गीत – बहारों से कहेंगे, नज़ारों से कहेंगे
हम हो चुके तुम्हारे, हज़ारों से कहेंगे
फ़िल्म – उल्फ़त की नयी मंज़िलें (1994)
संगीतकार – कल्याणजी आनन्दजी
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण
गायक – मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर

साठ के दशक में साधना एक ऐसी नायिका थीं जिनमें सौन्दर्य और अभिनय प्रतिभा दोनों समान रूप से बड़े अनुपात में मौजूद थे। उनके ‘साधना कट’ बालों की स्टाइल और चूड़ीदार कुर्ते का फ़ैशन युवतियों के बीच क्रेज़ बन गया था। मेरे महबूब, वक़्त, वो कौन थी, आरज़ू, राजकुमार आदि फ़िल्मों में उनका रूप सौन्दर्य अपने चरम पर था। ‘मेरे महबूब‘ की शूटिंग के समय वे दूसरी फ़िल्मों में बेहद व्यस्त थीं। एच एस रवेल ने उनकी डेट्स के लिये आठ महीने इंतज़ार किया था। उस बीच फ़िल्म के अन्य कलाकारों राजेन्द्र कुमार, अशोक कुमार, निम्मी, अमीता आदि के दृश्यों की शूटिंग होती रही और साधना की डेट्स मिलने पर उनसे सम्बंधित सीन्स शूट किये गये।

‘मेरे महबूब’ सुपरहिट साबित हुई। एच एस रवैल ने अपनी अगली फ़िल्म ‘संघर्ष’ एनाउन्स की दिलीप कुमार और साधना के साथ। उन दिनों ही साधना के स्वास्थ्य ने धोखा दे दिया। उन्हें थायरोयेड की प्राब्लम हो गयी और लम्बे इलाज के लिये विदेश जाना पड़ा। जाने से पहले उन्होंने एच एस रवेल को फ़ोन पर इस बात की जानकारी दी। रवैल साहब ने कहा,’हमनें’ मेरे महबूब’ में आपके लिये इतना इंतज़ार किया था अब ‘संघर्ष’ के लिये भी कर लेंगे। परन्तु इसके पाँच दिन बाद ही स्क्रीन में ‘संघर्ष’ के विज्ञापन में दिलीप कुमार – वैजयंतीमाला की जोड़ी की घोषणा प्रकाशित हो गयी। साधना ने इसके बाद एच एस रवैल से फिर कभी बात नहीं की।

बीमारी का असर उनकी आँखों पर पड़ा और साथ ही उनके कैरियर पर भी पड़ा। ‘अराउण्ड द वर्ल्ड’ दूसरी बड़ी फ़िल्म थी जिस से उन्हें निकाल कर राजश्री को ले लिया गया। राज खोसला ने साधना के साथ एक मुसाफ़िर एक हसीना, वो कौन थी, मेरा साया और अनिता जैसी सफल फ़िल्में बनायीं थीं। वे नूतन और साधना को साथ ले कर एक फ़िल्म प्लान कर रहे थे पर वह फ़िल्म नहीं बना पाये। बरसों बाद उस कहानी पर ‘बसेरा‘(1981) फ़िल्म राखी और रेखा को ले कर निर्देशक रमेश तलवार ने बनायी।

साधना, वहीदा रहमान और राजकुमार के साथ निर्देशक के शंकरउल्फत‘ फ़िल्म बना रहे थे । फ़िल्म की काफ़ी शूटिंग हो चुकी थी परन्तु साधना की बीमारी और कुछ आर्थिक कारणों से यह फ़िल्म अधूरी छूट गयी थी। फ़िल्म के गानों के रिकार्ड ‘उल्फ़त’ के नाम से 1968 में रिलीज़ कर दिये गये थे। राजकुमार को अपनी वह फ़िल्म बड़ी प्रिय थी। बरसों बाद राजकुमार ने उस फ़िल्म के अधिकार ख़रीद लिये और वहीदा रहमान से अनुरोध कर फ़िल्म की बाक़ी शूटिंग पूरी की।

साधना के चेहरे पर बीमारी के कारण आये परिवर्तन स्वरूप उनके दृश्य डुप्लीकेट की मदद से शूट किये गये। प्रस्तुत गीत में भी साधना के रोल में एक डुप्लीकेट युवती है जिसे या तो लाँग शाट में दिखाया गया है या पीछे से दृश्य फ़िल्माये गये हैं। राजकुमार के प्रयत्नों से यह फ़िल्म 26 साल बाद 1994 में ‘उल्फत की नई मंज़िलें’ नाम से रिलीज़ हो सकी।

बहारों से कहेंगे, नज़ारों से कहेंगे, 
हम हो चुके तुम्हारे हज़ारों से कहेंगे

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

Leave a comment

Verified by MonsterInsights