गीत – हमको तो बरबाद किया है
और किसे बरबाद करोगे
फ़िल्म – गुनाहों का देवता (1967)
संगीतकार – शंकर जयकिशन
गीतकार – हसरत जयपुरी
गायक – मोहम्मद रफ़ी/शारदा (टैण्डम सांग)

एक समय था जब पुस्तकें पढ़ने का चलन था। उस ज़माने में धर्मवीर भारती का चर्चित उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ जिस युवा ने न पढ़ा हो उसे अजूबा समझा जाता था। धर्मवीर भारती टाइम्स ग्रुप की साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के सम्पादक के रूप में ख्याति के शिखर पर थे। पर उन्हें जीवनकाल में ही किंवदन्ती बना देने का श्रेय उनके उपन्यास ‘गुनाहों के देवता’ को जाता है। भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन इस उपन्यास के 55 से अधिक संस्करण निकाल चुका है और आज भी इसकी माँग बनी हुई है।

इस उपन्यास की लोकप्रियता देखते हुये इस पर फ़िल्म बनाने का विचार कई निर्माताओं को आया लेकिन धर्मवीर भारती को डर था कि अधिकांश निर्देशक उनके उपन्यास के साथ न्याय न कर पायेंगे। एक निर्माता, निर्देशक देवी शर्मा थे जिन्होंने ‘क़व्वाली की रात‘ , ‘गंगा की लहरें‘ आदि फ़िल्में बनाईं थीं। वे भी ‘गुनाहों का देवता’ पर फ़िल्म बनाना चाह रहे थे। वे इतने अधिक आशावान थे कि उन्होंने यह टाइटिल अपनी फ़िल्म के लिये रजिस्टर करवा लिया था। उनके लाख प्रयत्न करने पर भी धर्मवीर भारती ने अपने उपन्यास के फ़िल्मीकरण के अधिकार उन्हें नहीं सौंपे। इस पर भी देवी शर्मा ने अपने रजिस्टर्ड टाइटिल ‘गुनाहों का देवता’ पर फ़िल्म बनाने का विचार नहीं छोड़ा। उन्होंने स्वयं एक कहानी लिखी और हीरो के तौर पर जीतेन्द्र को साइन कर लिया। ‘गीत गाया पत्थरों ने‘ के बाद यह हीरो जीतेन्द्र की दूसरी फ़िल्म थी । देवी शर्मा हीरोइन के लिये कुमकुम को लेना चाह रहे थे जो उनके साथ पहले भी दो फ़िल्मों में काम कर चुकी थीं। जीतेन्द्र उसके लिये तैयार न थे। उन्हें डर था कि उन पर बी ग्रेड के हीरो का ठप्पा लग जायेगा। वे चाहते थे कि राजश्री को नायिका के रूप में लिया जाये। देवी शर्मा ने अपने सीमित बजट का हवाला दिया। जीतेन्द्र ने उनसे कहा कि आप जो पैसा मुझे देने वाले हैं उसे भी हीरोइन के पैसे में जोड़ दें और राजश्री को मनाना मेरा काम। इस तरह राजश्री इस फ़िल्म की नायिका बनीं। अन्य सितारे महमूद, अरुणा ईरानी, जूनियर महमूद आदि थे। संगीत के लिये शंकर जयकिशन को लिया गया।

जब धर्मवीर भारती अपने उपन्यास पर फ़िल्म बनाने तैयार हुये तो उन्हें ‘गुनाहों का देवता’ टाइटिल नहीं मिला क्योंकि वह देवी शर्मा पहले रजिस्टर करवा चुके थे। यह रजिस्ट्रेशन दस साल तक वैध रहता है। मजबूरन उस फ़िल्म का नाम ‘एक था चन्दर एक थी सुधा‘ रखना पड़ा। चन्दर और सुधा उपन्यास के नायक और नायिका के नाम थे। अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, फ़रीदा जलाल को फ़िल्म में लिया गया। आर्थिक परेशानियों के कारण यह फ़िल्म अधूरी रह गयी। कितने आश्चर्य की बात है कि सबसे अधिक अधूरी/अप्रदर्शित फ़िल्में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन की हैं।

यू ट्यूब पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ (अप्रदर्शित) फ़िल्म के दो गाने हैं जो आनन्द बख़्शी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की टीम ने तैयार किये हैं -‘ये चेहरा ये ज़ुल्फ़ें जादू सा कर रहे हैं, तौबा तौबा’ (रफी, लता) और ‘लम्बी लम्बी काली ज़ुल्फ़ें बिखराये आई’ (आशा भोंसले)। ये गीत अमिताभ बच्चन और रेखा पर फ़िल्माये गये हैं। पर मेरे विचार से यह ग़लत जानकारी है । ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ में रेखा नहीं थीं और गीतों का कहानी से दूर दूर का भी सम्बंध नज़र नहीं आता है।

1990 में मिथुन चक्रवर्ती और संगीता बिजलानी को ले कर एक ‘गुनाहों का देवता’ फ़िल्म बनी। इस फ़िल्म का भी धर्मवीर भारती के उपन्यास से कोई लेना देना नहीं है । लाइफ़ ओके चैनल पर 2015 में एक टीवी सीरियल आया जिसका नाम पुनः ‘एक था चंदर एक थी सुधा था’। यह सीरियल भारती जी के उपन्यास ‘गुनाहों के देवता’ पर आधारित था।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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