मोहे श्याम रंग दई दे
फ़िल्म – बन्दिनी (1963)
संगीतकार – सचिनदेव बर्मन
गीतकार – गुलज़ार
गायिका – लता मंगेशकर

संगीतकार सचिनदेव बर्मन और लता मंगेशकर के बीच ग़लतफ़हमी आ जाने से दोनों ने 1958 से 1962 के दौरान चार साल तक साथ काम नहीं किया था। इस बीच सचिन दा की संगीतबद्ध फ़िल्मों जैसे – सोलवां साल, कालापानी, लाजवन्ती, चलती का नाम गाड़ी, सुजाता, इन्सान जाग उठा, काग़ज़ के फूल, काला बाज़ार, मंज़िल, अपना हाथ जगन्नाथ, बम्बई का बाबू, एक के बाद एक, मियाँ बीवी राज़ी, बेवक़ूफ़ आदि में लता मंगेशकर का गाया हुआ कोई गीत नहीं है।

लता मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर को बतलाया था कि उन्होंने एस डी बर्मन के संगीत में फ़िल्म ‘मिस इण्डिया‘ (1957) के लिये एक गीत रिकार्ड करवाया था जो नर्गिस पर फ़िल्माया जाना था। ‘मिस इण्डिया’ के निर्देशक आई एस जौहर और हीरो प्रदीप कुमार थे। सचिन दा के निर्देश के अनुसार उन्होंने वह गीत बड़ी मधुरता व कोमल भाव से गाया था। बाद में दादा का फ़ोन आया कि वह गाना जिस पात्र (नर्गिस) पर फ़िल्माया जाना है वह टॉम ब्वाय जैसा चरित्र है। यह गाना थोड़ा नजा़कत वाला हो गया है तो इसे फिर से रिकार्ड करना पड़ेगा। (संभवत: जिस गीत का उल्लेख है -‘अलबेला मैं इक दिलवाला, बड़ा हूँ मतवाला, ज़माने से निराला ‘उसे बाद में आशा भोंसले ने गाया।) लता मंगेशकर ने उन्हें बतलाया कि वे तैयार है पर फ़िलहाल व्यस्त हैं अत: कुछ दिनों बाद वे रिकार्ड कर पायेंगी।

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तीन – चार दिन बाद एस डी बर्मन ने एक व्यक्ति को लता की डेट लेने के लिये भेजा। उस व्यक्ति ने लौट कर सचिन दा को यह बताने के बजाय कि लता व्यस्त हैं यह बता दिया कि लता ने फिर से गाना रिकार्ड करने से मना कर दिया है। यह सुन कर बर्मन दा नाराज़ हो गये और उन्होंने कह दिया कि वे अब लता से गाने नहीं गवायेंगे। ख़बर जब लता तक पहुँची तो उन्होंने फ़ोन कर कहा कि वे स्वयं उनके लिये नहीं गायेंगीं।

इस पूरे घटनाक्रम का एक दूसरा वर्शन भी है जो सचिनदेव बर्मन के सहायक संगीतकार जयदेव ने संगीत समीक्षक राजू भारतन को बताया था। निर्देशक सत्येन बोस की फ़िल्म ‘सितारों से आगे‘ (1958, वैजयंतीमाला, अशोक कुमार) के गीत ‘सैंया कैसे धरूँ धीर, पग ठुमक चलत बल खाये’ जिसे लता रिकार्ड कर चुकी थीं, को एस डी बर्मन फिर से डब कराना चाह रहे थे। लता विदेश यात्रा पर जाने वाली थीं, उससे पहले बर्मन दा चाहते थे कि यह काम हो जाये। जिस बीच के व्यक्ति का नाम लता मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर को नहीं बताया था वे जयदेव थे। जयदेव के अनुसार लताजी और बर्मन साहब की अहम् की लड़ाई में उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया।

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ख़ैर कारण जो भी रहा हो लता मंगेशकर से सचिनदेव बर्मन ने चार साल तक कोई गीत नहीं गवाया। लेकिन जब उनके पुत्र राहुलदेव बर्मन अपनी पहली फ़िल्म ‘छोटे नवाब‘ (1961) में संगीत दे रहे थे तब दादा बर्मन को लगा कि इसमें लता मंगेशकर को गीत गाना चाहिये। उन्होंने लता मंगेशकर को फ़ोन कर कहा,”लोता, पंचोम एक फिलिम में म्यूज़िक दे रहा है। तुमको उसमें गाना है।” लता सहर्ष तैयार हो गयीं।

बाद में राहुलदेव बर्मन और विमल राय की मध्यस्थता में लता मंगेशकर ने चार साल बाद सचिनदेव बर्मन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘बन्दिनी‘ (1963) के लिये गीत रिकार्ड करवाया -‘मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे।’

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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