद्ध किया –

सुनायेगी ये दास्ताँ शमां मेरे मज़ार की
ख़िज़ां में भी खिली रही ये कली अनार की
इसे मज़ार मत कहो , ये महल है प्यार का
से ज़िन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया
इस प्रकार रोशन और सी रामचन्द्र के सामूहिक प्रयास से इस गीत की रचना हुई।

पंडित जसराज ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक बार वे उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां साहब व कुछ अन्य लोगों के साथ बैठे थे। उस समय कुछ दूर से लता मंगेशकर के गाये गीत ‘ये ज़िन्दगी उसी की है’ बजने की आवाज़ आई। खां साहब ने सबको शांत रहने का इशारा किया और बड़े मनोयोग से गीत सुनने लगे। गीत की समाप्ति पर लता की गायकी से प्रभावित हो कर उन्होंने स्नेहसिक्त टिप्पणी की, ‘ कमबख़्त कभी भूल कर भी बेसुरी नहीं होती।’

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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