गीत – क़दर जाने ना हो क़दर जाने ना
मोरा बालम बेदर्दी
फ़िल्म – भाई भाई (1956)
संगीतकार – मदन मोहन
गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण
गायिका – लता मंगेशकर

अख़्तरी फ़ैज़ाबादी जो बाद में बेग़म अख़्तर के नाम से मशहूर हुईं, ने अपने कैरियर की शुरुआत में कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया और गाने भी गाये। उनकी कुछ फ़िल्में थीं- अमीना (1934), मुमताज़ बेग़म (1934), जवानी का नशा (1935), नसीब का चक्कर (1935) आदि। महबूब खान की फ़िल्म ‘रोटी‘ उनकी सर्वाधिक चर्चित फ़िल्म थी। इसमें अभिनय के साथ उन्होंने छ: गाने भी गाये थे। लेकिन फ़िल्म में केवल दो ही गीत रखे गये। बैरिस्टर इश्तियाक़ अहमद अब्बासी के साथ विवाह के बाद परिवार के दबाव के कारण उन्होंने गाना बन्द कर दिया था। लगभग पाँच वर्ष उन्होंने गाने नहीं गाये। इन बन्दिशों के कारण जब उनकी तबीयत ख़राब रहने लगी तो उन्हें फिर से गाने की अनुमति दे दी गयी। वे लखनऊ रेडियो स्टेशन से अपने गाने के कार्यक्रम देने लगीं। संगीतकार मदन मोहन वहाँ उनके सम्पर्क में आये। दोनों ही एक दूसरे की कला के प्रशंसक बन गये। बाद में मदनमोहन बम्बई फ़िल्मी दुनिया में चले गये। बेग़म साहिबा और मदन मोहन साहब दोनों ही अपनी ग़ज़लों के कारण याद किये जाते हैं। एक अपनी बेमिसाल गायिकी के कारण और दूसरे अपनी फ़िल्मी ग़ज़लों की सुरीली धुनों के लिये।

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फ़िल्म ‘दानापानी‘ (1953) का संगीत मदनमोहन ने ‘मोहन जूनियर‘ के नाम से दिया था। इस फ़िल्म में भारत भूषण और मीना कुमारी प्रमुख भूमिकाओं में थे। इस फ़िल्म में एक ग़ज़ल बेग़म अख़्तर की आवाज़ में थी –

अय इश्क़ मुझे और तो कुछ याद नहीं है
हाँ दिल मेरा बरबाद है , आबाद नहीं है

इसके अलावा फ़िल्म ‘एहसान‘ (1954, पृथ्वीराज कपूर , शम्मी कपूर , मुनव्वर सुल्ताना) में भी बेगम अख़्तर ने मदनमोहन के संगीत में एक गीत गाया था -‘ हमें दिल में बसा भी लो, यह कहती हैं जवाँ नज़रें।’ ‘दानापानी’ और ‘एहसान’ दोनों ही फ़िल्मों के ये गीत क़ैफ़ इरफ़ानी ने लिखे थे।

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ए व्ही एम प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘भाई भाई'(1956, अशोक कुमार, किशोर कुमार, निरूपाराय, निम्मी, श्यामा) मदनमोहन के संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी जो टिकिट खिड़की पर सफल हुई थी। यह फ़िल्म 24 सप्ताह सिनेमाघरों में पूरी कर चुकी थी और सिल्वर जुबली मनाने वाली थी। पर प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर्स के बीच कुछ अनबन हो जाने से यह फ़िल्म पच्चीसवें सप्ताह में सिनेमाघरों से उतार ली गयी। इसके कई बरस बाद ‘वह कौन थी‘ मदनमोहन की संगीतबद्ध पहली फ़िल्म थी जिसने जुबली मनाई।

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जिन दिनों ‘भाई भाई’ (1956) रिलीज़ हुई उन दिनों बेग़म अख़्तर कुछ अन्य फ़नकारों के साथ दिल्ली में थीं। वहाँ उन्होंने पहली बार रेडियो पर फ़िल्म ‘भाई भाई’ का गीत सुना तो मुग्ध हो गयीं। उसी समय उन्होंने दिल्ली से मदनमोहन जी को बम्बई ट्रंककॉल लगाया और फ़ोन के ऊपर पूरे 18 मिनट तक (या शायद 22 मिनट तक) वे तथा बाक़ी सब लोग बारी बारी से मदनमोहन जी की आवाज़ में यह गीत सुनते रहे – क़दर जाने ना हो क़दर जाने ना , मोरा बालम बेदर्दी 

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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