गीत – गंगा आये कहाँ से , गंगा जाये कहाँ रे
लहराये पानी में जैसे , धूपछाँव रे
फ़िल्म – काबुलीवाला (1961)
संगीतकार – सलिल चौधरी
गीतकार – गुलज़ार
गायक – हेमन्त कुमार

सामान्यतः समझा जाता है कि बिमल राय निर्देशित फ़िल्म ‘बन्दिनी’ (1963) का गीत ‘मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे’ गीतकार गुलज़ार का लिखा पहला गीत है। अपने दिये साक्षात्कारों में स्वयं गुलज़ार भी कुछ ऐसा ही आभास देते नज़र आते हैं। पर उपलब्ध तथ्य इसके विपरीत हैं। गीतकार नक़्श लायलपुरी जिनका वास्तविक नाम जसवंत राय शर्मा है का एक इंटरव्यू पढ़ा था जिसमें उन्होंने बताया था कि उन्होंने 1960 में ‘चोरों की बारात‘ नामक फ़िल्म में गीत लिखे थे। उस फ़िल्म में उनके अलावा चार और गीतकार थे जिनमें गुलज़ार दीनवी एक थे जिन्होंने बाद में ‘गुलज़ार’ नाम से गीत लिखे। उनका लिखा गीत था – ‘ये दुनिया है ताश के पत्ते, इसको करो सलाम’। गुलज़ार ‘दीना’ नामक स्थान के निवासी थे जो झेलम ज़िले, पाकिस्तान में पड़ता है। ‘दीना’ जन्मस्थान होने के कारण वे अपने नाम के साथ ‘दीनवी’ लगाते थे । ‘चोरों की बारात’ के अलावा ‘दिलेर हसीना‘( 1960 ) और ‘श्रीमान सत्यवादी‘ (1960 , राज कपूर , शकीला , महमूद) फ़िल्मों में भी उन्होंने गुलज़ार दीनवी के नाम से गीत लिखे। ‘दिलेर हसीना’ में महेन्द्र कपूर का गाया गीत -‘चटको ना मटको ना’ तथा ‘श्रीमान सत्यवादी’ के तीन गीत संगीतकार दत्ताराम के लिये गुलज़ार दीनवी के गीत थे – रुत अलबेली मस्त समां (मुकेश), भीगी हवाओं में तेरी (मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर), एक बात कहूँ वल्लाह (मुकेश, महेन्द्र कपूर, सुमन कल्याणपुर)। बिमल राय से भी गुलज़ार ‘बन्दिनी’ (1963) के पहले से जुड़े हुये थे। बिमल राय निर्देशित ‘प्रेमपत्र‘ ( 1962, शशि कपूर, साधना) में गुलज़ार की क़लम से निकला एक गीत था जिसे तलत महमूद और लता मंगेशकर ने सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में गाया था – ‘सावन की रातों में ऐसा भी होता है’।

बिमलराय प्रोडक्शन्स की एक अत्यन्त चर्चित फ़िल्म थी – ‘काबुलीवाला’ (1961)। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की कहानी पर आधारित इस फ़िल्म के निर्देशक हेमेन गुप्ता थे। गुलज़ार इसमें उनके सहायक थे। बलराज साहनी के सहज अभिनय के लिये भी इस फ़िल्म को याद किया जाता है। गुलज़ार का लिखा तथा सलिल दा का संगीतबद्ध किया एक कालजयी गीत इसमें हेमन्त कुमार ने गाया था।

हेमन्त कुमार संगीतकार एवं गायक दोनों ही समान रूप से उच्च कोटि के थे। उनके गायन की प्रशंसा करते हुये लता मंगेशकर ने एक बार कहा था कि हेमन्त दा को गाते हुये सुनो तो आभास होता है मानो किसी मंदिर में बैठा कोई साधु गा रहा हो। संयोग से ‘काबुलीवाला’ का गीत एक वृक्ष के नीचे बैठे साधु पर फ़िल्माया गया है। सलिल चौधरी तो हेमन्त कुमार की प्रशंसा करते हुये एक क़दम और आगे बढ़ गये। उनका कहना था कि अगर ईश्वर की आवाज़ की कोई कल्पना की जाये तो वह आवाज़ हेमन्त कुमार की होगी।

फ़िल्म ‘ काबुलीवाला ‘ का हेमन्त दा के दिव्य स्वर में गुलज़ार रचित गीत है – ‘गंगा आये कहाँ से, गंगा जाये कहाँ रे, लहराये पानी में जैसे धूपछाँव रे’।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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