गीत – अभी तो रात बाक़ी है , ये ढल जाये तो सो जाना
फ़िल्म – बंदिश (1969)
संगीतकार – उषा खन्ना
गीतकार – अकमल हैदराबादी
गायक – मोहम्मद रफी

फ़िल्मी दुनिया में सफलता मिलने के लिये प्रतिभा, मेहनत और सबसे बढ़ कर क़िस्मत होना ज़रूरी है। स्टार सन्स की चर्चा जब तब होती रहती है पर सारी सुविधाओं, सम्बंधों, अवसरों के होने के बावज़ूद कितने ही सितारों के बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं। प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक केदार शर्मा जिन्होंने राज कपूर, मधुबाला, गीताबाली जैसे सितारे फ़िल्माकाश में जड़े वे अपने बेटे अशोक शर्मा को सफल सितारा ना बना सके। अशोक शर्मा को नायक ले कर उन्होंने दो फ़िल्में बनाईं – ‘हमारी याद आयेगी‘ (1961) तथा ‘फ़रियाद‘ (1964)। ये दोनों फ़िल्में आज केवल स्नेहल भाटकर के मधुर संगीत के लिये याद की जाती हैं।

संगीतकार हेमंत कुमार के पुत्र रितेश (जयंत) जिनका विवाह मौसमी चटर्जी के साथ हुआ है, ने भी अभिनय क्षेत्र में क़िस्मत आज़माई थी। फ़िल्म ‘कच्चे धागे‘ में मौसमी चटर्जी के साथ ‘हाय हाय एक लड़का मुझको ख़त लिखता है’ गीत में वे नज़र आये थे। हेमन्त कुमार ने उन्हें ले कर ‘बीस साल पहले’ फ़िल्म बनाई थी। इसके बाद वे आगे इस क्षेत्र में कुछ न कर सके। अशोक कुमार ने अपने बेटे अरूप कुमार को लाँच करने के लिये एक फ़िल्म प्रोड्यूस की थी – ‘बेज़ुबान‘(1962)। यह फ़िल्म तथा फ़िल्म का हीरो दोनों बुरी तरह असफल रहे। उस फ़िल्म का एक गीत जो अरूप कुमार और हेलन पर फ़िल्माया गया था आज भी संगीतप्रेमियों को याद आ जाता है – ‘दीवाने तुम दीवाने हम, किसे है ग़म क्या कहे ये ज़माना’ (लता मंगेशकर, चित्रगुप्त, प्रेम धवन)।

इनके अलावा भी असफल स्टार पुत्रों की एक लम्बी सूची है – देव आनन्द के पुत्र सुनील आनन्द (आनन्द और आनन्द, कार थीफ), राज कुमार के पुत्र पुरु राज कुमार (बाल ब्रम्हचारी), मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी (कलाकार , घुँघरू), अमजद खान के बेटे शादाब ख़ान (राजा की आयेगी बारात), मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमो (जिमी), राज बब्बर के बेटे आर्य बब्बर (अब के बरस) आदि आदि।

विश्व प्रसिद्ध पहलवान और सफल अभिनेता दारासिंह के दो पुत्रों ने फ़िल्मी दुनिया में दस्तक दी थी। छोटे विन्दू दारासिंह का हश्र तो सबको मालूम है। उनके बड़े बेटे की नायक के रूप में एक फ़िल्म ‘बन्दिश‘ (1969) आई थी। उनका स्क्रीन नाम ‘शैलेन्द्र‘ रखा गया था। नायिका सोनिया साहनी थीं। ‘बंदिश’ का उषा खन्ना का संगीतबद्ध और मोहम्मद रफ़ी का गाया एक मधुर गीत ‘आज के गीत’ में प्रस्तुत है। सुनिये और देखिये कि बेटे शैलेन्द्र की शक्लोसूरत पिता दारासिंह से कितनी मिलती जुलती है –

अभी तो रात बाक़ी है, ये ढल जाये तो सो जाना
घड़ी भर को दिले नादां सँभल जाये तो सो जाना।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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