गीत – छू लेने दो नाज़ुक होंठों को
कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये
फ़िल्म – काजल (1965)
संगीतकार – रवि
गीतकार – साहिर लुधियानवी
गायक – मोहम्मद रफ़ी

संगीत निर्देशक रवि ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत कोरस गायक के रूप में की थी। एस डी बर्मन के संगीत में फ़िल्म ‘नौजवान‘ के गीत ‘झनक झनक झन झन’ तथा हेमन्त कुमार के संगीत में फ़िल्म ‘आनन्द मठ‘ के गीत ‘वन्देमातरम् वन्देमातरम्’ में उन्होंने कोरस गायन किया था। उसके बाद वे हेमन्त कुमार के असिस्टेण्ट बन गये। ‘नागिन‘ की प्रसिद्ध बीन की धुन (मन डोले मेरा तन डोले) का श्रेय रवि (हारमोनियम) और कल्याणजी (क्लेवायलिन) को जाता है।

Sahir Ludhianvi- A Biopic Documentary

स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें देवेन्द्र गोयल की फ़िल्म ‘वचन’ मिली। इसमें उन्होंने दो गीत लिखे – ‘चन्दामामा दूर के’ और ‘पैसा दे दे बाबू’ और एक युगलगीत आशा भोंसले के साथ गाया -‘यूँ ही चुपके चुपके, बहाने बहाने, निगाहों से दिल में लगे हो समाने।’ इसके बाद उन्होंने देवेन्द्र गोयल की कई फ़िल्मों में संगीत दिया – नई राहें, चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ, दस लाख, एक फूल दो माली वग़ैरह। उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि देवेन्द्र गोयल ही नहीं बल्कि जो भी निर्माता उनके साथ एक बार काम कर लेता था वह उन्हें दोहराना चाहता था जैसे – एस डी नारंग (दिल्ली का ठग, बाम्बे का चोर, सगाई, शहनाई, अनमोल मोती, बाबुल की गलियाँ), बी आर चोपड़ा (गुमराह, वक़्त, हमराज़, आदमी और इंसान, धुँध, निकाह, तवायफ़), राम माहेश्वरी/पन्ना लाल माहेश्वरी (नीलकमल, काजल, चिनगारी)। रवि के संगीत से सजी अनेकों फ़िल्में जुबली हिट रहीं इस कारण उन्हें ‘लकी’ भी माना जाता था। जब उन्हें हिन्दी फ़िल्में मिलना कम हो गया तो उन्होंने मलयालम फ़िल्मों मे संगीत देना शुरू कर दिया। दक्षिण में एक अन्य संगीतकार रवि थे अतः उनकी अलग पहचान बतलाने के लिये उन्हें ‘बाम्बे रवि’ का नाम दिया गया। उन्होंने ग्यारह मलयालम फ़िल्मों में संगीत दिया जो बड़ा लोकप्रिय रहा और उन्हें उनके लिये राष्ट्रीय और फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स भी मिले। ‘चौदहवीं का चाँद हो’ गीत उन्होंने बड़े कम समय में चलते फिरते ही बना लिया था। यह गीत ज़बर्दस्त हिट रहा और इसके बाद उनका शुमार बड़े संगीतकारों में होने लगा था।

Mohammed Rafi-Documentary

फ़िल्म ‘काजल‘(1965) के लिये निर्देशक राम माहेश्वरी एक गीत चाहते थे जिसमें राजकुमार, मीना कुमारी को शराब पिलाने की कोशिश कर रहे थे। उनका विचार था कि इस सिचुएशन में राजकुमार पर एक लम्बा गाना सूट नहीं करेगा। उन्होंने निर्देश दे रखा था कि गाने में दो – तीन शेर से ज़्यादा न हों। उसके अनुसार साहिर लुधियानवी ने तीन शेर लिख कर रवि साहब को दे दिये। जब गाने की रिकार्डिंग हो रही थी तब निर्माता पन्नालाल माहेश्वरी वहाँ मौजूद थे। उन्हें तथा वहाँ उपस्थित अन्य सब लोगों को वह गाना बहुत पसंद आया। उन्हें लगा कि दो तीन शेर और मिल जाते तो मज़ा आ जाता। पर साहिर साहब वहाँ मौजूद नहीं थे और उनसे सम्पर्क कर फ़ौरन और शेर प्राप्त करना संभव न हो सका। केवल तीन शेर वाली वह ग़ज़ल इतनी मशहूर हुई कि निर्देशक राम माहेश्वरी को गाना छोटा रखने वाले अपने निर्णय पर बड़ा अफ़सोस रहा।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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