गीत – सावन का महीना , पवन करे सोर
फ़िल्म – मिलन (1967)
संगीतकार – लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
गीतकार – आनन्द बख़्शी
गायक – मुकेश, लता मंगेशकर

निर्माता, निर्देशक एल वी प्रसाद का नाम दक्षिण भारत के फ़िल्म उद्योग का एक लब्धप्रतिष्ठ नाम था (और है)। सब उन्हें अत्यन्त सम्मान की दृष्टि से देखते थे। उनके बैनर प्रसाद प्रोडक्शन ने दक्षिण की भाषाओं के साथ साथ हिन्दी में भी लगातार सफल फ़िल्में दी थीं। छोटी बहन (1959), ससुराल (1961) , हमराही (1963) , बेटी बेटे (1964) -इन सभी फ़िल्मों में शंकर जयकिशन का संगीत था।

शंकर और जयकिशन इन दोनों का स्वभाव अलग अलग था। जयकिशन अत्यन्त सौम्य स्वभाव के थे जब कि शंकर ‘यथा नाम तथा गुण’, भगवान शंकर के समान ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ थे। शीघ्र नाराज़ होने वाले और शीघ्र शांत हो जाने वाले। किसी से ग़ुस्सा होते तो बोलते,’ मुझे परेशान ना करो वरना मैं अपना तीसरा नेत्र खोल दूँगा। कभी कभी उनका रौद्र रूप सामने आ जाता था। शरीर से भी वे पहलवान थे तो सामने वाला व्यक्ति सहम जाता था।

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एक बार शंकर अपने म्यूज़िक रूम में संगीत सृजन में व्यस्त थे। उन दिनों वे प्रसाद प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘बेटी बेटे’ का संगीत निर्देशन कर रहे थे। एल वी प्रसाद साहब उनसे मिलने पहुँचे। अन्दर जब उन्हें ख़बर दी गयी कि प्रसाद साहब मिलने आये हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें बैठने कहो, थोड़ी देर में मिलते हैं।

थोड़ी देर बाद फिर उन्हें याद दिलाया गया कि एल वी प्रसाद साहब प्रतीक्षा कर रहे हैं। तो वही जवाब था। कुछ समय बाद एक संदेशवाहक ने पुन: आ कर कहा कि एल वी प्रसाद साहब मिलने के लिये बैठे हैं, तो वे झुंझला गये, ‘अरे ठीक है। वो एल वी प्रसाद हैं तो हम भी शंकर जयकिशन हैं। उनसे कहो थोड़ा इंतज़ार करें।’ एल वी प्रसाद साहब अपमान का कड़वा घूँट पी कर रह गये। ‘बेटी बेटे’ के पूरा हो जाने के बाद फिर उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ काम नहीं किया। प्रसाद प्रोडक्शन की अगली फ़िल्म ‘मिलन’ (1967) में संगीत के लिये लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल को साइन किया गया। इसके बाद लगातार कई वर्षों तक प्रसाद साहब लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के साथ काम करते रहे – जीने की राह (1969), राजा और रंक (1970), खिलौना (1970), एक दूजे के लिये (1981) वग़ैरह वग़ैरह।

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लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल की जोड़ी ने ‘मिलन’ (सुनील दत्त, नूतन, जमुना, प्राण) के लिये कमाल के गीत बनाये। वर्ष का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल को ‘मिलन’ के लिये मिला। ‘बिनाका गीतमाला’ को उन दिनों गीतों की लोकप्रियता मापने का बैरोमीटर माना जाता था। उस वर्ष की सालाना गीतमाला की हिट परेड में ‘मिलन’ के तीन गीत थे – ‘मुबारक हो तुमको समां ये सुहाना’, ‘ हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के ‘ तथा तीसरा व अंतिम गीत था – ‘सावन का महीना पवन करे सोर’ जिसने उस वर्ष सालाना बिनाका गीतमाला की पहली पायदान पर जगह पा कर टॉप किया था।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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